DNA Explainer: मोदी सरकार लाई है पेपर लीक रोकने वाला कानून, क्या है इसमें और क्यों पड़ी है इसकी जरूरत
Paper Leak Bill Updates: हर सप्ताह देश के किसी न किसी हिस्से में पेपर लीक का दंश करोड़ों युवाओं की मेहनत पर पल भर में पानी फेर देता है. इसे रोकने को मोदी सरकार कानून लाई है. पेश है इस पर हमारी रिसर्च टीम की स्पेशल DNA रिपोर्ट.
देश में करोड़ों युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों के पेपर लीक होना ऐसा दंश बन गया है, जिसके जहर का तोड़ कोई नहीं निकाल पा रहा है. सालों तक जी-तोड़ मेहनत करने वाले युवाओं की परीक्षा का जब वक्त आता है तो पता पता चलता है कि पेपर लीक हो गया है और परीक्षा रद्द हो गई है. इसके साथ ही उन युवाओं की महत्वकांक्षाओं का भी अंत हो जाता है. ये Trend इतना Common हो चुका है कि देश में बड़ी से बड़ी भर्ती और प्रतियोगी परीक्षा में इस बात की कोई गारंटी नहीं ले सकता कि पेपर लीक नहीं होगा. देश में शायद ही कोई राज्य बचा है, जहां कभी कोई पेपर लीक ना हुआ हो. ना ही कोई Competitive Exam ऐसा है, जो पेपर लीक माफिया से बचा है. ऐसा लगता है मानो प्रतियोगी परीक्षाओं और पेपर लीक का चोली-दामन का साथ हो गया है. इस गठजोड़ को खत्म करने की कोशिशें और वादे तो बार-बार होते हैं, लेकिन पेपर लीक थमने का नाम ही नहीं लेती. दरअसल हमारे देश में पेपर लीक अब एक संगठित उद्योग का रूप ले चुका है, जिसका Black Market साइज हजारों करोड़ रुपये है.
75 साल में नहीं बना था इसे रोकने वाला कानून
आप भी सोचते होंगे कि आखिर पेपर लीक माफिया इतना ताकतवर कैसे हो गया है कि बड़ी से बड़ी प्रतियोगी परीक्षा का पेपर बिना खौफ के लीक कर दिया जाता है. आपको जानकर झटका लग सकता है कि हमारे देश में आवारा कुत्तों को नुकसान पहुंचाने पर जेल की सजा का प्रावधान है, लेकिन आजादी के 75 साल में कभी देश के भविष्य को नुकसान पहुंचाने वालों को सजा देने के लिए कानून बनाने की किसी ने नहीं सोची. आजादी के 75 वर्ष बाद अब मोदी सरकार देश का पहला The Public Examination (Prevention Of Unfair Means) Bill लेकर आई है, जिसे सोमवार को लोकसभा में पेश किया गया है. इस बिल के पहले ही पन्ने पर लिखा है कि ये बिल आजाद भारत के 75वें साल में संसद के अंदर लाया गया पहला बिल है, जिसमें प्रतियोगी परीक्षाओं में अनुचित तरीकों को रोकने के प्रावधान हैं. इसमें पेपर लीक ही नहीं उनमें कराई जाने वाली नकल को भी सजा के दायरे में रखा गया है.
क्या हैं नए बिल में प्रावधान
- किसी व्यक्ति को पेपर लीक या नकल करवाने का दोषी पाया जाता है तो तीन से पांच साल तक की जेल और दस लाख तक का जुर्माना.
- दूसरे के स्थान पर परीक्षा देने के मामले में दोषी पाए जाने पर तीन से पांच साल की जेल होगी और 10 लाख का जुर्माना.
- किसी संस्थान की मिलीभगत साबित होने पर उस संस्थान से परीक्षा पर आने वाला पूरा खर्च वसूला जाएगा.
- साथ ही संस्थान पर एक करोड़ रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जाएगा और उसकी संपत्ति भी जब्त की जा सकती है.
- दोषी संस्थान के डायरेक्टर, मैनेजमेंट या इंचार्ज पेपर लीक या नकल करवाने के दोषी मिले तो उन्हें भी 3 से 10 साल की सजा व 1 करोड़ रुपये जुर्माने का प्रावधान.
