Isreal - Lebanon छोड़िये, Sudan में दाने-दाने को मोहताज हैं 7 लाख से ऊपर लोग, यहां भी वजह War है!

Written By बिलाल एम जाफ़री | Updated: Oct 16, 2024, 06:44 PM IST

Civil War के चलते अफ़्रीकी मुल्क Sudan के हालात बहुत ख़राब हैं. जैसा आंतरिक गतिरोध मुल्क में चल रहा है उसका सीधा असर कृषि पर देखने को मिल रहा है. बताया जा रहा है कि वर्तमान में 7,56,000 सूडानी ऐसे हैं जो खाद्यान्न की कमी के कारणवश भूखों मरने पर विवश हैं. 

सूडान. उत्तर-पूर्वी अफ़्रीका में मौजूद एक देश, जहां गृहयुद्ध चल रहा है और लगभग हर रोज़ ही मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है. वो तमाम लोग, जो लेबनान में इजरायल द्वारा किये जा रहे हमले देख रहे हैं. जिन्हें गाजा पट्टी से आ रही तस्वीरें विचलित कर रही हैं. उन्हें इस अफ़्रीकी मुल्क को इस कारण भी देखना चाहिए क्योंकि यहां हर बीतने दिन के साथ हालात बद से बदतर हो रहे हैं.  गृहयुद्ध के चलते सूडान में भुखमरी और अकाल की नौबत आ गई है. आंकड़ों पर नजर डालें तो मिलता है कि करीब 7,56,000 सूडानी ऐसे हैं जो खाद्यान्न की कमी के कारणवश भूखों मरने पर विवश हैं. 

आगे बातें होंगी साथ ही हम युद्ध की विभीषिका से भी रू-ब-रू होंगे. लेकिन उससे पहले हमें पूर्व-मध्य सूडान में स्थित है अल जजीरा स्टेट का रुख करना होगा. सूडान का ये हिस्सा कृषि का केंद्र कहलाता है. यहां से कुछ ही घंटों की दूरी पर है इस स्टेट की राजधानी अल मदनी जो भीषण नरसंहार की साक्षी बन रही है. यहां नागरिक क्षेत्रीय नियंत्रण के लिए सेना से लड़ रहे हैं, जिसके चलते उन्हें स्थानीय रैपिड सपोर्ट फोर्स (आरएसएफ) द्वारा आतंकित किया जा रहा है,

संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) के अनुसार, चल रहे युद्ध ने सूडान में 14 मिलियन लोगों को भयंकर भूखमरी की ओर धकेल दिया है. 1.5 मिलियन लोग अब या तो अकाल का सामना कर रहे हैं या अकाल के खतरे में हैं। ध्यान रहे कि लाखों हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि होने के बावजूद, फैलती हिंसा का मतलब ये है कि देश और इस पूरे इलाके को खिलाने वाले किसान बड़े पैमाने पर भुखमरी की कगार पर हैं.

बताया जा रहा है कि सिविल वॉर के करणवश सूडान में जगह-जगह सैन्य चौकियां निर्मित कर दी गयीं हैं. बार बार लोगों की चेकिंग की जाती है. यदि चौकी पर तैनात लोगों को खाद, कीटनाशक या फसल के लिए दवाएं में से कुछ भी 'संदिग्ध' लगता है तो उस व्यक्ति का बुरा हाल कर दिया जाता है जिसने तलाशी का सामना किया है. 

इसके अलावा जिस तरह युद्ध में बमों और घातक हथियारों का इस्तेमाल किया जा रहा है वो खड़ी हुई फसलों तक को प्रभावित कर रहा है. जिसके चलते वो बर्बाद हो जा रही हैं. क्योंकि सूडान की एक बहुत बड़ी आबादी फसल और कृषि पर निर्भर है इस लिए यहां किसान भी खासे परेशान हैं.

युद्ध की विभीषिका के बीच स्थानीय किसानों का कहना है कि, 'युद्ध ने हमारे खेतों को बहुत बुरी तरह प्रभावित किया है. किसान बताते हैं कि उनके पास न तो कोई फंडिंग है और न ही कोई ईंधन. इसके अलावा स्थानीय किसानों के पास अपनी खेती के लिए उर्वरक और कीटनाशक जैसी चीजें भी नहीं है. किसान परेशान हैं कि इस साल उनके पास कुछ नहीं है और आगे क्या होगा इसकी भी उन्हें कोई जानकारी नहीं है. 

