भारत के सबसे बड़े उद्योगपतियों में से एक, रतन टाटा के निधन से देश को बड़ा झटका लगा है. मुकेश अंबानी समेत तमाम उद्यमी ऐसे हैं, जिनका मानना है कि रतन टाटा के दुनिया छोड़ने के बाद एक युग का अंत हो गया है. भले ही रतन टाटा आज हमारे बीच न हों लेकिन ये बात हम भारतीयों के लिए गर्व का पर्याय है कि, उनका समूह यानी टाटा ग्रुप कम से कम 90 देशों की जीडीपी से बड़ा है. और आने वाले कई दशकों तक उनकी अलग अलग कंपनियां तिरंगे को विश्व पटल पर ऊंचा बनाए रखेंगी.
जी हां बिलकुल सही सुना आपने. 20 अगस्त, 2024 तक टाटा समूह का मार्केट कैपिटलाइजेशन लगभग 403 बिलियन डॉलर था. इसके विपरीत, यदि हम विश्व बैंक के डाटा पर नजर डालें तो मिलता है कि 2023 में मौजूदा कीमतों पर ईरान की जीडीपी 401.5 बिलियन डॉलर है.
टाटा समूह अन्य बड़े देशों जैसे मलेशिया ($400 बिलियन), मिस्र ($396 बिलियन), हांगकांग ($382 बिलियन), दक्षिण अफ्रीका ($378 बिलियन), कोलंबिया ($364 बिलियन), नाइजीरिया ($363 बिलियन), रोमानिया ($351 बिलियन) और पाकिस्तान ($338 बिलियन) के इकोनॉमिक साइज से भी बड़ा है.
गौरतलब है कि टाटा ग्रुप10 अलग-अलग क्षेत्रों जैसे आईटी, स्टील, ऑटो, कंस्यूमर और रिटेल, इंफ्रास्ट्रक्चर, वित्तीय सेवाएं, एयरोस्पेस और रक्षा, पर्यटन और यात्रा, दूरसंचार और मीडिया, तथा व्यापार और निवेश में काम करता है. ये कंपनियां छह महाद्वीपों के 100 से ज़्यादा देशों में काम करती हैं.
अकेले टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) का पूरे समूह की मार्केट वैल्यू में लगभग आधा हिस्सा है. BSE के अनुसार 10 अक्टूबर को TCS का मार्केट कैप 182 बिलियन डॉलर था. कंपनी ने 31 मार्च, 2024 को समाप्त वित्तीय वर्ष में 29.1 बिलियन डॉलर का कंसॉलिडेटेड रेवेन्यू प्राप्त किया. यह रिलायंस इंडस्ट्रीज के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है, जिसका मार्केट कैप 10 अक्टूबर को 221 बिलियन डॉलर था.
पिछले वित्तीय वर्ष में टाटा स्टील का मार्केट कैप 23.8 बिलियन डॉलर और रेवेन्यू 27.3 बिलियन डॉलर रहा. टाटा मोटर्स, टाइटन, टाटा केमिकल्स, टाटा पावर, इंडियन होटल्स, टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स, टाटा कम्युनिकेशंस, वोल्टास, ट्रेंट, टाटा इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन, टाटा मेटालिक्स, टाटा एलेक्सी, नेल्को और टाटा टेक्नोलॉजीज टाटा समूह की सबसे मूल्यवान कंपनियों की सूची में शामिल हैं.
तो इन बातों के बाद कहा यही जाएगा कि भले ही रतन टाटा आज हमारे बीच न हों. लेकिन अपने दृढ़ निश्चय, सहस, सूझ बूझ से उन्होंने टाटा को एक ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है जो देश के विकास में बड़ी भूमिका निभा रहा है. अब सवाल ये है कि क्या टाटा की विरासत बाकी रहेगी? सवाल तमाम हैं जिसका जवाब हमें आने वाला वक़्त ही देगा.
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