Pinaka Rocket Deal: आर्मीनिया से डील में भारत करेगा एक तीर से दो शिकार, जानिए इससे कैसे घिरेगा पाकिस्तान

कुलदीप पंवार | Updated:Sep 30, 2022, 10:23 PM IST

आर्मीनिया से झगड़े में अजरबैजान को पाकिस्तान सपोर्ट कर रहा है. भारत आर्मीनिया की मदद से क्षेत्रीय संतुलन साधने के साथ हथियार निर्यात की राह खोलेगा.

डीएनए हिंदी: यूक्रेन-रूस युद्ध (Ukraine Russia War) के करीब ही एक और एरिया भी है, जो बीच-बीच में बार-बार गोलाबारी से गूंज उठता है. ये गोलाबारी अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच हो रही है, जिसमें अब तक अजरबैजान भारी पड़ता दिख रहा है. अजरबैजान में भारत का भी बड़ा निवेश है. इसके बावजूद भारत ने पिछले दिनों आर्मीनिया के साथ 2,000 करोड़ रुपये के हथियारों के एक्सपोर्ट की डील की है, जिससे बहुत सारे लोग आश्चर्य में पड़ गए हैं. हालांकि रक्षा एक्सपर्ट की मानी जाए तो भारत के इस रुख का लिंक पाकिस्तान से जुड़ा है, जो खुलकर अजरबैजान का समर्थन कर रहा है और जल्द ही उसे चीन की मदद से पाकिस्तान में बना जेएफ-17 विमान भी बेचने जा रहा है. ऐसे में आर्मीनिया की मदद करके भारत 'एक तीर से दो शिकार' कर रहा है.

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पहले जानते हैं कि क्या है पूरी डील

आर्मीनिया ने भारत में बने हथियार खरीदने का निर्णय लिया है. दोनों देशों के बीच यह डील 2,000 करोड़ रुपये की है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने इस डील के तहत सबसे पहले स्वदेश में विकसित मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चिंग सिस्टम पिनाका (Pinaka) की सप्लाई करने का निर्णय लिया है. यह रॉकेट लॉन्चिंग सिस्टम भारत ने भी चीन से सटी LAC और पाकिस्तान से मिली LOC पर तैनात कर रखा है. पहली बार किसी दूसरे देश को दिए जा रहे पिनाका को रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (DRDO) ने विकसित किया है, जो हर तरह की परिस्थिति में ट्रायल के दौरान बेहतरीन साबित हुआ है.

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पाकिस्तान बढ़ा रहा है क्षेत्र में असर

अजरबैजान में पाकिस्तान ने अपना प्रभाव हालिया सालों में बेहद बढ़ाया है. अजरबैजान को पहले से ही तुर्की से भी हथियार और अन्य मदद मिलती रही है. पाकिस्तान भी अब मदद कर रहा है. इन दोनों की नजर अजरबैजान के गैस फील्ड का उपयोग अपने लिए करने पर टिकी है ताकि सस्ती गैस उपलब्ध हो सके. इससे भारत को वहां अपनी तेल कंपनी ओएनजीसी (ONGC) की तरफ से कई गैस फील्ड में किए निवेश के संकट में पड़ने का खतरा दिख रहा है. 2017 में तुर्की, अज़रबैजान और पाकिस्तान ने  त्रिपक्षीय सुरक्षा सहयोग समझौता भी किया था. 2020 में तीनों देशों की सेनाओं ने मिलकर 'थ्री ब्रदर्स' सैन्य अभ्यास भी किया था.

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अजरबैजान लगातार दिखा रहा भारत विरोधी रुख

पाकिस्तान और तुर्की के खेमे में शामिल होने के बाद से ही अजरबैजान लगातार भारत विरोधी रुख दिखाता रहा है. भारत के बड़े पैमाने पर निवेश के बावजूद कश्मीर मुद्दे पर अजरबैजान ने पाकिस्तान का समर्थन किया है. साथ ही जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म करने और अनुच्छेद-370 हटाने के मुद्दे पर भी भारत की आलोचना की थी. 

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आर्मीनिया से दोस्ती बढ़ाकर भारत साध रहा क्षेत्रीय संतुलन

ऐसे में क्षेत्रीय संतुलन साधने के लिए भारत को इस क्षेत्र में किसी साथी की जरूरत थी. आर्मीनिया यही साथी बन रहा है. आर्मीनिया को हथियार सप्लाई करने से भारत जहां उसकी मदद करेगा, वहीं इससे वह अजरबैजान पर भी दबाव बना सकता है. आर्मीनिया को भारत इससे पहले 2020 में भी अजरबैजान से युद्ध के दौरान उसके हथियारों का पता लगाने के लिए स्वाति रडार सप्लाई कर चुका है. 

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डील से भारत के लिए खुलेगा हथियार निर्यात का मार्केट

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, भारत साल 2017 से 2021 तक दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश रहा है. इस दौरान दुनिया में बेचे गए हथियारों का 11% हिस्सा भारत ने ही खरीदा है, लेकिन साल 2020 में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वदेशी हथियार निर्माण का टारगेट तय किया था. इसके बाद 'मेक इन इंडिया' के तहत भारत में बड़े पैमाने पर हथियार, उनसे जुड़े उपकरणों के निर्माण व सॉफ्टवेयर तैयार करने की कवायद शुरू की गई है. साल 2021-22 के दौरान करीब 13,000 करोड़ रुपये के हथियार व उनके सॉफ्टवेयर निर्यात किए गए. 

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एक्सपर्ट्स का कहना है कि हथियार निर्यात की इस कवायद को लाभ तभी होगा, जब आर्मीनिया जैसे छोटे-छोटे जरूरतमंद देश तलाशे जाएंगे. इससे भारतीय रक्षा निर्माण उद्योग मजबूत होगा, विदेशी मुद्रा मिलेगी और प्रभाव भी बढ़ेगा. सरकार ने साल 2025 तक रक्षा निर्माण उद्योग को 1.75 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचाने का टारगेट तय किया है. इसके लिए ही फिलीपिंस को ब्रह्मोस मिसाइल बेची जा रही है तो कई देशों के साथ तेजस फाइटर जेट को बेचने की डील चल रही है. अब पिनाका भी पहली बार किसी देश को दिया जा रहा है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इन डील के सफल होने पर भारतीय हथियारों की क्षमता और विश्वसनीयता दुनिया के सामने पुख्ता होगी, जिसका लाभ महंगे अमेरिकी हथियारों के छोटे देशों की पहुंच से दूर होने, चीनी हथियारों पर घटिया होने का ठप्पा होने और युद्ध में फंसने से हथियार सप्लाई चेन कमजोर होने के बीच भारत को मिलेगा. 

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