- पेपर लीक और नकल का संगठित अपराध करने के दोषी लोगों को भी पांच साल से दस साल की सजा और एक करोड़ रुपये के जुर्माने की बात इस बिल में कही गई है.
इन परीक्षाओं के लिए लागू होगा ये कानून
लोकसभा में पेश बिल का मकसद उन नकल और पेपर लीक माफिया सिंडिकेट पर शिकंजा कसना है, जिन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक को धंधा बना दिया है. ये बिल जब कानून बन जाएगा तो इस कानून के दायरे में कौन-कौन सी प्रतियोगी परीक्षाएं आएंगी, ये भी बताया गया है.
- Union Public Service Commission यानी UPSC
- Staff Selection Commission यानी SSC
- Railway Recruitment Boards
- Institute Of Banking Personnel Selection
- Central Government से जुड़े मंत्रालय और विभागों द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाएं
- National Testing Agency
इन सबके द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक और नकल पर इस बिल के प्रावधान लागू होंगे.
बिल से कानून बनने की राह
अभी लोकसभा में सिर्फ बिल पेश हुआ है. अभी इसे पहले लोकसभा में पास होना होगा. फिर राज्यसभा में इसे पास कराया जाएगा. दोनों सदन से पास होने के बाद यह राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए जाएगा. इसके बाद ही ये बिल कानून की शक्ल लेगा. तब तक पेपर लीक व नकल माफिया आजाद है.
क्यों बनाया जा रहा है अब ये कानून?
अब दो सवाल हैं, पहला ये कि आखिर आजादी के 75 वर्ष बाद ही किसी सरकार को नकल और पेपर लीक के खिलाफ कानून लाने की याद क्यों आई? दूसरा सवाल ये कि इन 75 वर्षों में पेपर लीक ने देश के भविष्य को कितना नुकसान पहुंचाया है. इन दोनों सवालों के जवाब बिल के Draft में बताए गए हैं, लेकिन आज हम आपको विस्तार से पेपर लीक के संगठित उद्योग के बारे में एक खास विश्लेषण बताएंगे.
केंद्र सरकार का तर्क है कि पेपर लीक और फिर परीक्षा रद्द होने से करोड़ों छात्रों को नुकसान उठाना पड़ता है. सरकार का कहना है कि युवाओं के भविष्य पर इसका प्रभाव पड़ता है. सरकार के इस तर्क के पीछे पुख्ता वजह भी है, जिनसे आपके लिए समझना मुश्किल नहीं होगा कि भारत में Paper Leak की समस्या कितनी गंभीर हो चुकी है.
- वर्ष 2017 से 2023 के बीच सात सालों में Paper Leak के 70 से ज्यादा Case सामने आए हैं.
- Paper Leak होने के बाद Exam रद्द किए गए और इससे 1 करोड़ 50 लाख छात्र प्रभावित हुए हैं.
कोई परीक्षा नहीं बची है पेपर लीक से
देश में ऐसी कोई परीक्षा नहीं बची जिसके पेपर लीक ना हुए हों. JEE एग्जाम हो या फिर NEET की परीक्षा, पटवारी भर्ती परीक्षा हो या फिर कांस्टेबल भर्ती. हर परीक्षा में पेपर लीक के मामले सामने आते रहते हैं. पहले कभी-कभार ही भर्ती परीक्षाओं के Paper Leak होते थे, लेकिन पिछले एक दशक में 10वीं, 12वीं और Entrance एग्जाम के पेपर भी लीक होने लगे हैं.
- वर्ष 2017 से 2023 के बीच कई राज्यों में सिलसिलेवार ढंग से पेपर लीक हुए, जिनसे करोड़ों छात्रों का भविष्य अधर में लटका है.
- उत्तर प्रदेश भी Paper Leak के केस से अछूता नहीं रहा, यहां वर्ष 2017 से 2022 के बीच Paper Leak के 8 मामले सामने आए.
- राजस्थान में वर्ष 2018 से 2022 के बीच अलग-अलग सरकारी नौकरी की परीक्षाएं कुल 12 बार रद्द हुई.
- गुजरात में वर्ष 2017 से 2023 के बीच 7 वर्षों में अलग-अलग Paper Leak के 14 मामले सामने आए.
- इन्हीं 7 वर्षों के दौरान बिहार बोर्ड की दसवीं की परीक्षा का Paper 6 बार Leak हुआ.
