Nepal Against India: नेपाली सरकार ने ली भारत से इलाके वापस लेने की शपथ, क्या चीन ने शुरू कर दिया अपना खेल

कुलदीप पंवार | Updated:Jan 12, 2023, 06:12 AM IST

Nepal PM Prachanda ने विश्वास मत जीतने के बाद नेपाली संसद को संबोधित किया.

Nepal News: कम्युनिस्ट नेपाली पीएम प्रचंड को पहले से ही चीन समर्थक माना जाता है. संसद में चीन के कब्जे वाले नेपाली इलाकों पर वह नहीं बोले हैं.

डीएनए हिंदी: India Vs China In Nepal- नेपाल में माओवादियों की खूनी क्रांति के अगुआ पुष्पकमल दहल उर्फ प्रचंड (Pushpa Kamal Dahal Prachanda) के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने पर जो चिंता जताई जा रही थी, वह सच साबित होने लगी है. पहले से ही चीन समर्थक कहे जाने वाले प्रचंड ने अपने गठबंधन सहयोगी और पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा औली (KP Sharma Oli) की तर्ज पर भारत को आंखें दिखानी शुरू कर दी हैं. प्रचंड ने बुधवार को नेपाली संसद में प्रतिनिधि सभा (House Of Representatives) में 275 में से 268 सांसदों का विश्वास मत हासिल किया. इसके बाद प्रचंड ने संसद में कहा, उनकी सरकार की विदेश नीति वही होगी, जो नेपाल के राष्ट्रीय हित में रहेगी. नेपाल भारत और चीन समेत अपने सभी पड़ोसियों के साथ संतुलित व दोस्ताना रिश्ते बनाकर चलेगा. दूसरी तरफ, इससे ठीक पहले प्रचंड के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन की तरफ से एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम (CMP) जारी किया गया. इसमें उन इलाकों को वापस लेने की शपथ ली गई है, जिन्हें कथित तौर पर भारत ने कब्जा रखा है. हालांकि भारत से विवादित इलाके वापस लेने की बात करने वाली पीएम प्रचंड की सरकार ने चीन के कब्जे वाले नेपाली इलाकों पर फिर से चुप्पी साध ली है. 

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हालिया सालों में अच्छे नहीं रहे हैं भारत-नेपाल के रिश्ते

भारत और नेपाल को हमेशा से 'दो देश, एक परिवार' माना जाता रहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों के दौरान दोनों देशों के रिश्तों (India Nepal relations) में दरार आई है. खासतौर पर साल 2015 के दौरान नेपाल में मधेसी मुद्दे (Madhesi Issue) के हिंसात्मक होने के बाद यह रिश्ता ज्यादा खराब हो गया. भारत से सटे नेपाली तराई इलाकों में रहने वाले मधेसियों के बिहार और उत्तर प्रदेश में 'रोटी-बेटी' के रिश्ते रहे हैं. इसलिए कुछ नेपाली नेताओं ने इस हिंसा का ठीकरा भारत के ही सिर फोड़ने की कोशिश की. इसके बाद से भारत नेपाल की घरेलू राजनीति में 'पंचिंग बैग' की तरह इस्तेमाल किया गया है. 

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औली के समय में ज्यादा बिगड़ गए आपसी रिश्ते

साल 2018 में केपी शर्मा औली के नेपाली प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और नेपाल के आपसी रिश्ते ज्यादा खराब हुए और विवादों को बढ़ावा मिला. औली ने चीन की तरफ स्पष्ट झुकाव दिखाया और नेपाल में चीन की महिला राजदूत से उनकी अंतरंगता जगजाहिर रहीं. इस दौरान नेपाल ने उत्तराखंड (Uttarakhand) के लिम्पियाधुरा (Limpiyadhura), कालापानी (Kalapani) और लिपुलेख (Lipulekh) को अपना हिस्सा बताया और भारत पर इन्हें अवैध तरीके से कब्जाने का आरोप लगाया. औली ने उस दौरान भी विवाद खड़ा करने में गुरेज नहीं किया, जब चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (Chinese People’s Liberation Army) ने पूर्वी लद्दाख में लड़ाई के हालात पैदा कर दिए थे. 

