डीएनए हिंदी: Rajasthan Poll Results 2023 Updates- राजस्थान विधानसभा चुनाव की मतगणना के बीच में ही तय हो गया है कि कांग्रेस भी हर बार सरकार बनाने वाली पार्टी बदलने का ट्रेंड नहीं बदल सकी है. कांग्रेस के लिए यह करारा झटका माना जा रहा है, क्योंकि पिछले डेढ़ साल के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बड़े पैमाने पर ऐसे काम किए थे, जिन्हें मैच विनर माना जा रहा था. अशोक गहलोत ने भी दावा किया था कि वे हर पांच साल में होने वाले सत्ता परिवर्तन के ट्रेंड को बदलने जा रहे हैं. इसके लिए उन्होंने 5 सियासी दांव चले थे, जो अब फेल दिख रहे हैं.
आइए जानते हैं उनके इन 5 सियासी दांव के फेल रहने का कारण क्या रहा.
1. नए जिलों का बड़े पैमाने पर किया गठन
अशोक गहलोत ने पिछले एक साल के दौरान राज्य में नए जिलों के गठन की बाढ़ लगा दी थी. गहलोत ने इस दौरान करीब 22 नए जिलों का गठन किया था. इसे जनता के स्थानीय स्तर पर विकास के लिए उठाया गया कदम बताया गया था. राज्य में नए जिलों की मांग लंबे समय से होती रही है. इसके बावजूद गहलोत के बनाए जिलों को ज्यादा तवज्जो नहीं मिली. माना जा रहा है कि जिलों के गठन के लिए दूसरे जिलों में की गई तोड़फोड़ से कई जगह जनता नाराज हुई है, जैसे जयपुर और जोधपुर जैसे राजसी जिलों से अलग जिलों के नाम पर अलग कर दी गई जनता ने इसे ज्यादा नहीं सराहा है. इसी कारण मतदान में इसका लाभ वोट के तौर पर कांग्रेस को नहीं मिला है.
2. कांग्रेस ने गारंटी दांव के जरिये भी लुभाने
गहलोत ने गारंटी दांव से भी वोटरों को लुभाने की कोशिश की थी. राज्य की जनता को 'गारंटी यात्रा' निकालकर 7 तरह की गारंटी दी गई थी. इनमें किसानों से 2 रुपये प्रति किलो गोबर खरीद, छात्रों को फ्री लैपटॉप, 500 रुपये में LPG सिलेंडर, परिवार की महिला मुखिया को 10 हजार रुपये सालाना जैसी गारंटी शामिल थीं. सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना (OPS) दोबारा लागू करने की गारंटी दी गई थी, लेकिन कांग्रेस के हालिया जीते गए राज्यों कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में पार्टी अपने चुनावी वादे पूरा करने में ज्यादा सफल नहीं रही है. इसके चलते गहलोत की गारंटियों पर मतदाता ज्यादा उत्साहित होते नहीं दिखाई दिए.
3. जातियों को लुभाने के लिए खेला था जातीय बोर्ड का दांव
मुख्यमंत्री गहलोत ने राज्य में ओबीसी से लेकर एससी तक सभी जातियों को लुभाने की कोशिश की थी. इसके लिए एक दर्जन से ज्यादा जातियों के नाम पर विभिन्न बोर्ड का गठन किया गया, लेकिन रिजल्ट दिखा रहा है कि जातीय बोर्ड बनाने का दांव भी गहलोत के काम नहीं आया है.
4. उम्मीदवारों की सोशल इंजीनियरिंग भी रही बेकार
मुख्यमंत्री गहलोत ने टिकट बांटने की जिम्मेदारी पूरी तरह अपने पास रखी थी. यहां तक कि आलाकमान को भी इसमें हस्तक्षेप नहीं करने दिया. राज्य में जातियों के गणित को अपने पक्ष में फिट करने के लिए उम्मीदवारों का चुनाव सोशल इंजीनियरिंग के तहत किया गया था. राज्य में OBC वोटबैंक सबसे ज्यादा हावी है. इसके चलते ओबीसी जातियों से 62 उम्मीदवार उतारे गए. फिर 35 दलित और 33 आदिवासी उम्मीदवार उतारे गए. सामान्य वर्ग को 43 और मुस्लिम वर्ग को 14 टिकट दिए गए. स्पेशल बैकवर्ड क्लास यानी स्पेशल OBC में शामिल गुर्जर व अन्य जातियों को भी 13 टिक मिले. ऐसे में हर वर्ग के उम्मीदवार उतारकर मजबूत फील्डिंग की गई थी, लेकिन रिजल्ट का कैच फिर भी पार्टी से छूट गया.
5. मौजूदा विधायकों के टिकट काटने का दांव पड़ा उल्टा
गहलोत ने 23 मौजूदा विधायकों के टिकट काटकर सत्ता विरोधी लहर से निपटने का दांव खेला था. साथ ही 2018 में हार चुके 68 नेता भी टिकट की होड़ से बाहर रखे. 44 नेताओं को पहली बार चुनावी मैदान में उतारा गया. लेकिन बड़े पैमाने पर किया गया यह उलटफेर ही पार्टी के लिए उल्टा पड़ गया है. माना जा रहा है कि इस दांव के कारण कांग्रेस को बड़ी संख्या में बागी उम्मीदवारों का सामना करना पड़ा है. इससे पार्टी के समर्थक वोटबैंक में सेंध लगी, जिसका लाभ भाजपा को मिला है.
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