- पश्चिम बंगाल में राज्य बोर्ड परीक्षा का पेपर कम से कम 10 बार Leak हुआ.
पेपर लीक के बाद रद्द परीक्षा के खिलाफ प्रदर्शन
पिछले सात वर्षों में जिन परीक्षाओं के पेपर लीक हुए हैं, उनमें बोर्ड Exam से लेकर प्रतियोगी परीक्षाएं और सरकारी नौकरी के लिए हुए Exam थे. पेपर लीक होने के बाद संबंधित विभाग के पास एक ही रास्ता बचता है, एग्जाम रद्द कर देना. एग्जाम रद्द कर देने से ना परीक्षा कराने वाले विभाग को कोई फर्क पड़ता है, ना परीक्षा लेने वाले विभाग को. पेपर लीक करने वाले सिंडिकेट के कुछ चुनिंदा लोगों पर कानूनी कार्रवाई होती है और बड़ी मछली बच जाती हैं. पेपर लीक का अगर किसी को सबसे ज्यादा नुकसान होता है, तो परीक्षा देने वाले छात्र हैं. उनके पास प्रदर्शन कर रोष जताने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है.
क्या कानून से बंद हो जाएगा पेपर लीक?
अगर आपको लगता है कि केंद्र सरकार के नए कानून के बाद तस्वीर पूरी तरह बदल जाएगी. ना पेपर लीक होंगे और ना छात्र नकल कर पाएंगे तो ऐसा सोचना भी बेकार है. दरअसल देश में भले ही राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाने की कवायद शुरू हुई हो, लेकिन चार राज्यों में पेपर लीक के खिलाफ पहले से कानून हैं. इन कानूनों का कोई असर या कोई डर पेपर लीक माफिया पर नहीं पड़ता, कम से कम आंकड़े तो इसकी गवाही नहीं दे रहे हैं.
- राजस्थान में पेपर लीक और नकल कराने वालों के खिलाफ पहले से कानून है, जिसमें दोषी को उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है.
- गुजरात में भी पेपर लीक के दोषियों को 3 से 10 साल तक की सजा के अलावा 1 लाख से 1 करोड़ रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है.
- गुजरात में पेपर खरीदने वाले छात्रों को भी 2 साल से 10 साल तक की सजा हो सकती है.
- उत्तराखंड में पेपर लीक कराने का अपराध गैर जमाननती है. पेपर लीक और नकल कराने के दोषी को 10 साल से उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.
- उत्तराखंड में पेपर लीक कराने या नकल कराने के दोषी पर 10 लाख से 10 करोड़ रुपये तक के जुर्माने की भी व्यवस्था है.
- हरियाणा में पेपर लीक के दोषियों को 7 से 10 साल जेल और 10 लाख रुपये तक जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान है.
- हरियाणा में दोषी की प्रॉपर्टी नीलाम करके एग्जाम रद्द होने से हुए नुकसान की भरपाई का भी प्रावधान है.
ऐसे में अगर कड़े कानून से पेपर लीक की घटनाओं को रोका जा सकता, तो राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य पेपर लीक के मामले में अव्वल नहीं होते. अब जो बिल संसद में लाया गया है, उसके प्रावधानों से ज्यादा कड़े प्रावधान इन चार राज्यों के कानूनों में हैं. फिर भी वहां ना तो सिस्टम नकल रोक पा रहा है और ना पेपर लीक. अगर कुछ रोक पा रहा है तो पेपर लीक होने वाली प्रतियोगी परीक्षाएं. इसका खामियाजा अगर किसी को उठाना पड़ रहा है तो वो हैं देश के युवा, जो सरकारी नौकरी या प्रतियोगी परीक्षाओं में पास होने के लिए कड़ी तपस्या करते हैं और बदले में उन्हें मिलता है पेपर रद्द होने का मैसेज.
पेपर लीक माफिया को सजा ही नहीं मिल रही
आपने अक्सर सुना होगा कि कभी REET की परीक्षा का पेपर लीक हो गया, कभी NEET, तो कभी JEE की परीक्षा का पेपर लीक हो गया. इसके बाद पेपर लीक करने वालों की गिरफ्तारी की ख़बर आती है, लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि किसी पेपर लीक माफिया को सजा हुई? ऐसी ख़बरें सुनने को तब मिलेगी जब किसी माफिया को सजा होगी. पेपर लीक माफियाओं का सिंडिकेट इतना बड़ा हो चुका है कि छोटी मछली ही कानून के जाल में फंसती है, जबकि बड़े मगरमच्छ बच निकलते हैं. इसलिए जमीनी हकीकत ये है कि पेपर लीक माफिया खुद को कानून से ऊपर समझने लगे हैं, क्योंकि उनका नेटवर्क इतना मजबूत हो चुका है, जिसने सिस्टम में ही छेद कर दिया है और इसी सिस्टम लीकेज को ठीक करने की जरूरत है.