इस पूरे क्षेत्र में हालात कैसे हैं? इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मुल्क में फैली हिंसा के कारण खेतों को जला दिया गया है और गांव के गांव खाली हो गए हैं. सूडान में चाहे वो अल जजीरा स्टेट हो या फिर अल मदनी और गदरिफ़ लगभग हर स्थान पर बुरा हाल हैं और औरतें बच्चे भूखे मरने पर मजबूर हैं.   

तमाम जगहों पर अस्थायी शिविर बनाए गए हैं जिनमें हजारों बच्चे और गर्भवती औरतें बिना भोजन के सहारे रहने को मजबूर हैं. चूंकि यहां ज्यादातर पुरुष जिसमें युवा और बुजुर्ग सभी शामिल हैं युद्ध में लिप्त हैं तो माना यही जा रहा है कि सिर्फ भोजन की कमी के चलते दुनिया यहां हजारों मौतों की साक्षी बनेगी.

फ़िलहाल मुल्क में कुछ संस्थाओं द्वारा भोजन मुहैया तो कराया जा रहा है लेकिन जैसे हालात हैं, उतना भोजन लोगों का पेट भरने और उन्हें पूरा पोषण प्रदान करने के लिए काफी नहीं है. 

गौरतलब है कि सूडान में जनरल अब्देल फ़तह अल-बुरहान के नेतृत्व में सूडान आर्मी (SAF).और, जनरल मोहम्मद हमदान दगालो की सरपरस्ती में पैरामिलिटरी गुट रैपिड सपोर्ट फ़ोर्सेज़ (RSF) एक दूसरे के आमने सामने हैं.  सूडान में हो रही इस सिविल वॉर को लेकर एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि किसी ज़माने में ये दोनों ही जनरल एक-दूसरे के साथी रह चुके हैं.

बताया तो ये भी जाता है कि ये दोनों उस वक़्त भी साथ थे जब सूडान में 30 सालों तक शासन करने वाले ओमार अल-बशीर के विरुद्ध 2019 मे प्रदर्शन हुआ था. 

जैसे ही सूडान से ओमार अल-बशीर की सत्ता का सफाया हुआ इन दोनों ने अपनी राहें जुदा कर लीं. अब दोनों ही जनरल सूडान पर शासन करने की फ़िराक़ में हैं और इन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि आम लोगों के साथ क्या होता है और उन्हें दो वक़्त की रोटी और मूलभूत सुविधाएं मिल भी पा रही हैं या नहीं.

सूडान की राजनीतिक सामाजिक परिदृश्य को समझने वाले ये तक मान रहे हैं कि ये दोनों जनरल अपनी सेनाओं के साथ तब तक लड़ते रहेंगे, जब तक कि किसी एक को मुल्क का फ़ुल कंट्रोल हासिल नहीं हो जाता. दोनों ही के लिए अस्तित्व की लड़ाई है जिसकी कीमत आम सूडानी लोगों को चुकानी पड़ रही है.

सूडान गृहयुद्ध के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र ने एक अनुमान  लगाया है जिसके अनुसार, आंतरिक गतिरोध के चलते अब तक 15,000 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. आंकड़ों की मानें तो जून 2024 तक 7.2 मिलियन से ज़्यादा लोग अपना घर छोड़ कर खानाबदोशों की तरह रहने मजबूर हैं और 2.1 मिलियन से  ज्यादा ऐसे लोग हैं जो देश छोड़कर भाग गए हैं.

बहरहाल विषय भोजन और भुखमरी है.  तो हम बस ये कहते हुए अपनी बातों को विराम देंगे कि आंतिरक गतिरोध की भेंट चढ़ चुका सूडान, भुखमरी-अकाल के जरिये अपनी ही लगाई हुई आग में जल रहा है. सत्ता को न लोगों से मतलब है न ही उनका कोई वास्ता उनकी मौत से है. 

एक मुल्क के रूप में सूडान की हालत खस्ता है. भविष्य क्या होता है? इसका फैसला तो वक़्त करेगा. मगर वर्तमान में जैसी सूरत एक देश के रूप में सूडान की दिख रही है उसमें भूख से बिलखते छोटे छोटे बच्चे हैं.  दर्द से बिलखती कुपोषण की मार सहती गर्भवती महिलाएं हैं.  कुल मिलाकर सूडान की स्थिति चिंताजनक है जिसका संज्ञान दुनिया के हर उस शख्स को लेना चाहिए जो मानवता की बातें करता है.

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