Haryana में जल्द ही Assembly Elections होने हैं. क्या भाजपा, क्या कांग्रेस हरियाणा के इस चुनावी दंगल में प्रत्येक न केवल ये चुनावी रण जीतना चाहता है. बल्कि इसके लिए उन्होंने अपनी पूरी जान झोंक दी है. दोनों ही दलों द्वारा बारीक से बारीक बातों का ख्याल रखा जा रहा है और प्रयास यही है कि कहीं भी चूक न हो.
2024 के इस विधानसभा चुनावों में जाति एक बड़ा मुद्दा है. इसलिए दलितों, जाटों और ओबीसी के बाद अब हरियाणा के मतदाताओं में करीब 12 प्रतिशत हिस्सा रखने वाले ब्राह्मण समुदाय ने भी राजनीतिक दलों का ध्यान अपनी ओर खींचा है.
सत्तारूढ़ भाजपा के प्रति नाराजगी के कारण ब्राह्मण समुदाय का राजनीतिक महत्व बढ़ गया है. बताते चलें कि 2019 में पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने ब्राह्मणों को उस वक़्त नाराज किया था जब उन्होंने ब्राह्मणों के एक सदस्य को पारंपरिक टोपी पहनने की अनुमति देने से मना कर दिया था.
ब्राह्मण समुदाय मनोहर लाल खट्टर से किस हद तक नाराज था इसका अंदाजा इसी साल मई में घटी उस घटना को देखकर लगाया जा सकता है जिसमें पानीपत में परशुराम जयंती के अवसर पर खट्टर को बोलने तक से रोक दिया गया था.
हरियाणा में भाजपा से नाराजगी का कारण सिर्फ खट्टर नहीं थे. भाजपा के एक अन्य नेता रणजीत चौटाला (जिन्हें अब पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है) ने ब्राह्मणों पर जाति के आधार पर समाज को विभाजित करने का आरोप लगाकर असंतोष को और हवा दी थी.
ध्यान रहे कि खट्टर ब्राह्मण समुदाय से तब भी नाराज हुए थे, जब पार्टी के एक प्रमुख ब्राह्मण नेता अरविंद शर्मा ने सार्वजनिक रूप से मुख्यमंत्री पद में रुचि दिखाई थी.
गौरतलब है कि, हरियाणा में ऐतिहासिक रूप से ब्राह्मण कांग्रेस का वोट बैंक रहे हैं, लेकिन 2014 में कई ब्राह्मणों ने भाजपा के पूर्व मंत्री राम बिलास शर्मा की ओर अपना झुकाव दिखाया, उन्हें उम्मीद थी कि वे मुख्यमंत्री बनेंगे. हालांकि, भाजपा के नेतृत्व ने पंजाबी मनोहर लाल खट्टर को चुना.
इस साल भी रामबिलास शर्मा को टिकट नहीं दिया गया, जिससे ब्राह्मणों में असंतोष और गहरा गया है. हरियाणा में तमाम ब्राह्मणों को यही लगता है कि भाजपा ने उनकी उपेक्षा की है और उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक माना है.
इस बीच, कांग्रेस को उम्मीद है कि वह उनका समर्थन हासिल कर लेगी, क्योंकि हुड्डा ने ब्राह्मण को उपमुख्यमंत्री बनाने और समुदाय को 12 प्रतिशत वोट शेयर देने का वादा किया है. कांग्रेस के इस वादे के बाद भाजपा ने ब्राह्मणों का समर्थन वापस जीतने के प्रयास तेज कर दिए हैं.
हरियाणा में भाजपा ने कांग्रेस के पांच के मुकाबले नौ ब्राह्मण उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. पार्टी ने भगवान परशुराम के नाम पर एक मेडिकल कॉलेज का नाम भी रखा है और एक स्मारक डाक टिकट भी जारी किया है. इसके अलावा, ब्राह्मण मोहन लाल बडोली को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है, जबकि सांसद खट्टर को सत्ता विरोधी मुद्दों से बचने के लिए दरकिनार कर दिया गया है.
हरियाणा में ब्राह्मणों को रिझाने का आलम क्या है? इसका अंदाजा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के उस वादे से लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा है कि यदि हरियाणा में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनाती है तो वह ब्राह्मण को उपमुख्यमंत्री नियुक्त करेंगे. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि राज्य में ब्राह्मण आयोग का गठन किया जाएगा.
दिलचस्प ये है कि हरियाणा में इस बार ब्राह्मण समुदाय के नेता भी मुख्यमंत्री पद के लिए जोर लगा रहे हैं. तमाम ब्राह्मण नेताओं का दावा है कि 1966 में राज्य के पहले ब्राह्मण मुख्यमंत्री भगवत दयाल शर्मा के सत्ता में आने के बाद से ही हरियाणा में ब्राह्मण समुदाय को हाशिए पर धकेला गया है.
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