पेपर लीक होने के 5 सिस्टम
ज्यादातर प्रतियोगी या भर्ती परीक्षाओं के पेपर तैयार होने और उनके एग्जाम सेंटर तक पहुंचने की प्रक्रिया एक जैसी होती है. इसी प्रक्रिया के दौरान 5 ऐसे सिस्टम हैं, जहां से पेपर लीक होने की सबसे ज्यादा संभावना रहती है.
- पहला सिस्टम, जहां पेपर तैयार किया गया.
- दूसरा सिस्टम, जहां पेपर को प्रिंट किया गया.
- तीसरा सिस्टम, बीच रास्ते से पेपर लीक हो.
- चौथा सिस्टम यानी स्ट्रॉन्ग रूम से पेपर लीक.
- पांचवां सिस्टम एग्जाम सेंटर से पेपर लीक हो जाए.
पेपर तैयार करने से एग्जाम सेंटर तक पहुंचाने के बीच ही पेपर लीक हो सकता है. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान पेपर लीक ना हो, इसकी जिम्मेदारी प्रशासनिक अधिकारियों की होती है. जब इस सिस्टम में सेंध लगती है तभी कोई पेपर लीक हो सकता है.
पेपर लीक माफिया कैसे करते हैं काम
पेपर लीक माफिया कैसे काम करते हैं और उनके लिए पेपर लीक कराना कैसे संभव होता है, इसके लिए आपको पूरी प्रक्रिया को Detail में समझना होगा. प्रक्रिया के तहत सबसे पहले जिस भी विभाग में भर्ती होनी होती है, उसका आयोग या बोर्ड पेपर तैयार करने के लिए प्रोफेसर का सिलेक्शन करता है.
- पेपर तैयार करने वाले प्रोफेसर का सिलेक्शन अनुभव, ईमानदारी, क्रेडिबिलिटी और फीडबैक के आधार पर होता है.
- आयोग की तरफ से प्रोफेसर को सिलेबस, किताबें और जरूरी चीजें उपलब्ध करवाई जाती हैं.
- प्रोफेसर को पेपर तैयार करने से पहले एफिडेविट लिखित गोपनीयता और विश्वसनीयता की शपथ लेनी होती है.
- भर्ती करने वाला विभाग एक परीक्षा के 5 पेपर, अलग-अलग पांच प्रोफेसर से तैयार करवाता है.
- इसके बाद पांचों पेपर से सवालों को मिक्स करके या पांच में से किसी एक पेपर को आयोग के सदस्यों की टीम फाइनल करती है.
- इस दौरान पेपर तैयार करने वाले प्रोफेसर या जहां पेपर फाइनल किया गया है, वहां से पेपर लीक होने की संभावना रहती है.
जरूरी नहीं कि किसी एक प्रोफेसर का पेपर फाइनल हो, लेकिन उसके दिए गए कुछ प्रश्न पेपर में हो सकते हैं, जिन्हें लीक किया जा सकता है. हालांकि, इसके बाद फाइनल पेपर को प्रिंटिंग के लिए प्रेस पर भेज दिया जाता है और यही दूसरी जगह होती है, जहां से पेपर लीक होने संभावना बनी रहती है. ज्यादातर राज्य सरकारों के पास अपनी सरकारी प्रिंटिंग प्रेस नहीं है, ऐसी स्थिति में प्राइवेट प्रिंटिंग प्रेस में पेपर प्रिंट कराने पड़ते हैं.
- आमतौर पर प्रिंटिंग प्रेस का चुनाव भर्ती विभाग के अध्यक्ष करते हैं और प्रिंटिंग प्रेस की गोपनीयता का ख्याल रखा जाता है. इसी वजह से प्रिंटिंग प्रेस के लिए ओपन टेंडर नहीं निकाला जाता.
