Shocking: साल भर में आप खा जाते हैं पॉलिथिन की दो थैली के बराबर प्लास्टिक, स्टडी में सामने आया भयावह सच

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Nov 07, 2023, 07:42 PM IST

Microplastics in Food (Representational Photo)

Microplastics in Your Food: प्लास्टिक पर इंसानी निर्भरता इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि यह जिंदगी के हर पल का साथी बन चुकी है, लेकिन अब यही प्लास्टिक आपके मौत के दरवाजे पर पहुंचने का कारण भी बन रही है. पढ़िए पूजा मक्कड़ की ये रिपोर्ट.

डीएनए हिंदी: Health News- प्लास्टिक के बिना जीना लगभग नामुमकिन हो चुका है. इंसान सुबह सोकर उठते ही मुंह में जाने वाले टूथब्रश से लेकर रात में सोने के लिए इस्तेमाल होने वाली रजाई तक में माइक्रोफाइबर के तौर पर प्लास्टिक का इस्तेमाल कर रहा है. प्लास्टिक पर निर्भरता ऐसी हो चुकी है कि इसके बिना शायद ही इंसानी जिंदगी के आसान होने के बारे में सोचा जा सकता है, लेकिन अब इसी प्लास्टिक के कारण हम मरने के कगार पर पहुंच चुके हैं. प्लास्टिक अब बच्चे को जन्म लेने के साथ ही नपुंसक होने के खतरे की ओर ले जा रही है. इससे भी ज्यादा डरावना सच ये है कि आप चाहे या ना चाहें, लेकिन आप दिनभर में जाने-अनजाने में प्लास्टिक खा रहे हैं. एक स्टडी में सामने आया है कि इंसान एक साल में दो पॉलीथिन बैग के बराबर प्लास्टिक खा जाता है, जो उसे मौत के दरवाजे तक ले जा रही है.

कैसे जा रही है आपके पेट में प्लास्टिक

इंसान किस तरह अनजाने में प्लास्टिक खा रहा है, इसका अंदाजा ब्रिटेन की पोर्ट्समाउथ यूनिवर्सिटी के एक परीक्षण से लगाया जा सकता है. यूनिवर्सिटी ने खाने में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक का पता लगाने के लिए दो तरह के खाने की चीजें इकट्ठी की. एक वो चीजें, जो प्लास्टिक पैकिंग में लिपटकर यानी पैकिंग होकर आई और दूसरी जो बिना प्लास्टिक पैक के दी गई थीं. ये जानकर आपके होश उड़ जाएंगे कि प्लास्टिक वाली पैकिंग में आए खाने के सामान में यूनिवर्सिटी की जांच 2 लाख 30 हजार माइक्रोप्लास्टिक पार्टिकल मिले, जबकि दूसरी पैकेजिंग वाले खाने में यही पार्टिकल्स 50 हजार थे. रिसर्चर्स के मुताबिक, हर इंसान दिन भर में 10 ग्राम माइक्रोप्लास्टिक निगल रहा है.  
 
ICMR की रिसर्च में सामने आई है ये बात

दिल्ली के इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR) और हैदराबाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन (NIN) भी इस पर रिसर्च कर चुके हैं. उनकी रिसर्च के मुताबिक, प्लास्टिक कंटेनर में स्टोर किए गए खाने को इस्तेमाल करने से गर्भवती महिलाओं को खतरा है. ये खतरा गर्भवती महिला से उनके पुरुष बच्चों में भी ट्रांसफर हो रहा है. इस रिसर्च के मुताबिक, प्लास्टिक कंटेनर से खाने में ट्रांसफर हुए माइक्रोप्लास्टिक के कण बच्चे की प्रजनन क्षमता खराब करने के लिए जिम्मेदार माने गए हैं.

क्या होते हैं माइक्रोप्लास्टिक पार्टिकल्स

प्लास्टिक के बेहद बारीक कणों को माइक्रोप्लास्टिक पार्टिकल्स कहा जाता है. ग्लोबल लेवल पर एक्सपर्ट्स की राय के मुताबिक, हर हफ्ते औसतन 0.1 से लेकर 5 ग्राम माइक्रोप्लास्टिक अलग-अलग तरीकों से मानव के शरीर में जा सकता है. औसतन एक इंसान हर साल 11,845 से 1,93,200 माइक्रोप्लास्टिक पार्टिकल्स निगल लेता है यानी 7 ग्राम से 287 ग्राम तक. ये इस बात पर निर्भर करता है कि उसके जीवन में प्लास्टिक किस हद तक मौजूद है.

