DNA TV Show: पढ़ाई के खर्च के बोझ में दबे भारतीय, प्राइवेट स्कूलों में बच्चे को पढ़ाना हुआ मुश्किल काम

कुलदीप पंवार | Updated:Mar 06, 2024, 10:53 PM IST

DNA TV SHOW

DNA TV Show: प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए भारत में पेरेंट्स अपनी सालाना कमाई का बड़ा हिस्सा खर्च कर रहे हैं. इससे कैसे बचत प्रभावित हो रही है. इसी का DNA पेश कर रही है SHIVANK MISHRA की ये रिपोर्ट.

DNA TV Show: आज हम बात करेंगे देश के हर उस माता-पिता की, जिनके बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं. आज के समय में प्राइवेट स्कूलों में बच्चे को पढ़ाना माता पिता के लिए सबसे मुश्किल टास्क बन गया है. भारत में अभिभावक अपनी सालाना कमाई का एक बड़ा हिस्सा बच्चे की पढ़ाई-लिखाई पर खर्च कर रहे हैं, जिससे मिडिल क्लास की SAVING लगातार घटती जा रही है. क्या आप जानते हैं कि एक अभिभावक अपने बच्चे की नर्सरी से कॉलेज तक की पढ़ाई पर कितना खर्च करता है? चलि हम आपको बताते हैं. साथ ही हम आपको ये भी बताएंगे कि प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा कैसे मिडिल क्लास पर सबसे बड़ा 'बोझ' बनती जा रही है. ये विश्लेषण सीधा आपसे, आपकी कमाई से और आपके बच्चों की पढ़ाई से जुड़ा है.

पहले याद दिलाते हैं आपको पिछले साल की ये रिपोर्ट

DNA में हमने वर्ष 2023 मे आपको एक रिपोर्ट दिखाई थी. हमने इस रिपोर्ट में दिखाया था कि कैसे भारत के प्राइवेट स्कूल कॉपी-किताबों के नाम पर अभिभावकों को लूट रहे हैं और उन पर पड़ने वाला वित्तीय बोझ रॉकेट की रफ्तार से बढ़ा रहा हैं. आज हम आपको दिखाएंगे कि कैसे भारत में अभिभावक अपनी सालाना कमाई का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ एक बच्चे की पढ़ाई-लिखाई पर खर्च कर देता है. इसको समझने से पहले हम आपको ET ONLINE Research के कुछ आंकड़े दिखाते हैं, जिसे देखकर आपको पता चलेगा कि आपके और मेरे जैसा एक आम भारतीय कैसे बच्चे की पढ़ाई के वित्तीय बोझ के नीचे दब चुका है. ET ONLINE Research के मुताबिक-

ये आंकड़े हैरान करने वाले है. इसे देखकर समझा जा सकता है कि आज के दौर में बच्चों की पढ़ाई हर माता-पिता के लिए कितना मुश्किल टास्क है और ये सिर्फ प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे एक बच्चे का खर्च है. अगर दो बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं तो ये खर्च सीधा डबल हो जाता है.

पढ़ाई अब बड़ा 'कारोबार' है
भारत में पढ़ाई एक कारोबार है और प्राइवेट स्कूलों का ये कारोबार खूब फल-फूल रहा है. लेकिन आप और हम जैसे माता पिता इस टेंशन में हैं कि फीस कैसे भरेंगे. भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, भारत की प्रति व्यक्ति सालाना आय 98 हजार 374 रुपए है यानी भारत में प्राइवेट स्कूलों की औसतन सालाना फीस भारत की प्रति व्यक्ति औसतन आय के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा है.

सरकारी स्कूल से ज्यादा प्राइवेट स्कूल की पढ़ाई की धारणा
भारत में पढ़ाई को लेकर एक धारणा बनी हुई है कि सरकारी स्कूलों के मुकाबले प्राइवेट और महंगे स्कूलों में पढ़ाई अच्छी होती है. इसलिए ज्यादातर नौकरी पेशा लोगों की ख्वाहिश होती है कि उनके बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ें, लेकिन एक प्राइवेट स्कूल में बच्चे को पढ़ाना नौकरीपेशा लोगों के लिए Everest पर चढ़ने के बराबर है. Research Agency Glassdoor के मुताबिक-

इस हिसाब से देखा जाए तो नौकरीपेशा लोगों की कमाई का 81% हिस्सा सिर्फ बच्चे की पढ़ाई और EMI पर खर्च होता है. बाकी का हिस्सा घर की अन्य जरूरतों पर खर्च होता है.

यह आंकड़े भी देखने की जरूरत

यह अंतर भी देखना है जरूरी

भारत में स्कूली शिक्षा बेहद महंगी हो गई है. सरकार ने इसको कंट्रोल करने के लिए कदम भी उठाए हैं, लेकिन इसके बावजूद आज भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना करोड़ों अभिभावकों के लिए एक सपना ही है.

इस हिसाब से देखें तो भारत में किसी नौकरीपेशा की जितनी तनख्वाह बढ़ती है, उससे ज्यादा स्कूल की फीस बढ़ जाती है. भारतीय रिजर्व बैंक के सालाना DATA के मुताबिक, भारत में Education Loan Sector हर वर्ष 20 प्रतिशत की वृद्धि से बढ़ रहा है और Education Loan लेने वालों की संख्या में भी इसी हिसाब से बढ़ोतरी हो रही है. ऐसे में आज वक्त की जरूरत यही है कि भारत सरकार स्कूलों की फीस पर लगाम भी लगाए ताकि अभिभावकों की जेब में भी पैसा बचे और उनका बोझ कुछ कम हो पाए.

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