Lok Sabha Election Result 2024: बेरोजगारी से महंगाई तक, जानिए वो 5 मुद्दे, जिनके चलते BJP को वोट देने से दूर रही जनता

कुलदीप पंवार | Updated:Jun 04, 2024, 07:00 PM IST

Lok Sabha Elections Result 2024: लोकसभा चुनावों की मतगणना के बाद नतीजे सामने आ गए हैं. भाजपा के लिए चौंकाने वाले नतीजे रहे हैं. 'अबकी बार 400 पार' का नारा लगा रही भाजपा अपने दम पर बहुमत से भी दूर रह गई है. इसके पीछे 5 खास कारण रहे हैं.

Lok Sabha Elections Result 2024: लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान हर दल ने अपनी-अपनी जीत के दावे किए थे. ये दावे जनता के निर्णय की मुहर लगने के बाद ही सच साबित होने थे. जनता का निर्णय मंगलवार (4 जून) को मतगणना के बाद सबके सामने आ गया है. भाजपा के लिए चौंकाने वाले नतीजे रहे हैं. चुनाव प्रचार के दौरान 400 से ज्यादा सीट जीतने का दावा कर रही भाजपा अपने दम पर 272 सीट का बहुमत का आंकड़ा भी नहीं छू सकी है. यहां तक कि भाजपा नेतृत्व वाला NDA गठबंधन भी संयुक्त रूप से 300 से ज्यादा सीट नहीं जीत सका है. इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में NDA के लिए करारी हार माना जा रहा है. आइए आपको वो 5 मुद्दे बनाते हैं, जो पीएम मोदी की सरकार के ऊपर चुनावों के दौरान भारी पड़ गए हैं.


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1- बेरोजगारी का मुद्दा पड़ गया है बेहद भारी

विपक्षी दलों ने पहले ही दिन से चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी की सरकार को बेरोजगारी के मुद्दे पर घेरा है. सरकारी आंकड़ों को ही सही माना जाए तो देश में करीब 6.5 फीसदी की बेरोजगारी दर रही है. हालांकि हकीकत में बेरोजगारी कई राज्यों में बड़े आंदोलन का मुद्दा बनी है. विपक्षी दलों ने इस दौरान बार-बार पेपर लीक या अन्य मुद्दों पर नौकरियों के एग्जाम रद्द होने को भी बेरोजगारी से जोड़कर मोदी सरकार को घेरा था. माना जा रहा है कि युवा वर्ग में इसके चलते रोष रहा है, जो सरकार विरोधी वोट के तौर पर सामने आया है.


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2- महंगाई भी रहा है चुनाव के दौरान बड़ा मुद्दा

विपक्षी दल लगातार देश में महंगाई बढ़ने का मुद्दा उठाते रहे हैं. आम जनता ने भी कई बार बढ़ती महंगाई को लेकर रोष जताया है. डीजल-पेट्रोल की कीमतें नीचे नहीं आने के चलते भी महंगाई बढ़ी है. यदि आंकड़ों की नजर से देखें तो सरकारी फाइलों में पीएम मोदी के 2014 से 2024 तक के दस साल के कार्यकाल में महंगाई बढ़ने के बजाय घटी है. 2013 में देश में 10.02% महंगाई दर थी, जो 2023 में घटकर महज 5.69% रह गई थीं. हालांकि इसके उलट यदि बाजार भाव के हिसाब से आकलन किया जाए तो अकेले पीएम मोदी के दूसरे कार्यकाल यानी 2019 से 2024 के बीच ही महंगाई करीब 32% से भी ज्यादा बढ़ी है. लगातार महंगी होती जा रही खाने की थाली से पहनने के कपड़े तक का असर मध्य वर्ग पर दिखा है, जो सबसे बड़ा वोटर माना जाता है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महंगाई बढ़ने से मध्य वर्ग मोदी सरकार से नाराज था और इसका असर ही EVM में बटन दबाते समय दिखाई दिया है.


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3- किसानों की लगातार नाराजगी

भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान उत्तर भारत और मध्य भारत के राज्यों में हुआ है. हिंदी पट्टी कहलाने वाले इन राज्यों में भाजपा ने बड़े पैमाने पर सीट गंवाई हैं. उत्तर प्रदेश में 2019 में 62 सीट जीतने वाली भाजपा इस बार 33 सीट पर ही सिमट गई है, जबकि राजस्थान में क्लीन स्वीप करने वाली भाजपा को बामुश्किल 14 सीट मिली हैं. ऐसे ही बिहार, हरियाणा में भी सीटें कम हुई हैं. पंजाब में पहले से ही भाजपा का वजूद बहुत ज्यादा नहीं रहा है. भाजपा को हुए इस नुकसान का कारण किसानों की नाराजगी माना जा रहा है, जो हिंटी पट्टी का कोर वोटर माना जाता है. पीएम मोदी के दूसरे कार्यकाल के दौरान किसान लगातार आंदोलन पर डटे रहे हैं, जिसका खामियाजा दिल्ली को करीब एक साल तक घेराबंदी झेलकर भुगतना पड़ा था. माना जा रहा है कि किसानों की इसी नाराजगी के कारण यूपी, राजस्थान, हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र और बिहार तक में भाजपा की सीटें घटी हैं.

4- अग्निवीर योजना को लेकर युवाओं में फैली चिंता

केंद्र सरकार अपने ऊपर से पेंशन का बोझ कम करने के लिए भारतीय सेना में भर्ती की अग्निवीर योजना लेकर आई थी. इस योजना में महज 4 साल के लिए सेना में नौकरी करने का मौका मिलना था. इसके बाद सरकार एकमुश्त रकम देकर अपने जवान को रिलीज कर देती. इस योजना को पीएम मोदी की सरकार ने गेम चेंजर के तौर पर जोरशोर से पेश किया था, लेकिन गांव-देहात में सालों तक भारतीय सेना में भर्ती के लिए मेहनत करने वाले युवाओं में इसका उलट असर होता दिखाई दिया है. इस योजना का भरपूर विरोध भी किया गया, जिसका पूरा फायदा विपक्षी दलों ने उठाया और युवाओं के इस आक्रोश को सरकार के खिलाफ वोट बैंक बनाने की कोशिश की. चुनाव परिणाम देखकर माना जा रहा है कि वे इसमें सफल भी रहे हैं.

5- विपक्ष की तरफ से बनाई गई आरक्षण छीनने वाली सरकार की इमेज

पीएम मोदी की सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों ने एकजुट होकर संविधान को बदलने और आरक्षण खत्म की कोशिश करने वाली सरकार होने का अभियान छेड़ा था. NDA सरकार ने इस अभियान का जवाब देने की कोशिश की, लेकिन वह आरक्षण का लाभ उठा रहे वर्गों, खासतौर पर बेहद शोषित वर्ग के दिमाग में विपक्ष की तरफ से बैठाए गए इस प्रश्नचिह्न को दूर करने में सफल नहीं रही. माना जा रहा है कि इसके चलते अतिदलित वोटर ने NDA को वोट देने के बजाय उसके खिलाफ वोटिंग की और इसने चुनाव परिणामों को बदलने में अहम भूमिका निभाई है.

 

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