Justin Trudeau की नीतियों के चलते India के सामने Pakistan जैसा हो गया है Canada!
भारत ने कनाडा से अपने राजदूत को वापस बुला लिया है और राजनयिकों को निष्कासित कर दिया है. जैसा गतिरोध दोनों देशों के बीच है भारत के सामने कनाडा उसी कतार में हैं जहां पूर्व में उसने पाकिस्तान को रखा था. कनाडा को आत्मचिंतन करना चाहिए कहीं ऐसा न हो जब तक वो समझे बहुत देर हो जाए.
ताज़ी बयानबाजी और आरोप प्रत्यारोपों के बाद भारत और कनाडा का तनाव अपने चरम पर है. भारत के प्रति जैसा रवैया कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो का है. उसे देखकर कहीं न कहीं हमें पाकिस्तान और वहां के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की याद आती है. पीएम बनने से पहले इमरान खान ने 'नए पाकिस्तान' का वादा किया था. लेकिन अपने कार्यकाल में जिस तरह इमरान ने तमाम दुर्दांत और वांछित आतंकवादियों को पनाह दी, कश्मीर मसले पर दोषारोपण का खेल खेला और जैसे उन्होंने बांटने वाली वोट बैंक की राजनीति की उससे न केवल पाकिस्तान बल्कि विश्व पटल पर इमरान की भी खूब किरकिरी हुई. अब ऐसा ही कुछ मिलता जुलता हाल प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व में कनाडा का भी है.
कनाडा,पाकिस्तान के नक़्शे कदम पर है. जैसे हाल हैं भारतीय दूत को वापस बुलाकर और कनाडाई दूतों को निष्कासित करके, नई दिल्ली ने आधिकारिक तौर पर कनाडा को पाकिस्तान वाली केटेगरी में डाल दिया है. जैसा रवैया कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो का है उसे देखकर ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि कनाडा भारत के लिए नया पाकिस्तान बन गया है.
आइये कुछ कारणों का अवलोकन करें जो खुद इस बात की पुष्टि कर देंगे कि आखिर कैसे भारत की नजर में पाकिस्तान सरीखा हो गया है कनाडा और क्यों प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो बन गए हैं विलेन.
बिना किसी सबूत के कनाडा खेल रहा है आरोप प्रत्यारोप का खेल
भारत-कनाडा संबंधों में पिछले साल सितंबर में तब गिरावट आई जब ट्रूडो सरकार ने आरोप लगाया कि खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार की भूमिका है. निज्जर की जून 2023 में कनाडा स्थित सरे में एक गुरुद्वारे की पार्किंग में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
एक साल हो गया है, लेकिन कनाडा ने निज्जर मामले में बिना कोई ठोस सबूत पेश किये भारत पर आरोपों की झड़ी लगाई. वहीं बार बार भारत की तरफ से यही कहा गया कि इस मामले में कनाडा अपनी तरफ से ठोस सबूत पेश करे.
ध्यान रहे कि 14 अक्टूबर को कनाडा ने निज्जर की हत्या की जांच में भारतीय उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा को 'रुचि का व्यक्ति' बताकर मामले को और बदतर बना दिया. आगे कुछ कहने से पहले ये बता देना भी जरूरी है कि जिस तरह भारत द्वारा अपने राजदूत को वापस बुलाया गया और जिस तरह छह राजनयिकों को निष्कासित किया गया ये इस पूरे गतिरोध पर भारत के लहजे को दुर्लभ दर्शाता है.
वांछित अपराधियों को पनाह दे रहे हैं ट्रुडो और कनाडा
निज्जर मामले से बहुत पहले, भारत जस्टिन ट्रूडो सरकार पर 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के नाम पर खालिस्तानियों को खुश करने का आरोप लगा रहा था. बताते चलें कि उन खालिस्तानियों ने ऐसे जुलुस निकाले जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को दर्शाया गया था. साथ ही वहां ऐसे भी मौके आए हैं जब भारतीय या फिर भारतीय मूल के लोगों को मौत की धमकियां दी गयी हैं.
माना जाता है कि जैसे पाकिस्तान भारत द्वारा वांछित आतंकवादियों के लिए पनाहगाह बन गया है, वैसे ही भारत विरोधी तत्वों को ट्रूडो के कनाडा में सुरक्षित जगह मिल गई है.
