Haryana में भाजपा ने इस रणनीति को बनाया जीत का आधार, कांग्रेस के नहले पर कुछ यूं जड़ा दहला

Written By बिलाल एम जाफ़री | Updated: Oct 10, 2024, 10:23 PM IST

हरियाणा विधानसभा चुनावों के नतीजे हैरान करने वाले रहे. यहां भले ही कांग्रेस का ध्यान जाट और दलित मतदाताओं पर रहा हो, लेकिन किसी का भी दिल जीतने में वो नाकाम रही. इसके विपरीत, भाजपा ने ओबीसी, दलित और ब्राह्मणों पर फोकस किया और रोचक ये कि उम्मीद के विपरीत इन समुदायों ने भाजपा को वोट किया और जिताया.

हरियाणा विधानसभा चुनावों के नतीजे आए हुए भले ही ठीक ठाक वक़्त गुजर चुका हो, लेकिन जिस तरह यहां भाजपा ने एग्जिट पोल्स के नतीजों पर थप्पड़ जड़ते हुए प्रचंड जीत दर्ज की. अब भी उसका अवलोकन हो रहा है. और कई ऐसी बातें निकल कर सामने आ रही हैं, जो ये बताने के लिए काफी हैं कि यदि हरियाणा में लगातार तीसरी बार कमल खिला, तो वो महज तुक्का या इत्तेफाक नहीं था. हम ऐसा इसलिए भी कह रहे हैं क्योंकि हरियाणा में भाजपा ने जाटलैंड में कांग्रेस से ज़्यादा सीटें हासिल की हैं. 

ध्यान रहे कि हरियाणा में कांग्रेस ने जाट समुदाय से 27 उम्मीदवार उतारे जिसमें सिर्फ़ 12 ही उम्मीदवार ऐसे थे जो सीटें जीत पाए. वहीं भाजपा ने उचाना कलां, सफीदों, सोनीपत, जींद और गोहाना सहित जाट बहुल इलाकों में 18 सीटों पर जीत दर्ज की. जिक्र जाट सीटों का हुआ है तो एक रोचक जानकारी ये भी है कि, भाजपा ने उचाना कलां सीट पर मात्र 32 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की.

ज्ञात हो कि 2019 में भाजपा केवल छह जाट सीटें जीतने में सफल रही. जाटलैंड की शेष तीन सीटें इनेलो और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने जीतीं।  जिक्र जाटलैंड और जाट वोटर्स का हुआ है तो ये बता देना भी जरूरी हो जाता है कि हरियाणा में जाट वोटों में भाजपा की हिस्सेदारी में उतार-चढ़ाव होना कोई नई या हैरान करने वाली बात नहीं है.

2014 में पार्टी को 17 प्रतिशत जाट वोट मिले थे, जो 2019 में बढ़कर 19 प्रतिशत और 2024 के लोकसभा चुनावों में 27 प्रतिशत हुए. भले ही हरियाणा में जाटों और कृषक समुदायों के बीच प्रो कांग्रेस सेंटीमेंट रहा हो लेकिन बावजूद इसके कांग्रेस इस समर्थन को प्रभावी ढंग से जुटाने में विफल रही.

जाटलैंड में भाजपा और कांग्रेस की नॉन जाट रणनीति

हरियाणा चुनावों के तहत एक रोचक तथ्य ये भी रहा कि यहां राजनीतिक दलों ने सभी 33 जाट-बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में जाट नेताओं को मैदान में उतारा. जबकि भाजपा एक नई रणनीति के साथ आई और उसने इनमें से कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में गैर-जाट नेताओं को मैदान में उतारकर परंपरा को तोड़ा.

भले ही भाजपा के इस कदम ने राजनीतिक पंडितों तक को हैरत में डाल दिया हो लेकिन पार्टी के लिए ये कदम कारगर साबित हुआ. हरियाणा की जाट आबादी का लगभग 30-35 प्रतिशत हिस्सा हिसार, जींद, झज्जर, कैथल, सोनीपत और भिवानी जैसे जिलों में केंद्रित है, जबकि सिरसा, करनाल, पानीपत, फतेहाबाद, कुरुक्षेत्र, पंचकूला, यमुनानगर, पलवल और फरीदाबाद जैसे जिलों में जाट आबादी 15-25 प्रतिशत के बीच है.

भाजपा और कांग्रेस दोनों ने इन निर्वाचन क्षेत्रों में जाट और गैर-जाट उम्मीदवार उतारे. 13 विधानसभा सीटों पर दोनों पार्टियों ने जाट उम्मीदवारों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा किया. हालांकि, भाजपा ने 11 गैर-जाट उम्मीदवार भी उतारे, जबकि कांग्रेस ने केवल तीन गैर-जाट उम्मीदवारों को भरोसे के काबिल समझा.

जाट शासन के डर से गैर-जाट मतदाता हुए एकजुट 

तमाम राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा हरियाणा विधानसभा चुनावों को पेंचीदा कहा जा रहा है.  और ये बात यूं ही नहीं है.  2024 के हरियाणा चुनावों में कांग्रेस ने जाट और दलित समुदायों पर ध्यान केंद्रित किया. जो हरियाणा के मतदाताओं का क्रमशः 22 प्रतिशत और 21 प्रतिशत हिस्सा हैं. वहीं भाजपा ने ओबीसी, पंजाबी ब्राह्मण और दलितों से मिलकर बने बड़े मतदाता आधार पर ध्यान केंद्रित किया - जो कुल मतदाताओं का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा बनाते हैं.

गौरतलब है कि हरियाणा में भाजपा ने 14 ओबीसी उम्मीदवार उतारे, जिनमें से 10 चुनाव जीत गए.  इसके उलट, कांग्रेस के केवल तीन ओबीसी उम्मीदवार ही विजयी हुए, जिससे कांग्रेस की जाट समुदाय पर अत्यधिक निर्भरता उजागर हुई. कांग्रेस के भीतर कुछ जाट नेताओं ने हुड्डा परिवार के तहत 'जाट शासन' की वापसी का संकेत दिया जिससे लोगों की एक बड़ी आबादी में डर की भावना का संचार हुआ.

चूंकि बात डर की है इसलिए मिर्चपुर की घटना का जिक्र कर लेना भी बहुत जरूरी है.  इस घटना में जाट समुदाय के सदस्यों ने दलितों के घरों में आग लगा दी और दो दलितों की हत्या कर दी थी. हरियाणा में जनता जाटों के सत्ता में आने की बात सोचकर ही घबरा गई नतीजा ने निकल कि गैर-जाट और दलित मतदाता एकजुट हो गए जिसका पूरा फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिला.

इसके अलावा भाजपा क्यों बाजी मारने में कामयाब हुई इसकी एक बड़ी वजह ये रही कि भाजपा ने ओबीसी वोटर्स को ये विश्वास दिलाया कि यदि वो सत्ता में आती है तो क्रीमी लेयर के लिए वार्षिक आय सीमा 6 लाख रुपये से बढ़ाकर 8 लाख रुपये कर देगी वहीं उसने स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी समुदाय को 8 प्रतिशत आरक्षण देने की अपील की. 

इसमें कोई शक नहीं है कि हरियाणा में भाजपा इतिहास रचने में कामयाब हुई है. ऐसा क्यों हुआ यूं तो इसपर कहने और बताने के लिए तमाम तरह की बातें हैं.  लेकिन जिस सधी हुई रणनीति का परिचय भारतीय जनता पार्टी ने दिया इतना तो तय है कि उसे चुनाव जीतना और उसे प्रभावी बनाना, दोनों ही आता है. 

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