एक कुशल राजनीतिज्ञ की क्या परिभाषा होती है? यूं तो इस सवाल के कई जवाब हो सकते हैं. लेकिन सबसे बेहतर उत्तर यही होगा कि ऐसा कोई भी नेता एक कुशल राजनीतिज्ञ की श्रेणी में आता है, जो अपनी जीत से बहुत ज्यादा उत्साहित न हो. अगर वो या उसका दल हार का सामना कर रहे हैं, तो वो न केवल अपना बल्कि उस हार का मंथन करे. अपनी गलतियों को स्वीकारे और आगे बढ़े. अब इन बातों के परिदृश्य में राहुल गांधी को देखिये साथ ही नजर डालिये हरियाणा चुनावों पर.
हरियाणा में एग्जिट पोल्स के उलट नतीजे आए हैं और वो हो गया है जिसकी कल्पना कांग्रेस और राहुल गांधी ने शायद ही कभी की हो. यहां तीसरी बार कमल खिला और इतनी करारी शिकस्त पर जिस तरह राहुल गांधी ने दाल में नमक बराबर प्रतिक्रिया दी. कह सकते हैं कि अभी उनके एक कुशल राजनीतिज्ञ बनने में वक़्त है.
हार जीत पर राहुल गांधी की गंभीरता कैसी है? इसे समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे चलना होगा और उस पल को याद करना होगा जब 4 जून को लोकसभा चुनावों के नतीजे आए थे. 4 जून को जब कांग्रेस ने एग्जिट पोल के पूर्वानुमानों को झुठलाते हुए लोकसभा चुनावों में 99 सीटें जीतीं, तो पार्टी सांसद राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर भाजपा पर 'संस्थाओं पर कब्जा करने' का आरोप लगाया और लोकतंत्र को 'बचाने' के लिए लोगों को धन्यवाद दिया.
लेकिन 8 अक्टूबर को जिस तरह कांग्रेस ने हरियाणा में मनोबल तोड़ने वाली हार का सामना किया और जैसी इसपर राहुल गांधी की चुप्पी रही. एक बड़ा वर्ग था जो ये मान बैठा कि वो व्यर्थ ही राहुल गांधी से उम्मीदें लगाए हुए है.
हरियाणा हारने के कई घंटों बाद जिस तरह राहुल ने प्रतिक्रिया दी, खुद इस बात की तस्दीख हो जाती है कि राहुल गांधी अपनी और कांग्रेस पार्टी की राजनीति के प्रति कितना गंभीर हैं.
इसी तरह जब हम प्रियंका गांधी वाड्रा की X टाइम लाइन को देखते हैं तो वहां भी हमें सन्नाटा ही दिखाई पड़ रहा है. बताते चलें कि प्रियंका का अंतिम ट्वीट 7 अक्टूबर का था जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र में रत्नागिरी स्टेशन की छत उद्घाटन का जिक्र किया और भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए.
आगे कुछ कहने से पहले ये बता देना जरूरी है कि प्रियंका से ये आशा की जा रही थी न केवल उन्होंने इस हार का अवलोकन किया होगा, बल्कि वो इसपर कुछ बोलेंगी भी.
कांग्रेस ने इस हार पर आरोप प्रत्यारोप की शुरुआत नतीजे आने के फ़ौरन बाद ही कर दी थी. बीते दिन ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने एक पत्रकार वार्ता कर ये दावा किया था कि नवीनतम रुझान समय पर अपलोड नहीं किए जा रहे थे साथ ही उन्होंने ईवीएम में हेराफेरी का आरोप भी लगाया था.
रमेश ने इस मामले में चुनाव आयोग को भी घसीटा है और एक पत्र के जरिये अपने मन की बात की है. इस मामले में भी रोचक ये रहा कि चुनाव आयोग ने कांग्रेस के आरोपों को खारिज कर दिया.
इस विवाद के बाद भाजपा ने तुरंत प्रतिक्रिया दी, जिसने कांग्रेस पर हारते समय 'रोने' का आरोप लगाया. भाजपा ने कांग्रेस पर बहुत जल्दी जश्न मनाने का आरोप लगाया और यहां तक कि हरियाणा में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी द्वारा उठाए गए जलेबी मुद्दे का हवाला दिया, लेकिन तब भी राहुल गांधी की तरफ से भाजपा के आरोपों का कोई काउंटर नहीं आया और इस जिम्मेदारी को भी, कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे को ही हैंडल करना पड़ा.
हार के बाद कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने हरियाणा की हार पर प्रतिक्रिया दी और कहा कि नतीजे 'अप्रत्याशित' थे. उन्होंने ट्वीट किया कि, 'हरियाणा के नतीजे अप्रत्याशित हैं. पार्टी जनता की राय का आकलन कर रही है. अपने जमीनी कार्यकर्ताओं से बात करने, पूरी जानकारी हासिल करने और तथ्यों की जांच करने के बाद पार्टी विस्तृत प्रतिक्रिया देगी.
विषय इतनी अहम हार पर राहुल गांधी की चुप्पी है. तो हम बस इतना कहते हुए अपनी बातों को विराम देंगे कि ये एक ऐसा समय है जब पूरे देश की नजर राहुल गांधी और उनकी कार्यप्रणाली पर है.
बतौर नेता राहुल गांधी को इस बात को समझना होगा कि देश भर में यात्राएं करने, किसी के घर खाना खाने, खाना पकाने से राजनीति नहीं होती. इससे सिर्फ परिपक्वता ही सवालों के घेरे में आती है.
बेहतर यही होगा कि राहुल गांधी हरियाणा में मिली हार से सबक लें. ओवर कॉन्फिडेंस का त्याग करें और उन कमियों को दूर करें जिनके चलते हर बीतते दिन के साथ कांग्रेस पार्टी गर्त के अंधेरों में जा रही है. ये वक़्त राहुल गांधी द्वारा खुद को साबित करने का है. न केवल कांग्रेस पार्टी, बल्कि पूरे देश की नजर उनपर है.
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