- वैसे तो प्रिंटिंग प्रेस को प्रिंट होने वाले पेपर की गोपनीयता का एफिडेविट देना होता है और पेपर नजरबंद करके छपवाए जाते हैं.
- फिर भी प्रिंटिंग प्रेस में काम करने वाले कर्मचारियों के पेपर की फोटो खींचकर उसे लीक करने की आशंका बनी रहती है.
- पेपर लीक करने वाला गिरोह या नकल कराने वाले प्रिंटिंग प्रेस के कर्मचारियों से मिलीभगत करके पेपर लीक कराते हैं.
किसी भी परीक्षा से कुछ समय पहले ही पेपर प्रिंट करा लिया जाता है. फिर इन पेपर्स को स्ट्रॉन्ग रूम में सुरक्षित रखा जाता है. स्ट्रॉन्ग रूम तक जब पेपर को लेकर जाया जाता है, तब भी पेपर के लीक होने की आशंका बनी रहती है. पेपर लीक होने की आशंका स्ट्रॉन्ग रूम से भी रहती है. वर्ष 2021 में राजस्थान में REET पेपर लीक हुआ था, जिसे लेकर खूब हल्ला हुआ. जांच में पता चला था कि REET का पेपर स्ट्रॉन्ग रूम से ही लीक किया गया था.
- REET का पेपर एग्जाम से दो दिन पहले जयपुर के Education Complex के स्ट्रॉन्ग रूम से लीक किया गया था.
- स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा में तैनात राम कृपाल मीणा ने ही REET पेपर लीक किया था.
- राम कृपाल मीणा ने डील के तहत पेपर 1 करोड़ 25 लाख रुपये में मुख्य आरोपी उदाराम विश्नोई को बेचा था.
इससे समझना मुश्किल नहीं कि स्ट्रॉन्ग रूम में भी पेपर सुरक्षित नहीं है, और यहां से किसी भर्ती परीक्षा के पेपर के लीक होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
पांचवें सिस्टम के तहत स्ट्रॉन्ग रूम के बाद किसी भी पेपर को एग्जाम सेंटर तक पहुंचाया जाता है. इस दौरान पेपर की सुरक्षा में पुलिस भी तैनात रहती है. पेपर परीक्षा शुरू होने से कुछ घंटे पहले ही एग्जाम सेंटर पर पहुंचा दिए जाते हैं. यहां से भी पेपर लीक होने की आशंका बनी रहती है.
- एग्जाम सेंटर पर परीक्षा से सिर्फ एक घंटे पहले पेपर सेंटर Superintendent के सामने बॉक्स से लिफाफे निकाले जाते हैं.
- लिफाफे पर सेंटर Superintendent और एग्जाम कराने वाली कंपनी के मैनेजर के साइन होते हैं.
- यहां एग्जाम कराने वाली कंपनी के स्टाफ और स्कूल संचालक की मिलीभगत से पेपर लीक हो सकते हैं.
- पेपर माफिया लिफाफा पहले खोलकर पेपर लीक करते हैं, और फिर फर्जी सील लगाकर लिफाफा बंद कर देते हैं.
पेपर लीक करने वाले शख्स को गिरोह के लोग मोटी रकम देते हैं, जैसे राजस्थान के REET केस में हुआ. स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा में तैनात राम कृपाल मीणा को बदले में सवा करोड़ रुपये मिले थे. इतनी मोटी रकम के लिए कुछ लोगों का ईमान डगमाने में देर नहीं लगती, और इसका फायदा पेपर लीक करने वाले उठाते हैं. माफिया जितनी रकम पेपर लीक के बदले चुकाते हैं, उससे कई गुना ज्यादा रकम वो खुद कमाते हैं. यही एक बड़ी वजह है कि पेपर लीक की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, और कुछ चुनिंदा लोगों की गिरफ्तारी के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है.
सुप्रीम कोर्ट भी जता चुका है चिंता
देश में पेपर लीक के बढ़ते मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जाहिर कर चुका है, सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि पेपर लीक देश की शिक्षा प्रणाली को बर्बाद कर रहा है. ऐसे में जरूरत ना सिर्फ सख्त कानून बनाने की है, बल्कि सिस्टम में जो माफियाओं ने छेद किया है, उसे भरने और सिस्टम को दुरूस्त करने की है ताकि देश के करोड़ों युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ ना हो.
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