Turkey Earthquake: भारत का भी 59 फीसदी इलाका डेंजर जोन में, अगर आया तुर्की जैसा भूकंप तो क्या होगा?

Written By कुलदीप पंवार | Updated: Feb 08, 2023, 09:16 AM IST

तुर्की-सीरिया में भूकंप की विनाशलीला. 

India Earthquakes: तुर्की-सीरिया के भूकंप में 5,500 लोग मर चुके हैं. भारत में भी जमीन के अंदर टेक्टोनिक प्लेट्स तुर्की की तरह टकराती रहती हैं.

डीएनए हिंदी: तुर्की और सीरिया में आए 7.8 मैग्नीट्यूड के भूकंप के बाद लाशों की गिनती जारी है. अब तक 5,500 से ज्यादा लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है. कई शहर पूरी तरह ध्वस्त हो गए हैं. भारत भी तुर्की की तरह टेक्टोनिक प्लेट्स के टकराव वाले जोन में बसा हुआ है. यहां भी भूगर्भ में हलचल चलती रहती है, जिससे तमाम छोटे-बड़े भूकंप रोजाना किसी न किसी हिस्से को हिलाते रहते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2022 में ही भारत में 1,000 से ज्यादा भूकंप के झटके आए थे. यदि देश में भूकंप के पिछले 125 साल के आंकड़ें देखें तो किसी भी दिन देश में कहीं पर भी धरती हिलने से तबाही मचने की खबर आ सकती है. देश का 59 फीसदी इलाका भूकंप आने की उच्च संभावना वाले चार जोन में शामिल है. इनमें भी 11 फीसदी इलाका भूकंप की आशंका वाले जोन-5 यानी सबसे ज्यादा संभावित क्षेत्र में है. इसके अलावा जोन-4 में भी 18% भारतीय जमीन आती है, जबकि जोन-2 और जोन-3 में 30 फीसदी देश आता है. इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे देश में भूकंप का खतरा कितना ज्यादा है.

पहले जानिए देश में पिछले 125 साल में आए सबसे बड़े 8 भूकंप 

  • 15 अगस्त, 1950 के दिन जब देश गणतंत्र घोषित होने के बाद पहला स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, तब असम और तिब्बत में भूकंप आया था, जिसमें 1,500 से ज्यादा लोग मारे गए थे. रिक्टर स्केल पर 8.6 तीव्रता के साथ यह पिछले 125 साल के दौरान भारत में आया सबसे बड़ा भूकंप है. इसका एपिसेंटर तिब्बत के रीमा शहर में था.
  • 15 जनवरी, 1934 को भारत के इतिहास के सबसे भयावह भूकंप में से एक ने बिहार-नेपाल बॉर्डर पर धरती को हिला दिया. करीब 8.3 मैग्नीट्यूड वाले इस भूकंप का एपिसेंटर पूर्वी नेपाल में था, लेकिन इसका असर इतना ज्यादा था कि करीब 650 किलोमीटर दूर कोलकाता में भी इसके झटके महसूस किए गए. इस भूकंप में 30,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे और सबसे ज्यादा नुकसान बिहार के पूर्णिया, मुजफ्फरपुर, मुंगेर और चंपारण इलाकों को हुआ था. 
  • 12 जून, 1997 को मेघालय के शिलांग में रिक्टर स्केल पर 8.1 तीव्रता का भूकंप आया था, जिसमें 1542 लोगों की मौत ऑफिशियली दर्ज की गई थी. 
  • 4 अप्रैल, 1905 को हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में भयानक भूकंप आया. रिक्टर स्केल पर करीब 7.8 मैग्नीट्यूड वाले इस भूकंप में 20,000 से ज्यादा लोगों की मौत का अनुमान है.
  • 26 जनवरी, 2001 को जब देश गणतंत्र दिवस की 51वीं सालगिरह मना रहा था, तो गुजरात का कच्छ इलाका हिल उठा. सुबह 8.40 बजे आए भयावह भूकंप से करीब 2 मिनट तक धरती हिलती रही. रिक्टर स्केल पर 7.7 मैग्नीट्यूड वाले भूकंप से कई गांव और शहर पूरी तरह ध्वस्त हो गए. सबसे ज्यादा नुकसान भुज, अंजार, वोंध और भाछू में हुआ. इस दौरान 20,000 से ज्यादा लोग मारे गए.
  • 8 अक्टूबर, 2005 को पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में सुबह 9.20 बजे रिक्टर स्केल पर 7.6 तीव्रता वाला भूकंप आया. पीओके में मुजफ्फराबाद के करीब एपिसेंटर वाले भूकंप का असर जम्मू और श्रीनगर समेत तमाम उत्तर भारत में महसूस किया गया. इस भूकंप में करीब 87,000 लोगों की मौत का अनुमान है.
  • 30 सितंबर, 1993 को महाराष्ट्र के लातूर जिले में भयानक भूकंप आया. लातूर के किलारी गांव में एपिसेंटर वाले इस भूकंप को रिक्टर स्केल पर 6.4 मैग्नीट्यूड के साथ आंका गया. भूकंप इतना भयानक था कि 52 गांव पूरी तरह मिट्टी में मिल गए और 20,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. सबसे ज्यादा नुकसान लातूर और उस्मानाबाद जिलों में हुआ था.
  • 20 अक्टूबर, 1991 को उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) के उत्तरकाशी, चमोली और टिहरी जिलों में भूकंप के झटके लगे. रात के समय आए करीब 6.1 मैग्नीट्यूड वाले भूकंप का असर दिल्ली में भी महसूस किया गया. पहाड़ी जिलों में एपिसेंटर होने के चलते इससे बड़े पैमाने पर इमारतें गिर गईं. करीब 1,000 से ज्यादा लोगों की मौत इस भूकंप के कारण दर्ज की गई. 

