तारीख 16 जुलाई 2022. स्थान, यूपी का जालौन. बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने मुखर होकर राजनीति में रेवड़ी कल्चर की आलोचना की थी. प्रधानमंत्री मोदी ने वोट के लिए मुफ्त चीजें बांटने की संस्कृति पर बोलते हुए कहा था कि 'रेवड़ी कल्चर' नए भारत को अंधकार की ओर ले जाएगा. जनसभा को सम्बोधित करते हुए पीएम ने बार बार इस बात को दोहराया था कि रेवड़ी कल्चर देश के विकास के लिए बहुत खतरनाक है. देश के लोगों, खासकर युवाओं को इस रेवड़ी संस्कृति से सावधान रहने की जरूरत है. वहीं उन्होंने इसे ख़त्म करने की बात भी कही थी.
सवाल होगा कि 2022 में पीएम मोदी द्वारा कही बातों का जिक्र 2024 में क्यों हो रहा है? जवाब है आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव. जी हां महाराष्ट्र चुनावों के ठीक पहले 'लड़की बहिन' योजना को लेकर तमाम बातें हो रही हैं. बता दें कि सरकार की यह प्रमुख योजना, उन परिवारों की महिलाओं को 1,500 रुपये प्रति माह प्रदान करती है, जिनकी वार्षिक आय 2,50,000 रुपये से कम है.
योजना को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है. सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या इस साल अगस्त से 2 करोड़ से ज़्यादा महिलाओं के बैंक खातों में डाली गई धनराशि, राज्य में सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन के ख़िलाफ़ किसी भी सत्ता विरोधी भावना को दूर करने के लिए काफी होगी? ध्यान रहे महाराष्ट्र में सरकार पर ऐसे तमाम आरोप लगे हैं, जिसने उसकी पूरी कार्यप्रणाली को सवालों के घेरे में डाला है.
यह पहली बार नहीं है जब राज्य या केंद्र में सभी दलों की सरकारों ने चुनाव से पहले कुछ ख़ास समूहों को नकद राशि के रूप में गिफ्ट दिया है. लेकिन महाराष्ट्र में ये गिफ्ट इसलिए भी सुर्खियां बटोर रहा है क्योंकि जब तक चुनाव होंगे तब तक अधिकांश लाभार्थी महिलाओं के खाते में 7,500 रुपये आ चुके होंगे. जिसमें चुनाव आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले घोषित दिवाली से पहले का 'बोनस' भी शामिल है, जिसकी मासिक कीमत लगभग 3,700 करोड़ रुपये या सालाना लगभग 46,000 करोड़ रुपये होगी.
महाराष्ट्र में लड़की बहिन योजना का अवलोकन करने पर यूं तो तमाम पक्ष हमारे सामने आते हैं. लेकिन कुछ बातें हैं जिनपर हमें गौर करने की जरूरत है. इस योजना को विपक्षी महा विकास अघाड़ी को पूरी तरह से नाकाम करने के लिए बनाई गई एक शातिर रणनीति के रूप में देखा जा सकता है.
महाराष्ट्र को देखें तो वहां किसी भी दल के लिए सबसे बड़ा वोटबैंक महिलाएं और युवा हैं, जिनमें से एक को नकद सहायता दी गई, इसी तरह शिंदे सरकार द्वारा बेरोज़गार युवाओं को 'लड़का भाऊ' के अंतर्गत नकद सहायता वजीफ़ा दिया गया. इन दोनों ही स्कीमों का फायदा ये हुआ है कि महाराष्ट्र्र में एकनाथ शिंदे और उनकी सरकार की स्थिति इन दो वर्गों में पहले से कहीं बेहतर हुई है.
भले ही इस स्कीम को लेकर शिंदे अपनी पीठ थपथपा रहे हों, मगर विपक्ष इसे लेकर उनपर तमाम तरह के गंभीर आरोप लगा रहा है. ध्यान रहे पिछले 5 सालों में महाराष्ट्र देश का सबसे राजनीतिक रूप से अस्थिर राज्य बन गया है. पांच साल में तीन सरकारें, भोर में चुपके से मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण, दो क्षेत्रीय दलों का विभाजन, मंत्री पद के लालच में विधायकों के पाला बदलने की घटनाएं,कह सकते हैं कि महाराष्ट्र भारतीय राजनीति के पूर्ण नैतिक पतन का प्रतीक बन गया है.
वर्तमान में 'वाशिंग मशीन' और 'खोखे ची सरकार' जैसे शब्द अब राज्य में आम राजनीतिक शब्दावली का हिस्सा बन गए हैं, जो इस बात का प्रतिबिंब है कि कैसे धनबल और गुप्त सौदेबाजी ने राज्य की राजनीति को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है.
ध्यान रहे कि यहां मुद्दा लड़की बहिन स्कीम के नाम पर बंटने वाली रेवड़ी और महिलाएं हैं. तो हम फिर इस बात को दोहराएंगे कि रेवड़ी की राजनीति से भले ही दलों को फायदा मिले. लेकिन इसका एक बड़ा नुकसान ये है कि भुगतना आम लोगों को पड़ता है और इससे अगर किसी का सबसे ज्यादा नुकसान होता है, तो वो सिर्फ राज्य ही होते हैं.
भले ही महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा भाजपा, लड़की बहन पहल का श्रेय लेते हुए यह दावा कर ले कि इससे महाराष्ट्र की महिलाएं सशक्त होंगी. लेकिन उससे पहले उसे ये समझना होगा कि मतदाताओं को 'रिश्वत'देने और उन्हें 'सशक्त' बनाने के बीच की रेखा बहुत पतली है.
बहरहाल चुनावों से पहले रेवड़ी को लेकर राजनीतिक दल और नेता कुछ भी कह लें लेकिन आज के समय में जनता बहुत समझदार है. वोटर जानता है कि अगर उसे फ्री के नाम पर कुछ दिया जा रहा है तो उसका मूल उद्देश्य क्या है.
महाराष्ट्र में शिंदे-फडणवीस-पवार का जादू चल पाता है या फिर जनता महा विकास अघाड़ी को मौका देती है? सवाल तमाम हैं. जवाब हमें वक़्त देगा. लेकिन जो वर्तमान है और जैसे इसमें वोटर्स को प्रलोभन दिया जा रहा है इतना तो तय है कि महाराष्ट्र में लड़ाई खासी दिलचस्प रहने वाली है.
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