क्यों कर रहा है माइक्रोप्लास्टिक बीमार

फूड स्टोरेज या लिक्विड स्टोर करने के प्लास्टिक कंटेनर, ये सब आम तौर पर पॉलीकार्बोनेट प्लास्टिक से बनाए जाते हैं. इस प्लास्टिक को लचीला बनाने के लिए उसमें बिस्फेनॉल ए (BPA) डाला जाता है, जो एक इंडस्ट्रियल केमिकल है. ICMR-NIN की संयुक्त रिसर्च में रिसर्चर्स ने पाया है कि गर्भावस्था के दौरान BPA केमिकल पुरुष संतान के फर्टिलिटी सिस्टम पर बुरा असर डाल सकता है. ये रिसर्च चूहों पर की गई है. इसके लिए प्रेगनेंट चूहों को दो ग्रुप में बांटा गया, एक ग्रुप को प्रेगनेंसी के दौरान चार से 21 दिन के लिए बीपीए केमिकल के संपर्क में रखा और दूसरे ग्रुप को इससे अलग रखा गया. बीपीए के नजदीक रहने वाले चूहों में फैटी एसिड जमने लगे. इससे उनके स्पर्म की ग्रोथ के लिए जरुरी मेंब्रेन के आसपास इस फैटी एसिड से नुकसान होता पाया गया. इस रिसर्च को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मॉलिक्यूलर साइंसेज में प्रकाशित किया गया है.

कैंसर का भी कारण यही BPA केमिकल 

प्लास्टिक कंटेनर के मटीरियल में मौजूद बीपीए केमिकल इंसानी हॉर्मोन्स को प्रभावित करता है. इससे इंसानों में कैंसर और इन्फर्टिलिटी होने के चांस बेहद ज्यादा हो सकते हैं. 

जन्म से पहले ही शुरू हो रहा खतरा

प्लास्टिक के बीमार कर देने वाले खतरे अब इंसानी जिंदगी में इतना ज्यादा बढ़ चुके हैं कि कोई बच्चा जन्म से पहले ही यानी अपनी मां के पेट में ही प्लास्टिक के बीमार कर देने वाले खतरों की चपेट में आ जाता है. दरअसल लंच प्लास्टिक में बंद, पानी प्लास्टिक में बंद, दूध प्लास्टिक में बंद यहां तक कि बाज़ार का हर सामान प्लास्टिक में बंद. हर तरफ आपकी जिंदगी का खानपान प्लास्टिक के दायरे में बंद है. ये एक आम गृहणी का आम सा किचन है, हो सकता है आपकी रसोई भी ऐसी ही हो. बाज़ार से राशन आया तो प्लास्टिक पैकेजिंग में और घर में सामान स्टोर हुआ तो वो भी प्लास्टिक में. नोएडा की रहने वाली अंशु प्लास्टिक को सही तरीके से रिसाइकल करने की कैंपेन से जुड़ी हैं, लेकिन प्लास्टिक से छुटकारा पाना इनके लिए भी मुश्किल है.

गर्भवती महिलाओं को बचना चाहिए प्लास्टिक से

NIN की रिसर्च के मुताबिक, सभी लोगों को खासतौर पर प्रेगनेंट महिलाओं को प्लास्टिक कंटेनर के इस्तेमाल से बचना चाहिए. NIN के लीड रिसर्चर डॉ. संजय बसाक के मुताबिक, ऐसे कंटेनर में देर तक खाना स्टोरेज करने से, खासतौर पर गर्म तापमान में या माइक्रोवेव के समय प्लास्टिक से बीपीए केमिकल के खाने में घुलने का खतरा बढ़ जाता है.  

दरअसल किचन में दो तरह का प्लास्टिक मोटे तौर पर मौजूद रहता है. पहला है वन टाइम यूजा यानी जैसे पानी की डिस्पोजेबल बॉटल्स या पैकेजिंग वाला प्लास्टिक और दूसरा वो प्लास्टिक कंटेनर, जिन पर फूड ग्रेड या बीपीए फ्री लिखा रहता है. कंपनियां दावा करती हैं कि बीपीए फ्री फूड ग्रेड प्लास्टिक नुकसान नहीं करता, लेकिन एक्सपर्टस इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते.

