डीएनए हिंदी: ISRO Gaganyaan Mission News- सफल होने के लिए असफलता ही असली चाबी होती है. शायद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने ये बात समझ ली है. इसी कारण इसरो (Indian Space Research Organisation) अपने आज तक के सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission) के लिए शनिवार को एक फेल्योर टेस्ट करने जा रहा है. हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब इसरो ऐसा टेस्ट आयोजित करेगा. इसरो ने अगस्त में चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) के लैंडर की चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने वाला पहला देश बनने का इतिहास रचा था. यह लैंडिंग भी इसरो ने इसी तरह के फेल-सेफ अप्रोच टेस्ट के जरिये सफल बनाई थी. गगनयान मिशन का फेल्योर टेस्ट शनिवार सुबह 8 बजे श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर में किया जाएगा, जो करीब 9 मिनट में पूरा हो जाएगा.
क्यों अहम है गगनयान मिशन के लिए यह टेस्ट
गगनयान मिशन की सफलता पर इस कारण हर किसी की नजरें टिकी हुई हैं, क्योंकि यह भारत का ह्यूमन स्पेस मिशन (India human space mission) भी है. गगनयान मिशन के जरिये ही भारत पहली बार किसी भारतीय को खुद अंतरिक्ष की सैर कराएगा. ऐसे में इस मिशन के फेल होने का मतलब उसमें मौजूद भारतीय की जान जाना है. यही कारण है कि इसरो मिशन के लिए किसी भी तरह की 'ऐसी या वैसी' सिचुएशन की गुंजाइश नहीं रखना चाहता है. यही कारण है कि शनिवार को होने वाले टेस्ट के जरिये इसरो मिशन के फेल होने की स्थिति में की जाने वाली कवायद को परख लेना चाहता है.
इसरो रिसर्च सेंटर क्या कह रहा है?
NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, इसरो के विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (Vikram Sarabhai Space Centre) के निदेशक डॉ. उन्नीकृष्णन नायर (Dr Unnikrishnan Nair) ने बताया कि एजेंसी के लिए गगनयान मिशन में सबसे ज्यादा अहम बात अपने क्रू की सेफ्टी सुनिश्चित करना है. यह इसरो का रिसर्च सेंटर है. डॉ. नायर ने कहा, पहला मिशन यह दिखाएगा कि फ्लाइट के दौरान क्रू एस्केप सिस्टम (Crew Escape System) कैसे काम करेगा. हमें यह सुनिश्चित करना है कि ऊपर जाते समय फ्लाइट के साथ किसी भी तरह की गड़बड़ होने पर क्रू सुरक्षित रहे. उन्होंने कहा, रॉकेट के उड़ान भरने के बाद पहली स्टेज के दौरान हम क्रू एस्केप सिस्टम ऑपरेट करेंगे. इस सिस्टम को विभिन्न हालातों में काम करना होगा.
क्या होता है क्रू एस्केप सिस्टम, कैसे करेगा ये काम
क्रू एस्केप सिस्टम गगनयान की असल उड़ान के दौरान उस क्रू मॉड्यूल के ऊपर से प्रेशर खत्म करने का काम करेगा, जिसके अंदर एस्ट्रोनॉट्स मौजूद रहेंगे. इसे टेस्ट व्हीकल के सबसे ऊपर फिक्स किया गया है. डॉ. नायर के मुताबिक, टेस्ट के दौरान व्हीकल (रॉकेट) 12 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचकर ट्रानसोनिक कंडीशन हासिल करेगा. इसके बाद व्हीकल का थ्रस्ट यानी उड़ान के लिए लगाई जा रही ताकत बंद कर दी जाएगी. ऐसा करते ही एस्केप सिस्टम की मोटर एक्टिवेट हो जाएगी. यह क्रू मॉड्यूल व क्रू एस्केप सिस्टम को करीब 17 किलोमीटर की ऊंचाई पर ले जाएगी. इस अल्टीट्यूड में क्रू मॉडयूल एस्केप सिस्टम से रिलीज होकर सुरक्षित बाहर निकल आएंगे.
स्वचालित मोड में काम करेगा क्रू मॉडयूल
डॉ. नायर ने कहा कि क्रू मॉड्यूल इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह खुद ही टर्न हो सकता है और हालात को देखते हुए खुद को बदल सकता है. एक बार ऐसा हो गया तो मॉड्यूल के पैराशूट्स खुल जाएंगे और वह लॉन्च पैड से करीब 10 किलोमीटर दूर समुद्र में सुरक्षित लैंड कर जाएगा.
2025 में 3 लोगों को लेकर उड़ान भरेगा गगनयान
भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन साल 2025 में लॉन्च किया जाएगा. उस मिशन में 3 भारतीय जांबाज गगनयान के क्रू के तौर पर उड़ान भरेंगे. तीन दिन के मिशन के दौरान ये तीनों 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर मौजूद ऑर्बिट में पहुंचेंगे और फिर धरती पर वापस लौट आएंगे.
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