भारत में सबसे ज्यादा नुकसान हिमालयी इलाकों में होगा

यदि भारत, नेपाल और पाकिस्तान में आए भूकंपों को जोड़ लें तो एक्सपर्ट्स सबसे ज्यादा खतरा हिमालयी इलाकों में मानते हैं. हिमालय दुनिया का सबसे नया पहाड़ हैं, जिसके निर्माण का कारण ही करीब चार करोड़ वर्ष पहले इंडियन टेक्टोनिक प्लेट और यूरेशियाई प्लेट का आपस में टकराव था. यह टकराव अब भी जारी है, जिसके चलते हिमालय 1 सेंटीमीटर हर साल ऊंचा हो जाता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि हिमालय के नीचे भूगर्भ में टेक्टोनिक प्लेट्स में अब भी बड़े पैमाने पर हलचल हो रही है. यहां भूगर्भ में इंडियन टेक्टोनिक प्लेट और तिब्बतन प्लेट्स आपस में टकराती रहती हैं, जिससे प्रेशर रिलीज होने के कारण इस इलाके में लगातार छोटे भूकंप महसूस होते रहते हैं. पिछले 125 साल में देश में आए 8 बड़े भूकंप में से भी 6 इसी इलाके में दर्ज किए गए हैं. इनमें साल 2015 के नेपाल में आए भयावह भूकंप को भी जोड़ लें तो हालात और ज्यादा खतरनाक दिखेंगे. ऐसे में यहां कभी भी धरती का हिलना बड़े हादसे का सबब बन सकता है.

कौन से राज्य किस भूकंप जोन (Indian Earthquake Zone) में

  • भूकंप जोन-5: धरती हिलने के लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील माने जाने वाले इस जोन में कश्मीर घाटी, पश्चिमी हिमाचल, पूर्वी उत्तराखंड, गुजरात का कच्छ एरिया, उत्तरी बिहार, पूर्वोत्तर के सभी राज्य और अंडमान व निकोबार द्वीप समूह को शामिल किया गया है.
  • भूकंप जोन-4: जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्से, लद्दाख, हिमाचल और उत्तराखंड के कुछ इलाके, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, सिक्किम, उत्तरी उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल का छोटा इलाका, गुजरात, पश्चिमी घाट पर महाराष्ट्र का कुछ हिस्सा और थोड़ा सा पश्चिमी राजस्थान का इलाका जोन-4 में शामिल हैं.
  • भूकंप जोन-3: इस जोन में उत्तर प्रदेश, गोवा, लक्षद्वीप, केरल, हरियाणा का कुछ हिस्सा, पंजाब, पश्चिम बंगाल व गुजरात के कुछ इलाके, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश व बिहार के कुछ हिस्से, पश्चिमी राजस्थान और झारखंड का उत्तरी हिस्सा शामिल है. महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक के भी कुछ इलाकों को इस जोन में रखा गया है.
  • भूकंप जोन-2: इस जोन में हरियाणा, मध्य प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु का कुछ हिस्सा शामिल है.
  • भूकंप जोन-1: यह वो जोन है, जिसमें भूकंप आने की संभावना बेहद कम है. इसमें देश के बाकी बचे सभी एरिया आते हैं.

(ये जोन भारतीय मानक ब्यूरो यानी BIS ने निर्धारित किए हैं.) 

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