Jammu And Kashmir News: कहते हैं कि राजनीति में कोई भी वादा पक्का नहीं होता. ना ही कोई स्थायी दुश्मन और स्थायी दोस्त होता है. यह बात जम्मू-कश्मीर के बारे में बिल्कुल फिट दिखाई दे रही है, जहां विधानसभा चुनाव (Jammu and Kashmir Assembly Election 2024) में भारी जीत के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस को अपनी ही साथी कांग्रेस दिखाई देनी बंद होने लगी है. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 42 सीट जीती हैं. अब उसे 4 निर्दलीय विधायकों का भी साथ मिल गया है यानी उसका आंकड़ा 46 पर पहुंच गया है. इससे नेशनल कॉन्फ्रेंस ने बहुमत का आंकड़ा अपने दम पर ही छू लिया है यानी उसे 6 सीट जीतने वाली कांग्रेस की बहुत जरूरत नहीं रह गई है. इस बीच नेशनल कॉन्फ्रेंस की तरफ से ऐसे बयान आने लगे हैं, जिनसे ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या उसके नेता कांग्रेस की दोस्ती से पलटी मारने की तो नहीं सोच रहे हैं.
उमर अब्दुल्ला का नाम घोषित करने में भी अनदेखी
नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायकों ने गुरुवार को उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) को मुख्यमंत्री बनने के लिए अपना नेता चुन लिया है, जो फारुक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) की घोषणा के बाद औपचारिकता ही माना जा रहा था. हालांकि यह फैसला केवल नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायकों ने कर लिया, जबकि गठबंधन की सरकार बनाने की कवायद में इस फैसले पर सहमति के लिए कांग्रेस को भी बुलाना चाहिए था.
राहुल गांधी ने नहीं दी उमर अब्दुल्ला को बधाई
नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बीच सबकुछ ठीक नहीं होने के संकेत इस बात से भी मिले हैं कि गठबंधन के दल आपस में एक-दूसरे को बधाई देना तक भूल गए. राहुल गांधी ने सार्वजनिक तौर पर एक भी बयान में जम्मू-कश्मीर में भारी जीत के लिए उमर अब्दुल्ला या फारुक अब्दुल्ला को बधाई नहीं दी है. उधर, उमर अब्दुल्ला ने भी सार्वजनिक रूप से कांग्रेस के ऊपर बेहद तीखा तंज कसा है. उमर ने कहा,'हालांकि मैं किसी के घाव पर नम नहीं छिड़कना चाहता, लेकिन यह सच है कि कांग्रेस ने कश्मीर डिवीजन में जो पांच सीट जीती हैं, उनमें से चार पर नेशनल कॉन्फ्रेंस अकेले लड़कर भी जीत सकती थी.' उमर के इस बयान से भी दोनों पार्टियों के बीच अलगाव उभरने के संकेत मिले हैं.
चुनाव से पहले के बयानों पर उमर की पलटी
उमर अब्दुल्ला चुनाव से पहले कुछ और दिख रहे थे, जबकि चुनाव जीतने के बाद वे कुछ और दिख रहे हैं. उन्होंने अनुच्छेद 370 को भी लेकर पलटी मार दी है. चुनाव से पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस के मेनिफेस्टो में साफ कहा गया था कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को वापस लागू करेंगे, लेकिन रिजल्ट घोषित होते ही अब्दुल्ला परिवार ने पूरी तरह पलटी मार दी है. उन्होंने इस मुद्दे में IF and But जैसी बातें जोड़ दी हैं. उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को कहा था कि जम्मू-कश्मीर के ज्यादातर लोगों ने पांच अगस्त 2019 के कदम का समर्थन नहीं किया है. हम उस फैसले का हिस्सा नहीं थे. हमसे परामर्श नहीं हुआ था, लेकिन अब हम आगे बढ़ेंगे और देखेंगे कि हम क्या कर सकते हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अनुच्छेद 370 जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भी यह स्टैंड बनाने से पहले कांग्रेस से कोई बात नहीं की है.
कश्मीर की राजनीति में नहीं चाहते राष्ट्रीय दल की मजबूती
जम्मू-कश्मीर की राजनीति में नेशनल कॉन्फ्रेंस रही हो या महबूबा मुफ्ती की पीडीपी, उनकी रणनीति हमेशा राष्ट्रीय दलों को वहां से बाहर रखने की ही रही है. इसी के चलते कांग्रेस को धीरे-धीरे साफ किया गया था और अब जम्मू-कश्मीर में तेजी से पैठ बना रही भाजपा के विरोध में ये दल खड़े होते हैं. ऐसे में यदि नेशनल कॉन्फ्रेंस चुनाव पूर्व गठबंधन पर कायम रहते हुए कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाती है तो जम्मू-कश्मीर की राजनीति में वो कांग्रेस की जड़ें मजबूत करेगी. उमर अब्दुल्ला शायद यह नहीं चाहते हैं. इसी कारण बहुमत साथ होने के बावजूद वे निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में खींच रहे थे. साथ ही पीडीपी को भी अपने साथ आने का ऑफर देते दिखाई दे रहे हैं. उनकी इस कवायद से भी ये संकेत मिले हैं कि अपनी सरकार सुरक्षित होते ही वे कांग्रेस की दोस्ती से भी U TURN मार सकते हैं.
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