Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनावों के आयोजन में अब कुछ ही दिन शेष रह गए हैं. किसी भी दिन चुनाव तिथि की घोषणा हो सकती है, लेकिन विपक्षी दलों के बीच अभी तक गठबंधन से जुड़ी शर्तें ही तय नहीं हुई हैं. देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा को चुनौती देने की बात कर रही समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में भी सीट शेयरिंग का मुद्दा हल नहीं हो रहा है. खासतौर पर राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के सपा-कांग्रेस को झटका देकर भाजपा का दामन थामने के बाद उत्तर प्रदेश में दोनों ही दलों को आपसी गठबंधन की दरकार है. ऐसे में अब सपा मुखिया और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 17 सीट देने का ऑफर रखा है, जिसे बेहद अहम माना जा रहा है. इस ऑफर पर फाइनल बातचीत के लिए अखिलेश यादव और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच मंगलवार को बैठक भी होने के आसार हैं. माना जा रहा है कि सपा के ऑफर पर कांग्रेस की तरफ से हरी झंडी आसानी से मिल जाएगी. लेकिन इससे पहले हम आपको सपा की वो खास रणनीति बताने जा रहे हैं, जिसके तहत उसकी तरफ से कांग्रेस को इतनी सीटों का प्रस्ताव दिया गया है.
पहले जान लीजिए सपा दे रही है कौन सी सीट
सपा मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने जो 17 सीट ऑफर की हैं, उनमें कांग्रेस की दो परंपरागत सीट अमेठी और रायबरेली के साथ ही बागपत, गाजियाबाद, फतेहपुर सीकरी, गौतम बुद्ध नगर, हाथरस, कानपुर, अमरोहा, सहारनपुर, बुलंदशहर, झांसी, सीतापुर, वाराणसी, महाराजगंज, कैसरगंज और बाराबंकी शामिल हैं. इन सीटों में बागपत सीट पहले रालोद को मिली थी, जबकि फतेहपुर सीकरी और अमरोहा को लेकर रालोद और सपा के बीच खींचतान चल रही थी. अब रालोद के भगवा खेमे में जाने के बाद ये दोनों सीट भी सपा ने कांग्रेस को दे दी हैं.
इन 17 सीट को देने के पीछे है ये कवायद
सपा ने पहले कांग्रेस को अधिकतम 10-11 सीट देने का ऐलान किया था, जिस पर दोनों दलों के बीच बात बिगड़ती दिख रही थी. ऐसे में अचानक सपा की तरफ से सीटों का ऑफर बढ़ाकर 17 कर देने को हैरानी से देखा जा रहा है, लेकिन इसका एक खास कारण है. दरअसल, रालोद के साथ गठबंधन टूटने और अभी तक बसपा की तरफ से कोई हरी झंडी नहीं मिलने के कारण सपा उत्तर प्रदेश में अकेले पड़ रही है. कांग्रेस भले ही देश के सबसे ज्यादा सीटों वाले राज्य में अब बहुत मजबूत दल नहीं है, लेकिन वह जिस खास वोट बैंक में हल्की सेंध लगाने की क्षमता रखती है, वो सपा का भी कोर वोटबैंक है. ऐसे में सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर अपने कोर वोटर्स में मामूली बिखराव भी रोकने की कोशिश की है.
Winning Seat नहीं होना भी है बड़ा कारण
सपा के इन 17 सीटों पर दावा छोड़ने का एक बड़ा कारण यह भी है कि इनमें से अधिकतर सीट उसकी Winning Seat कैटेगरी में शामिल नहीं हैं. इनमें से कई सीट ऐसी हैं, जहां सपा एक बार भी नहीं जीत सकी है. इनमें अमेठी, रायबरेली, बागपत, गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, फतेहपुर सीकरी, हाथरस, कानपुर और वाराणसी शामिल हैं. केवल दो ऐसी सीट हैं, जिन पर सपा ने कई बार जीत हासिल की है और वे उसकी मजबूत सीट मानी जाती हैं. इनमें कैसरगंज से सपा उम्मीदवार को 5 बार और बाराबंकी से 2 बार जीत मिली है. अमरोहा, बुलंदशहर, सीतापुर, झांसी, सहारनपुर और महाराजगंज में भी पार्टी 1-1 बार ही जीत हासिल कर पाई है.
कांग्रेस जीती तो भी सपा को लाभ
सपा इन सीटों को एक तरीके से अपने लिए पहले ही हारी हुई सीटों में गिनकर चल रही थी. ऐसे में साफ है कि कांग्रेस को ये सीट देने में सपा का बहुत ज्यादा नुकसान नहीं है. उल्टा वह उन सीटों पर ताकत झोंकने से बच जाएगी, जहां उसके जीतने के चांस ना के बराबर हैं. साथ ही यदि कांग्रेस उम्मीदवार इन सीटों में से किसी पर जीत हासिल करते हैं तो इससे भाजपा को नुकसान होगा, जो अपनेआप सपा के लिए लाभ के बराबर है.
राज्यसभा चुनाव का गणित भी कर रहा कांग्रेस को साथ रखने पर मजबूर
सपा को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अपने साथ जोड़े रखने के लिए राज्यसभा चुनाव का गणित भी मजबूर कर रहा है, जिसे भाजपा ने एक अतिरिक्त उम्मीदवार उतारकर रोमांचक बना दिया है. दरअसल उत्तर प्रदेश में 10 राज्यसभा सीट पर चुनाव हो रहा है. इसके लिए सपा ने 3 उम्मीदवार और भाजपा ने 7 उम्मीदवार उतारे थे. 10 सीटों पर 10 ही नामांकन होने से सभी का निर्विरोध चयनित होना तय दिख रहा था, लेकिन भाजपा ने 8वां उम्मीदवार भी उतार दिया है. इससे मामला रोमांचक हो गया है. अब एक सीट के लिए 27 फरवरी को मतदान होना अनिवार्य है. दरअसल उत्तर प्रदेश में एक राज्यसभा सीट जीतने के लिए 37 विधायकों के वोट की जरूरत होती है.
भाजपा के पास अपने सहयोगी दलों समेत कुल 286 विधायकों का समर्थन है, जबकि सपा के पास कांग्रेस के समर्थन समेत कुल 110 विधायक हैं. इस हिसाब से देखें तो भाजपा 7 सीट पर अपने उम्मीदवार निर्विरोध जिता सकती है. इसके बाद भगवा दल के पास 27 वोट बचेंगी यानी उसे सपा-कांग्रेस और बसपा के विधायकों में से 10 विधायक तोड़ने होंगे. इसी तरह सपा को अपने तीनों उम्मीदवार जिताने के लिए 111 सीट की जरूरत है यानी उसे भी एक सीट पर बसपा के किसी विधायक का समर्थन जरूरी होगा या रालोद के टिकट पर जीतकर विधायक बने उसके नेताओं में से किसी एक के क्रास-वोटिंग करने की जरूरत होगी.
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