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औली ने नेपाल का नया नक्शा अपनी संसद में पारित कराया, जिसमें भारत के 400 वर्ग किलोमीटर एरिया को नेपाल का हिस्सा दिखाया गया था. माना जा रहा है कि यह काम चीन के इशारे पर ही किया गया था. हालांकि बाद में लंबे राजनीतिक गतिरोध और कानूनी लड़ाई के बाद औली को सत्ता गंवानी पड़ी थी. इसके बाद जुलाई 2021 में प्रधानमंत्री बने नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा (Sher Bahadur Deuba) नई दिल्ली और काठमांडू के बीच रिश्तों को दोबारा पटरी पर लाने की कोशिश की, लेकिन अब एक बार फिर राजनीतिक तिकड़मबाजी की बदौलत कम्युनिस्ट सत्ता में लौट चुके हैं.

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पीएम पद पर चेहरा बदला, पर्दे के पीछे पूरी टीम वही

नेपाल की नवनियुक्त सरकार में पर्दे के पीछे वही पूरी टीम है, जो 2018 में औली की सरकार के गठन के समय मौजूद थे. बस फर्क इतना पड़ गया है कि इस बार पीएम प्रचंड बने हैं, जबकि औली पर्दे की ओट में है. साल 2018 में औली पीएम बने थे और प्रचंड पर्दे के पीछे थे. हालांकि उस समय दोनों कम्युनिस्ट नेता कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (Communist Party of Nepal) का हिस्सा थे. बाद में दोनों ने अलग होकर पार्टी में दोफाड़ कर दी थी. औली CPN (Unified Marxist-Leninist) यानी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एमाले) के नेता हैं, जबकि प्रचंड की पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) है.

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दिल्ली में पढ़े प्रचंड पहले से ही चीन समर्थक

महज 17 साल की उम्र में राजनीति में आए प्रचंड ने अपनी पढ़ाई दिल्ली में की है, लेकिन वैचारिक तौर पर वे हमेशा से चीन समर्थक रहे हैं. प्रचंड ने नेपाल में 1996 से 2006 तक राजशाही के खिलाफ उग्र माओवादी विद्रोह का नेतृत्व किया, जिसे चीन से हथियार और फंडिंग मिलती थी. पहली बार नेपाल का प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रचंड ने ही वह परंपरा तोड़ी थी, जिसमें नेपाली पीएम हमेशा पहला विदेशी दौरा दिल्ली का करता था. प्रचंड अपने पहले विदेशी दौरे पर चीन गए थे. कई रिपोर्ट में यह साबित किया जा चुका है कि प्रचंड के चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना से सीधे रिलेशन हैं.

26 दिसंबर, 2022 को तीसरी बार नेपाल का पीएम बनते ही प्रचंड ने माओत्से तुंग (Mao Zedong) की 130वीं जयंती को याद करने वाला ट्वीट किया था. कम्युनिस्ट चीन के संस्थापक माओत्से तुंग को ही प्रचंड अपना आदर्श मानते हैं.

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दोबारा चीन के साथ शुरू हो गए आर्थिक रिश्ते

प्रचंड के पीएम बनते ही चीन ने एक बार फिर नेपाल के साथ आर्थिक रिश्ते कायम कर दिए हैं. चीन ने दोनों देशों के बीच रासुवागाधी-केरुंग बॉर्डर पर तीन साल से बंद व्यापार फिर शुरू करने की मंजूरी दे दी है. प्रचंड ने पीएम बनने के एक सप्ताह बाद ही नेपाल के टूरिस्ट हब पोखरा में चीनी मदद से बने रीजनल इंटरनेशनल एयरपोर्ट का उद्घाटन किया. इसके साथ ही नेपाल-चीन के बीच क्रॉस बॉर्डर रेलवे लाइन प्रोजेक्ट बनाने की फाइल भी दोबारा बाहर आ गई है.

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