Lok Sabha Elections 2024: भाजपा के मिशन 400 की सबसे बड़ी चुनौती हैं 11 राज्य, क्या निकल पाएगी इनमें 0 के पार?
Lok Sabha Elections 2024: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा नेतृत्व वाले NDA के इस बार 400 से ज्यादा सीट जीतने का दावा किया है, लेकिन 11 राज्यों में भाजपा एक भी सीट नहीं जीतती है.
Lok Sabha Elections 2024: भाजपा ने इस बार लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Polls 2024) में अपने लिए 'मिशन 400' तय किया है, जिसमें भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के इस बार 400 से ज्यादा सीट जीतने का दावा किया जा रहा है. भाजपा 'मोदी की गारंटी' के नाम पर वोट मिलने की आस कर रही है, लेकिन यदि साल 2019 की परफॉर्मेंस को आधार बनाया जाए तो फिलहाल भाजपा के लिए यह बेहद मुश्किल साबित होगा. दक्षिण भारतीय राज्यों में भाजपा का खराब प्रदर्शन चर्चा में रहता ही है, लेकिन देश के 37 राज्यों 11 राज्यों में भगवा दल खाता खोलने में भी असफल रहता है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या भाजपा अपने इस दावे में सफल साबित हो सकती है?
भाजपा की परफॉर्मेंस के हैं तीन हिस्से
भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Chunav 2024) के लिए जो साल 2019 के चुनावों के प्रदर्शन को आधार बनाकर योजना बनाई है. साल भाजपा और उसके सहयोगियों ने 543 में से 350 सीट जीती थीं, जिनमें भाजपा को 303 सीट मिली थी. ऐसे में देखा जाए तो भाजपा गठबंधन को मिशन 400 के लिए महज 50 सीट ही बढ़ानी हैं, लेकिन यह उतना आसान नहीं है. यदि 2019 के हिसाब से भाजपा के परफॉर्मेंस को देखें तो पहले वे राज्य हैं, जहां भाजपा ने सभी सीटें जीती थीं यानी क्लीन स्वीप किया था. ऐसे 10 राज्य हैं. इसके बाद बात आती है उन राज्यों की, जहां भाजपा ने सभी सीटें हारी थीं यानी उनका खाता भी नहीं खुला था. ऐसे 11 राज्य हैं. इसके बाद वे राज्य हैं, जहां भाजपा खुद भी मजबूत है और उसके सहयोगी भी इतने मजबूत थे कि दोनों का साथ एक-दूसरे के लिए खूब सीटें बटोरने में सफल रहा था.
भाजपा की 0 सीट वाले 11 राज्य
लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा को 11 राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों में एक भी सीट नहीं मिली थी. इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, मेघालय, सिक्किम, पुडुचेरी, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, नगालैंड, मिजोरम, लक्षद्वीप और दादरा एवं नागर हवेली शामिल हैं.
भाजपा के लिए यहां जीतना क्यों जरूरी?
सीधी सी बात है कि यदि भाजपा को 400 सीट का आंकड़ा छूना है तो इसके लिए भगवा दल और उसके सहयोगियों को उन 11 राज्यों में परफॉर्मेंस सुधारना बेहद जरूरी है, जिनमें उसे 1 भी सीट नहीं मिली थी. इनमें 3 सबसे अहम राज्य आंध्र प्रदेश (25 सीट), तमिलनाडु (39 सीट) और केरल (20 सीट) हैं, जिनमें 85 सीट आती हैं. इनके अलावा मेघालय (2 सीट), जबकि मिजोरम, नगालैंड, लक्षद्वीप, सिक्किम, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, पुडुचेरी और दादरा एवं नागर हवेली में 1-1 लोकसभा सीट है. ऐसे में देखा जाए तो इन 11 राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों में कुल 93 सीट दांव पर रहती हैं, जो 543 सीटों का एक बड़ा हिस्सा है. यदि इन सीटों को हटा दिया जाए तो बाकी राज्य व केंद्रशासित प्रदेशों में 443 सीट ही बचती हैं यानी अकेले उनके दम पर भाजपा गठबंधन 400 सीट का आंकड़ा नहीं छू सकता है.