आपकी जिंदगी में कहां कहां हैं माइक्रोप्लास्टिक

  • पानी में माइक्रोप्लास्टिक: नल के पानी में और प्लास्टिक में बंद पानी में माइक्रोप्लास्टिक सबसे ज्यादा मिलते हैं, क्योंकि वातावरण में मौजूद प्लास्टिक का कचरा टूटकर मिट्टी में, ज़मीन के नीचे और समंदर और नदियों में मिल चुका है.
  • कपड़ों और खिलौनों में माइक्रोप्लास्टिक: ब्रिटेन की पोर्ट्समाउथ यूनिवर्सिटी की एक स्टडी के मुताबिक, खिलौनों और कपड़ों के 7,000 माइक्रोप्लास्टिक कण हर रोज हमारे शरीर के अंदर सांसो के जरिए जा रहे हैं. ये कण खाने-पीने के वक्त सांस के जरिए यहां तक कि स्किन से भी शरीर में जा सकते हैं.

10 माइक्रोन से भी छोटे साइज के हैं ये कण

इस स्टडी के लिए ऐसे उपकरणों का इस्तेमाल किया गया था, जो 10 माइक्रोन से भी छोटे कणों का पता लगा सके. स्टडी के मुताबिक, ये माइक्रोप्लास्टिक कण इतने छोटे होते हैं कि यह टूटते नहीं है और शरीर में पहुंचकर पाचन शक्ति को प्रभावित करते हैं, कैंसर के लिए जिम्मेदार माने गए हैं और प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित करते हैं. नोएडा के मेट्रो अस्पताल की न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सोनिया लाल गुप्ता के मुताबिक, प्लास्टिक में Phthalate (थैलेट्स) और  Bisphenol A (BPA) (बाइसफिनोल ए) दो तरह के केमिकल पाए जाते हैं, जो हार्मोनल बदलाव कर सकते हैं. इन बदलावों की वजह से डिप्रेशन, एग्जाइटी इनफर्टिलिटी और ब्रेन डिसऑर्डर का खतरा रहता है.

प्लास्टिक में मौजूद थैलेट्स का ही एक प्रकार डीईएचपी या डाई एथिलहेक्सिल थैलेट है, जो पुरुषों के हॉर्मोन टेस्टोस्टेरोन के उत्पादन के लिए जिम्मेदार सेल्स को तेजी से बूढ़ा कर सकता है. इस समझने के लिए किए गए एक प्रयोग में शामिल किए गए चूहों के टेस्टिकल्‍स छोटे हो गए और उनके जननांगों का विकास खराब हो गया.   

ऐसे में करना क्या चाहिए?

  • प्लास्टिक के डिब्बों में पका हुआ खाना ना रखें.  
  • प्लास्टिक को माइक्रोवेव में गर्म करने से बचें.
  • प्लास्टिक की जगह पानी की बॉटल्स के लिए कांच, स्टील या तांबे का इस्तेमाल करें.
  • प्लास्टिक को अपने घर के कूड़े में ना डालें और उसे रिसाइकल करने वाली संस्थाओं को दे दें या प्लास्टिक कचरा अलग फेंकें.
  • प्लास्टिक के कचरे में मिल जाने से उसे रिसाइकल करना मुश्किल हो जाता है.

  
क्या कहते हैं सरकारी आंकड़ें

सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर साल 35 लाख टन प्लास्टिक पैदा होता है, जबकि हमारी प्लास्टिक को रिसाइकिल करने की क्षमता इसकी आधी ही है. 1 जुलाई 2022 से प्लास्टिक की ऐसी 21 सिंगल यूज आइटम्स पर सरकार ने बैन लगाया था, जिन्हें रिसाइकल करना मुश्किल है. आप ये लिस्ट देखकर खुद समझ सकते हैं कि प्लास्टिक पर लगा बैन कितना असरदार साबित हो रहा है-  

  • प्लास्टिक स्टिक्स और स्ट्रॉ  
  • पैकेजिंग और रैपिंग फिल्म्स   
  • प्लास्टिक के चम्मच कटोरियों जैसी कटलरी  
  • प्लास्टिक के झंडे  
  • 100 माइक्रोन से कम के प्लास्टिक शीट्स और पीवीसी बैनर,  
  • आइसक्रीम की प्लास्टिक की डंडी और कप  
  • गुब्बारों के लिए प्लास्टिक की डंडिया, कैंडी स्टिक  
  • पान मसाले के पैकेट   
  • इन्विटेशन कार्ड  
  • मिठाई के डिब्बे  
  • सिगरेट के पैकेट पर लपेटी प्लास्टिक की फिल्म  

इन सबका इस्तेमाल आपको अब भी अपने चारों तरफ धड़ल्ले से होता दिखाई देगा. ऐसे में अब आप खुद ही सोचिए कि ये बदलाव कितना हो पाया है और अपनी सेहत के लिए प्लास्टिक से निपटने और प्लास्टिक को निपटाने की जिम्मेदारी आप खुद भी उठाइए.

INPUT- पूजा मक्कड़

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