DNA TV Show: सरकार भी युवाओं को ठगने लगी हैं, बिहार के उदाहरण से समझिए सरकारी JOB SCAM का मायाजाल

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Sep 27, 2023, 11:19 PM IST

DNA TV SHOW 

Sarkari Job Scam: नौकरी दिलाने के नाम पर पैसे ठग लेने के कारनामे आप मीडिया की खबरों में रोजाना ही पढ़ते होंगे. ऐसे गिरोह देश के हर राज्य में एक्टिव हैं, लेकिन यदि सरकार ही खुद ऐसी ठगी करने लगे तो क्या होगा? सरकारी ठगी का DNA पेश कर रही है ये रिपोर्ट.

डीएनए हिंदी: Bihar Teachers Recruitment 2023 Updates- नौकरी चाहिए तो क्लिक करें या नौकरी पाने के लिए संपर्क करें, ये वे टैगलाइन हैं, जिनका इस्तेमाल नौकरी देने या दिलाने के नाम पर युवाओं से मोटी रकम ठगने वाले ठग अपने विज्ञापनों में करते हैं. सरकारी नौकरी के फर्जी भर्ती फार्म निकालकर हजारों युवाओं को बेच देने का गोरखधंधा भी आपको देश के हर राज्य में मिल जाएगा. युवा इस गोरखधंधे को अब समझने भी लगे हैं, लेकिन बेरोजगारी का डंक उन्हें सबकुछ समझने के बावजूद ठगों के मायाजाल में फंसने पर मजबूर कर ही देता है. लेकिन आज हम आपको युवाओं के साथ ठगी के एक ऐसे Classic उदाहरण के बारे में बताएंगे, जिसके बारे में सुनकर आप भी अपना सिर पकड़ लेंगे. दरअसल युवाओं के साथ ये ठगी, कोई व्यक्ति, गिरोह या संगठन नहीं कर रहा है बल्कि ये सरकारी ठगी है, जिसे बिहार सरकार ने अंजाम दिया है. वह भी सामूहिक रूप से. आप चाहें तो इसे सरकारी Scam भी कह सकते हैं. आज हम बिहार में छात्रों के साथ हुई इस सरकारी ठगी का DNA टेस्ट तो करेंगे ही. इसकी modus operandi को भी DECODE करेंगे.

पहले जान लेते हैं कहां से हुई थी ठगी की शुरुआत

दरअसल बिहार स्कूल शिक्षा विभाग ने इसी वर्ष जून में शिक्षकों की भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था. फॉर्म भरने की अंतिम तारीख़ 12 जुलाई तक रखी गई थी. शिक्षक भर्ती परीक्षा में कक्षा 1 से लेकर 12 वीं तक के लिए कुल 1 लाख 70 हजार 461 पदों पर भर्तियां होनी थीं, जिसके लिए 8 लाख 15 हजार युवाओं ने फॉर्म भरे. इनमें करीब 3.80 लाख अभ्यर्थी बीएड डिग्री धारक थे.

यहां तक सब कुछ ठीक था, लेकिन फॉर्म भरे जाने के करीब एक महीने बाद यानी 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने बीएड डिग्री धारकों को प्राइमरी शिक्षक बनने के लिए अयोग्य ठहरा दिया. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के अनुसार, जिन छात्रों ने BEd किया है, वो पहली से पांचवी तक के छात्रों को नहीं पढ़ा सकते. वे सिर्फ छठी से बारहवीं तक की कक्षाओं को पढ़ाने के लिए ही योग्य होंगे. 

सु्प्रीम कोर्ट के आदेश की आड़ में की गई ठगी

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आड़ लेकर बिहार सरकार और Bihar Public Service Commission ने बिहार के BEd डिग्रीधारी युवाओं के साथ सामूहिक ठगी को अंजाम दे दिया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद BPSC ने BEd पास युवाओं को Primary Teacher भर्ती परीक्षा देने से नहीं रोका. बिहार शिक्षा विभाग की तरफ से कहा गया कि जिन छात्रों ने फॉर्म भरा है, वो फिलहाल परीक्षा दे दें. क्या करना है, ये फ़ैसला बाद में लिया जाएगा. इसीलिए 24, 25 और 26 अगस्त को बिहार में जो शिक्षक भर्ती परीक्षा हुई थी, उसमें BEd पास छात्रों ने भी हिस्सा लिया. 

हमने DNA में उस वक़्त भी दिखाया था कि ये छात्र किस तरह के हालात में परीक्षा देने पहुंचे थे. कोई घुटनों तक पानी में डूबकर परीक्षा केंद्र पहुंचा था, तो किसी ने परीक्षा देने के लिए फुटपाथ पर रात काटी थी. रेलवे स्टेशन ही नहीं, बस अड्डों और आसपास के मंदिरों तक में छात्रों की भीड़ नज़र आई थी. छात्रों ने ये सब मुश्किलें इसलिए सहीं थीं, ताकि वो सरकारी शिक्षक की नौकरी हासिल कर सकें. 

परीक्षा देने के बाद जब रिजल्ट की बारी आई तो BPSC ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का हवाला देते हुए BEd वालों के रिज़ल्ट जारी करने से ही मना कर दिया. इन छात्रों ने परीक्षा के लिए करीब एक हजार रुपये परीक्षा शुल्क जमा किया था. इस लिहाज से देखें तो बिहार सरकार ने इनसे परीक्षा फ़ीस के नाम पर करोड़ों रुपये वसूल लिए. वो भी तब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही साफ़ कह दिया था कि BEd वाले Primary में पढ़ाने के लिए योग्य नहीं हैं.