दूसरे-तीसरे नंबर की 144 सीटों पर है पहला फोकस
भाजपा ने दक्षिण भारत की इन 93 सीटों के नुकसान को पूरा करने के लिए उन 144 सीटों पर ध्यान फोकस किया है, जिन पर वो या उसका सहयोगी दल दूसरे या तीसरे नंबर पर रहा था. भाजपा 72 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी. भाजपा ने इन सीटों को हासिल करने के लिए ही अपने गठबंधन में छोटे से छोटे दल को भी शामिल करने की कोशिश की है. कई दल ऐसे भी हैं, जिनका असर 5-6 सीट तक ही सीमित है, लेकिन उनका जातीय समीकरण भाजपा को कई अन्य सीटों पर लाभ दे सकता है, इसका बड़ा उदाहरण पश्चिमी यूपी में राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के साथ हाथ मिलाना है. लोकसभा चुनाव 2019 में एक भी सीट नहीं जीतने के बावजूद रालोद पश्चिमी यूपी की प्रभावी पार्टी है. ऐसे में रालोद को NDA में शामिल करते ही भाजपा को सीधे-सीधे 27 सीटों पर लाभ होता दिख रहा है, जिन पर रालोद की समर्थक जातियां पर्याप्त संख्या में हैं.
गठबंधनों के सहारे पार कर पाएंगे दक्षिण की चुनौती?
भाजपा को मालूम है कि यदि उसे अपना मिशन 400 पूरा करना है तो उसे दक्षिण भारत में सीटें हासिल करनी होंगी. इसलिए दूसरे-तीसरे नंबर की सीटों पर फोकस करने के साथ ही पार्टी ने दक्षिण भारत में भी अपना झंडा बुलंद करने की योजना बनाई है. भाजपा ने 5 राज्यों को फोकस में रखकर 129 सीटों के लिए रणनीति बनाई है. इनमें भाजपा के '0' वाले आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल के अलावा उसके सुधरे हुए परफॉर्मेंस वाले तेलंगाना और दक्षिण में इकलौता भगवा गढ़ कर्नाटक भी शामिल हैं. इन राज्यों में भाजपा ने नए सहयोगियों से हाथ मिलाया है और पुराने सहयोगियों की नाराजगी दूर कर दोबारा उन्हें अपने खेमे में जगह दी है.
इसका उदाहरण आंध्र प्रदेश में NDA की पुरानी साथी तेलुगू देशम पार्टी (TDP) के साथ ही फिल्म स्टार पवन कल्याण (Pawan Kalyan) की जनसेना पार्टी के साथ मिलकर तिहरा गठबंधन बनाया है, जबकि कर्नाटक में मजबूत किसान नेता एचडी देवेगौड़ा की पार्टी जद (एस) से हाथ मिलाया है. तमिलनाडु में भी भाजपा भले ही जयललिता की मौत के बाद कमजोर पड़ गई अन्नाद्रमुक (AIDMK) से अलग हो गई है, लेकिन उसे तमिल अभिनेता आर. शरत कुमार (R. Sarath Kumar) की पार्टी अकिला इंडिया सामाथुवा मक्कल काची (Akila Indiya Samathuva Makkal Katchi) यानी AISMK और TTV Dhinakaran की पार्टी अम्मा मक्कल मुन्नेत्रा काझागम (Amma Makkal Munnetra Kazhagam) यानी AMMK का साथ मिला है.
कैसी है भाजपा के लिए दक्षिण भारत की ये चुनौती?
भाजपा के पास साल 2019 में तेलंगाना में करीब 20% वोट और 17 में से 4 लोकसभा सीट रही थीं, जबकि कर्नाटक में उसने 28 में से 25 सीट जीती थीं. इन राज्यों में इस बार भी भाजपा का परफॉर्मेंस बेहतर रहने की संभावना है. हालांकि कर्नाटक में भाजपा विधानसभा चुनाव हारी है और ऐसे में माना जा रहा है कि वहां उसकी सीट घट सकती हैं. केरल में भाजपा एक भी सीट नहीं जीती थी, लेकिन वहां की 20 सीटों पर 13% वोट बटोरने में सफल रही थी यानी वहां यदि पार्टी ने थोड़ी भी मेहनत की है तो इस बार उसे खाता खोलने का मौका मिल सकता है. सबसे ज्यादा चिंता की बात आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में है. इन राज्यों में भाजपा का असर साल 2019 में ना के बराबर था. आंध्र में भाजपा को महज 1% और तमिलनाडु में 4% वोट ही मिले थे. हालांकि भाजपा का दावा है कि इन दोनों राज्यों में भाजपा पहले से ज्यादा मजबूत हुई है. इसका नजारा हैदराबाद में भाजपा नेताओं की लगातार हिंदुत्व से जुड़ी भावनाओं को भड़काने की कोशिश और उसे मिलते रहे स्थानीय जनसमर्थन में दिखता है, लेकिन यह जनसमर्थन वोटबैंक में कितना तब्दील हुआ है, इसकी परीक्षा लोकसभा चुनाव में ही होगी.
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