पिछले साल सितंबर में न्यूज़ एजेंसी पीटीआई ने नई दिल्ली में अधिकारियों के हवाले से बताया था कि कम से कम नौ खालिस्तानी आतंकवादी समूहों के कनाडा में ठिकाने हैं साथ ही ये भी कहा गया कि ओटावा ने जघन्य अपराधों में शामिल लोगों के खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं की है. इन अपराधियों में लॉरेंस बिश्नोई का सहयोगी गोल्डी बरार भी शामिल है, जो लोकप्रिय पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या में शामिल था.
विश्व सिख संगठन (WSO), खालिस्तान टाइगर फोर्स (KTF), सिख फॉर जस्टिस (SFJ) और बब्बर खालसा इंटरनेशनल (BKI) जैसे खालिस्तानी संगठन कनाडा की धरती से खुलेआम काम कर रहे थे.
पीटीआई के अनुसार, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल आठ लोगों और पाकिस्तान की कुख्यात जासूसी एजेंसी ISI के साथ काम करने वाले कई गैंगस्टरों को कनाडा ने पनाह दी है.
इस सिलसिले में भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने 14 अक्टूबर को अपने बयान में कहा था कि , 'कनाडा में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले कुछ लोगों को नागरिकता देने के लिए तेजी से काम किया गया है. कनाडा में रहने वाले आतंकवादियों और संगठित अपराध नेताओं के संबंध में भारत सरकार के कई प्रत्यर्पण अनुरोधों की अनदेखी की गई है.'
भारत ने ट्रूडो की वोट बैंक की राजनीति की निंदा की
ध्यान रहे कि पाकिस्तान अपने मतदाताओं को लुभाने के लिए कश्मीर को राजनीतिक मुद्दे के रूप में इस्तेमाल करता रहा है. पाकिस्तानियों को खुश करने के लिए वह जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी आग को भड़काता रहा इन सब का नतीजा ये निकला कि वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में अर्थव्यवस्था चरमरा गई और वह अधिकांश सामाजिक-आर्थिक मापदंडों में पिछड़ गया.
यह ऐसी ही मजबूरी है जिसने ट्रूडो को भारत विरोधी खालिस्तानी तत्वों के प्रति नरम रुख अपनाने पर मजबूर किया है. वह सिखों के वोटों पर नज़र गड़ाए हुए हैं, जो राजनीतिक रूप से प्रभावशाली समुदाय है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कनाडा 2025 में अपने आम चुनाव कराने की तैयारी कर रहा है.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कई बार कहा है कि जस्टिन ट्रूडो की 'वोट बैंक की राजनीति" के कारण ही कनाडा खालिस्तानी तत्वों को खुली छूट दे रहा है. मंगलवार को भारत ने एक बार फिर ट्रूडो सरकार पर वोट बैंक की राजनीति के तहत भारत को 'बदनाम' करने का आरोप लगाया.
ट्रूडो अपनी गठबंधन सरकार न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) की मदद से चला रहे थे, जिसका नेतृत्व जगमीत सिंह कर रहे हैं, जो एक जाने-माने खालिस्तानी हैं.
जगमीत सिंह और उनकी NDP का हवाला देते हुए विदेश मंत्रालय ने कहा, 'उनकी सरकार एक ऐसे राजनीतिक दल पर निर्भर थी, जिसके नेता भारत के खिलाफ़ खुलेआम अलगाववादी विचारधारा का समर्थन करते हैं, जिससे मामला और बिगड़ गया.'
कनाडा की आबादी में सिखों की संख्या 2% से ज़्यादा है, और उत्तरी अमेरिकी देश भारत के बाहर सबसे ज़्यादा सिखों का घर है.विदेश मंत्रालय ने यह भी बताया कि ट्रूडो कैबिनेट में ऐसे लोग थे जो 'भारत के बारे में खुलेआम चरमपंथी और अलगाववादी एजेंडे से जुड़े थे.'
उपरोक्त बातों से इतना तो साफ़ है कि वर्तमान में कनाडा उन तमाम गलतियों को दोहरा रहा है जिनका खामियाजा पूर्व में पाकिस्तान भुगत चुका है. मौजूदा वक़्त एक मुल्क के रूप में कनाडा के लिए आत्मचिंतन का है. कहीं ऐसा न हो जब तक उसे अपनी गलती का एहसास हो, बहुत देर हो जाए और तब दुनिया के अन्य देश उसे अपना दोस्त बताने में शर्म की अनुभूति करें.
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