हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम चौंकाने वाले रहे. यूं तो यहां मुख्य लड़ाई भाजपा बनाम कांग्रेस थी. लेकिन इस चुनाव में आम आदमी पार्टी भी एक बड़े प्लेयर के रूप में चुनावी रण में उतरी. माना यही जा रहा था कि केजरीवाल की 'लोकप्रियता' हरियाणा चुनावों को काफी हद तक प्रभावित करेगी. चुनाव पूर्व उग्र प्रचार करने और पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को 'धरती का लाल' बताने के बावजूद AAP को हरियाणा के वोटर्स ने गहरा आघात दिया. साम, दाम, दंड भेद एक करने के बावजूद आम आदमी पार्टी न केवल हरियाणा में अपना खाता खोलने में नाकाम रही. बल्कि जिस तरह उसे महज 2 प्रतिशत वोट मिले,
हरियाणा में जिस तरह के परिणाम आए और जैसा हाल आम आदमी पार्टी का हुआ, स्वतः इस बात की पुष्टि हो जाती है कि, क्या दिल्ली क्या हरियाणा अरविंद केजरीवाल उस भरोसे को खो चुके हैं जो जनता ने किसी जमाने में उनपर किया था.
ध्यान रहे चुनावों से पहले केजरीवाल ने लोगों से ये अपील की थी कि, अगर उन्हें लगता है कि आम आदमी पार्टी और वो स्वयं ईमानदारी की राह पर हैं तो उन्हें वोट किया जाए. मगर अब जबकि नतीजे हमारे सामने हैं, कह सकते हैं कि जनता को आम आदमी पार्टी और केजरीवाल की बातें कोरी लफ्फाजी से ज्यादा और कुछ नहीं है.
सवाल ये है कि आखिर हरियाणा की जनता ने आम आदमी पार्टी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भरोसा क्यों नहीं किया? होने को तो इस सवाल पर कई बातें ही सकती हैं. लेकिन उन बातों से पहले हमें उन कारणों को समझना होगा जो हरियाणा में आम आदमी की ख़राब परफॉरमेंस के जिम्मेदार हैं. आइये नजर डालें उन कारणों पर जो हमें ये बताएंगे कि हरियाणा में आम आदमी पार्टी क्यों खाता खोलने में नाकाम रही.
पार्टी के लिए 'स्टार' चेहरे का अभाव
आम आदमी पार्टी हरियाणा में क्यों बुरी तरह विफल रही? इसका एक बड़ा कारण ये है कि यहां पार्टी की तरफ से कोई ऐसा चेहरा ही नहीं था, जो वोटर्स को रिझा पाता और उनके वोट जुटा पाता. तमाम राजनीतिक विश्लेषक ऐसे हैं जो इसपर एकमत हैं कि हरियाणा में आप का चुनाव अभियान अपने प्रमुख चेहरे अरविंद केजरीवाल की अनुपस्थिति के कारण प्रभावित हुआ.
भले ही 13 सितंबर को जेल से केजरीवाल की रिहाई के बाद हरियाणा में आप के खेमे में है हलचल थोड़ी तेज हुई .लेकिन क्योंकि यहां कोई बड़ा चेहरा नहीं था. इसलिए जनता ने भी आप के प्रति कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई.
स्पष्ट रणनीति का अभाव
छोटा या बड़ा दल कोई भी हो. यदि वो चुनावी तैयारी कर रहा है तो ये बहुत जरूरी होता है कि वो रणनीति बनाकर काम करे. इन बातों के इतर जब हम हरियाणा और हरियाणा में आम आदमी पार्टी को देखते हैं तो मिलता है कि यहां पार्टी में स्पष्ट राजनीति का अभाव था.
चूंकि हरियाणा में कांग्रेस भाजपा से लोहा लेने आई आम आदमी पार्टी के पास कोई जाहिर रणनीति नहीं थी, नतीजा ये निकला कि जब चुनावी परिणाम आए पार्टी अपना खाता खोलने में नाकाम रही.
बिना किसी गठबंधन के चुनावी रण में कूदना
हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले, आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस या किसी भी अन्य दल के साथ गठबंधन नहीं किया. हरियाणा की राजनीति को समझने वाले जानकार इस बात को मानते हैं कि यदि यहां आप ने किसी अन्य दल के साथ गठबंधन किया होता तो उसका खाता जरूर खुलता.
बताया जा रहा है कि हरियाणा में कांग्रेस के लोकल लीडर्स आप के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं थे लेकिन यदि गठबंधन हो जाता तो अवशय ही आप भाजपा के नंबर कम करने में कामयाब होती.
बता दें कि कांग्रेस के साथ गठबंधन करने में विफल रहने के बावजूद आम आदमी पार्टी ने हरियाणा की 90 में से 89 सीटों पर चुनाव लड़ा.
संगठनात्मक ढांचे का अभाव
चुनाव की तैयारी के दौरान हरियाणा में आम आदमी पार्टी के पास उचित संगठनात्मक ढांचे का अभाव था. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इसका पूरा असर राज्य में पार्टी की परफॉरमेंस पर दिखा.
कैंडिडेट्स का चुनाव
हरियाणा विधानसभा चुनवों में प्रत्याशियों के चयन को भी एक बड़े मुद्दे की तरह देखा जा रहा है. माना जा रहा है कि हरियाणा में आम आदमी पार्टी भीतरी कलह का सामना कर रही थी जिसके चलते कैंडिडेट्स के चयन पर एक राय नहीं हो पाई और ऐसे प्रत्याशी मैदान में आए जिन्होंने अपनी तरफ से खेल बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
ध्यान रहे कि 2019 के विधानसभा चुनावों में भी हरियाणा के लिहाज से आम आदमी पार्टी के लिए नतीजे निराशाजनक थे. 2019 में हरियाणा में आम आदमी पार्टी ने 46 सीटों पर चुनाव लड़ा था और सभी पर इसे हार का मुंह देखना पड़ा था. दिलचस्प ये कि तब उस समय पार्टी को NOTA से भी कम वोट शेयर हासिल हुआ था.
बहरहाल इस हार से सबक लेते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल को अपना आत्ममंथन करना चाहिए. जनता ने उन्हें हद दिखा दी है. धीरे धीरे जैसे हालात बन रहे हैं यदि केजरीवाल ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया तो भविष्य में शायद ही कोई पार्टी का नामलेवा हो.
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