रिजल्ट के वक्त क्यों याद आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला 11 अगस्त को सुनाया था. कायदे से BPSC को तभी इन 3 लाख 80 हज़ार छात्रों को प्राइमरी टीचर के लिए एग्जाम देने से रोक देना चाहिए था और उनकी एग्जाम फ़ीस वापस कर देनी चाहिए थी. लेकिन BPSC ने सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद इसलिए परीक्षा करवाई ताकि पहली से पांचवी तक के लिए परीक्षा देने वाले इन B.Ed अभ्यर्थियों की फ़ीस वापस न करनी पड़े. अब परीक्षा करवाने के बाद BPSC और बिहार सरकार को अचानक सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की याद आ गई है यानी पहले तो फीस के नाम पर छात्रों से करोड़ों रुपये वसूल लिए और बाद में कोर्ट का हवाला देकर रिजेक्ट कर दिया. वैसे बिहार सरकार ने इनसे सिर्फ़ पैसों की ठगी ही नहीं की है. उसने इनके सपनों और उम्मीदों को भी ठगा है.

क्या कह रहे हैं अब बिहार के बीएड पास युवा

बिहार के ऐसे बीएड छात्रों से हमने बातचीत की है और आज बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी हमारी ये report जरूर देखनी चाहिए. ताकि वो भी इन छात्रों का दर्द महसूस कर सकें, क्योंकि ये छात्र उनके बंगले के बाहर अगर हफ़्तों भी खड़े रहें तो भी शायद ही अपनी आवाज़ उन तक पहुंचा सकें.

  • दो साल पहले बीएड करने वाली निधि को उम्मीद थी कि किस्मत साथ रही तो एक दिन वो भी सरकारी शिक्षक बन जाएंगी. लेकिन उनके सपनों पर नीतीश सरकार ने पानी फेर दिया. सरकारी ठगी का शिकार निधि अब BPSC दफ़्तर के बाहर गाना गाकर अपना दुखड़ा सुनाती हैं. इस उम्मीद में कि कभी साहब लोग सुन लें, तो शायद उनका कलेजा पसीज जाए. लेकिन मासूम निधि नहीं जानतीं कि अंदर बैठे लोगों की चमड़ी इतनी मोटी है कि ऐसे गीत, आसुंओं या फिर आहों का उन पर कोई असर नहीं होता है.
  • वैशाली के सौरभ कुमार निधि की तरह गा कर दर्द बयां नहीं कर सके तो वो काम उनकी आंखों ने कर दिया. सवाल पूछा तो दर्द, झल्लाहट और गुस्सा और बेबसी सब एक साथ आंसुओं की शक्ल में सामने आ गए. उन्होंने कहा, या तो मार दें हमें, या हम मर जाएं. 
  • पटना के नागेंद्र कुमार ने दो लाख रुपये ख़र्च कर बीएड किया था. इस भर्ती से नागेंद्र कुमार की नहीं, उनके घर वालों की उम्मीदें भी जुड़ी थीं, लेकिन सरकार की धोखाधड़ी ने उनके सपने ही नहीं, दिल और हौसला भी तोड़ दिया.

इस लिस्ट में निधि, सौरभ या नागेंद्र अकेले नहीं हैं. बिहार सरकार और BPSC ने उनके जैसे 3 लाख 80 हजार छात्रों के साथ सामूहिक ठगी की है. आप चाहें तो इसे सिस्टम की संगठित धोखाधड़ी कह सकते हैं. छात्रों से परीक्षा दिलवाई और फिर रिजल्ट जारी नहीं किया. इन छात्रों को किसी संगठन, संस्थान या किसी व्यक्ति ने धोखा दिया होता, तो शायद ये सरकार से इंसाफ़ की गुहार लगाते. लेकिन जब सरकार ही ठगी पर उतर आए. तो ये किससे गुहार लगाएं?

बिहार की भर्तियों का ये कड़वा सच भी जानिए

बिहार की एक सच्चाई और भी है. केंद्र सरकार की तरफ से संसद में दी गई जानकारी के अनुसार, वर्ष 2020 से लेकर वर्ष 2022 तक देश के लगभग सभी राज्यों में शिक्षकों के लाखों पद खाली रह गए थे यानी इन पदों पर किसी की भर्ती ही नहीं हुई और बिहार इसमें सबसे ऊपर है.

आंकड़ों के अनुसार, बिहार में वर्ष 2022-23 में कक्षा 1 से लेकर 8 तक के शिक्षकों की एक लाख सत्तासी हज़ार दो सौ नौ (1,87,209) पद खाली थे. ये हाल तब है, जबकि बिहार में छात्रों और शिक्षकों के बीच का अनुपात सबसे खराब है और वहां प्रति 50 से 60 छात्रों पर सिर्फ़ एक टीचर ही मौजूद है.

एक तरफ़ तो बिहार में Teachers की भारी कमी है, दूसरी तरफ B.Ed वाले लाखों छात्र वैकेंसी का इंतज़ार कर रहे हैं. उनका ये इंतज़ार कब खत्म होगा? ये बात कोई नहीं जानता, क्योंकि जिस सरकार को जवाब देना है, वो तो उन्हे पहले ही ठग चुकी है.

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