Joshimath Sinking: हर साल 2.5 इंच धंस रहा है जोशीमठ शहर, क्या सरकार के उपाय बचा पाएंगे जिंदगियां

कुलदीप पंवार | Updated:Jan 11, 2023, 06:39 AM IST

Joshimath Landslide: इस रिमोट सेंसिंग इमेज में लाल डॉट वो इलाके हैं, जहां जोशीमठ घाटी में धंसाव हो रहा है.

Joshimath Crisis: जोशीमठ में भूधंसाव के लिए स्थानीय लोग NTPC टनल में जल रिसाव को कारण मानते हैं. अब सरकार इसकी जांच कराएगी.

डीएनए हिंदी: Joshimath News- जोशीमठ शहर में भूधंसाव (Joshimath Landslide) रोजाना तेज हो रहा है. पूरे शहर में मकानों और ऐतिहासिक स्थलों में बड़ी-बड़ी दरारें आने के बाद केंद्र से लेकर राज्य तक का अमला एक्टिव हो चुका है. अब सामने आ रहा है कि जिस भूधंसाव से आज इस पौरोणिक शहर के निवासी जूझ रहे हैं, उसकी चेतावनी एक या दो साल नहीं बल्कि 47 साल पहले ही तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर महेश चंद मिश्रा की अध्यक्षता वाली कमेटी ने दे दी थी. साल 1976 में मिश्रा कमेटी ने वही उपाय सुझाए थे, जिन पर अब राज्य सरकार ने तेजी से काम करने की घोषणा की है. लेकिन क्या अब ये उपाय सफल साबित होंगे? ये सवाल उस ताजा स्टडी के बाद उठ रहा है, जिसमें बताया गया है कि जोशीमठ शहर और उसके आसपास का एरिया हर साल तेजी से नीचे की तरफ धंस (Joshimath Sinking) रहा है. स्टडी के मुताबिक, यह एरिया हर साल 2.5 इंच जमीन के अंदर समा रहा है. 

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रिमोट सेंसिंग से दिखा जोशीमठ के पहाड़ का बदलता हाल

जोशीमठ और उसके आसपास के इलाके के पहाड़ के अंदर का नजारा किस तेजी से बदल रहा है. इसका अंदाजा उन सैटेलाइट इमेज से लगता है, जो जुलाई 2020 से मार्च 2022 के दौरान क्लिक की गई हैं. इन तस्वीरों में पूरा एरिया धीरे-धीरे अंदर धंसता दिखाई दे रहा है. दो साल की यह स्टडी देहरादून स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (Indian Institute of Remote Sensing) ने की है. इस स्टडी से सामने आया है कि जोशीमठ और उसके आसपास का एरिया हर साल 6.5 सेंटीमीटर या 2.5 इंच तक अंदर धंस रहा है. इस स्टडी में साफ दिख रहा है कि समस्या केवल जोशीमठ शहर तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह पूरी घाटी के पहाड़ के अंदर फैल चुकी है.

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भूगर्भ में चल रही हैं संवेदनशील गतिविधियां

IIRS की इस स्टडी के दौरान क्लिक की गई सैटेलाइट सेंसिंग इमेज में जमीन के अंदर की टेक्टोनिक एक्टिविटीज भी रिकॉर्ड की गई हैं. इनसे साफ सामने आ रहा है कि जोशीमठ के भूगर्भ में बेहद संवेदनशील गतिविधियां चल रही हैं.

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ऐसे में उठ रहा है ये सवाल

राज्य सरकार ने जोशीमठ में धंसाव रोकने के लिए 4 वार्ड के सभी भवन खाली कराने का निर्णय लिया है. जानकारी के मुताबिक, कम से कम 678 भवन खाली कराने की तैयारी है. इनमें 87 खाली कराए जा चुके हैं. कुछ भवनों को तोड़ने की भी तैयारी है. जोशीमठ में सीवर सिस्टम भी बनाने की योजना है. अभी तक सामने आ रही चर्चा के हिसाब से सारे उपाय केवल जोशीमठ को केंद्र में रखकर बन रहे हैं, लेकिन IIRS की स्टडी में धंसाव पूरी घाटी में होने का इशारा किया गया है. ऐसे में सवाल यह है कि क्या जोशीमठ में किए उपायों के बावजूद धंसाव खत्म हो पाएगा? क्या इससे घाटी के बाकी हिस्से में भी असर होगा?

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स्थानीय लोगों के आरोप देखते हुए यह सवाल बेहद अहम

यह सवाल स्थानीय लोगों के उस आरोप को देखते हुए बेहद अहम है, जिनमें जोशीमठ के धंसाव के लिए NTPC (National Thermal Power Corporation) की तपोवन-विष्णुगाड़ 520 मेगावाट जल विद्युत परियोजना (Tapovan project) की टनल को कारण बताया जा रहा है. लोगों का आरोप है कि इस टनल से प्राकृतिक जलस्रोत को जमीन के अंदर नुकसान हुआ है, जिससे पूरा पहाड़ धंसने लगा है. हालांकि अब तक NTPC और राज्य सरकार, दोनों ही इस आरोप को सही नहीं मान रहे हैं. लेकिन भूधंसाव की दरारों के अंदर से निकल रहे कीचड़युक्त पानी का जवाब अब तक नहीं मिला है. इसलिए अब राज्य सरकार ने इस पानी का कारण जानने के लिए भी एक्सपर्ट्स की मदद लेने का निर्णय लिया है. उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव रंजीत सिन्हा ने इसके लिए रूड़की के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी (National Instituite Of Hydrology) के वैज्ञानिकों से जांच कराने की बात कही है.

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