'सेमीकंडक्टर किंग' बनना चाहता है भारत, जानें डेढ़ साल में कहां तक पहुंचा है महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट
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Semicon India 2023: मोदी सरकार ने भारत को सेमीकंडक्टर चिप उत्पादन का हब बनाने के लिए डेढ़ साल पहले इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन की शुरुआत की थी.
डीएनए हिंदी: India Semiconductor Mission- गुजरात के गांधीनगर में आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सेमीकॉन इंडिया (Semicon India 2023) का उद्घाटन करेंगे. यह देश के महत्वाकांक्षी इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) की दूसरी सालाना कॉन्फ्रेंस है, जो एक बेहद अहम समय में आयोजित हो रही है. ग्लोबल सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री लगातार एडवांस्ड टेक्नोलॉजीज के कारण तेजी से बदल रही है और सप्लाई चेन से लेकर भूराजनीतिक हालातों में तेजी से हो रहे बदलावों के प्रभाव से गुजर रही है. ऐसे में भारत खुद को सेमीकंडक्टर चिप उत्पादन की सप्लाई चेन में एक अहम खिलाड़ी के तौर पर स्थापित करने की जुगत भिड़ा रहा है, जिसका सपना मोदी सरकार ने करीब डेढ़ साल पहले देश में सेमीकंडक्टर उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय मिशन के तहत देखा था. इसके लिए सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को तमाम तरह की रियायतें भी दी गई थीं. आइए जानते हैं कि यह मिशन डेढ़ साल बाद कहां तक पहुंचा है.
पहले जान लीजिए सेमीकंडक्टर चिप की आपके जीवन में अहमियत
जब आप कार चलाते हैं, फ्लाइट से चंद घंटों में दो देशों के बीच की दूरी नापते हैं, मोबाइल से पेमेंट करते हैं तो सेमीकंडक्टर चिप ही हमारे लिए सबसे अहम भूमिका निभाती है. डिजिटल वर्ल्ड में आपके ऑफिस का काम निपटा रहे लैपटॉप से लेकर दुश्मन को ध्वस्त कर रही मिसाइल तक की 'धड़कन' एक ही चीज होती है, जिसे दुनिया सेमीकंडक्टर या माइक्रोचिप कहती है. इस चिप की असल अहमियत का अहसास कोविडकाल में हुआ था, जब सिलिकॉन की बनी इस छोटी सी चिप की सप्लाई गड़बड़ाने के कारण दुनिया के 169 इंडस्ट्रियल सेक्टर में हाहाकार मच गया था. मोबाइल, लैपटॉप, कार, किचन अप्लायंस तक हर चीज का उत्पादन ठप होने के हालात बन गए थे. यही कारण था कि भारत ने सेमीकंडक्टर चिप का उत्पादन अपने यहां करने का 'राष्ट्रीय मिशन' शुरू किया था.
क्या भारत में पहले नहीं बन रही थी चिप?
भारत में चिप उत्पादन की कोशिश हो रही है, लेकिन यह बेहद छोटे पैमाने पर है. डिलॉइट की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत दुनिया की चिप डिमांड का महज 5 फीसदी हिस्सा ही पूरा कर पाता है. हालांकि साल 2026 में इसके बढ़कर दोगुना होने की उम्मीद है. प्रधानमंत्री मोदी ने डेढ़ साल पहले जब इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन की शुरुआत के लिए निवेशकों को आमंत्रण दिया था तो उन्होंने कहा था कि भारत में 2026 तक 80 अरब डॉलर के सेमीकंडक्टर की खपत होने लगेगी और 2030 तक ये आंकड़ा 110 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा.
डेढ़ साल में कहां तक पहुंचा है मिशन
दुनिया की सबसे बड़ी चिप मेन्युफेक्चर कंपनी ताइवान की फॉक्सकॉन (Foxconn) है, जिसने भारतीय कंपनी वेदांता के साथ 19.5 अरब डॉलर का जॉइंट मेन्युफेक्चरिंग प्लांट लगाने की तैयारी की है. हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि फॉक्सकॉन इस जॉइंट वेंचर से हाथ खींच रहा है. इसके लिए फॉक्सकॉन ने इस प्रोजेक्ट के बेहद धीमे तरीके से आगे बढ़ने का आरोप लगाया है. हालांकि यह भी खबरें हैं कि मोदी सरकार फॉक्सकॉन को इस प्रोजेक्ट से जुड़े रहने के लिए मना रही है.
पीएम मोदी के अमेरिकी दौरे पर क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक्नॉलजी (iCET) समझौते के तहत सेमीकंडक्टर सप्लाई को बेहतर बनाने के लिए समझौते हुए. इसके बाद चिप उत्पादन की बड़ी अमेरिकी कंपनी माइक्रॉन ने गुजरात में असेंबली और टेस्ट फैसेलिटी बनाने के लिए 3 अरब डॉलर का निवेश करने की घोषणा की है. मोदी सरकार ने जापान के साथ भी सेमीकंडक्टर सप्लाई से जुड़े एक मेमोरैंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके अलावा भी मोदी सरकार 10 अरब डॉलर का ऑफर लेकर कई टेक्नोलॉजी पार्टनरों के संपर्क में बताई जा रही है. इन सबके बावजूद डेढ़ साल के दौरान अब तक भारतीय मिशन प्लानिंग के अभाव से जूझता ही दिखा है.
चिप डिजाइन में पहले से ही भारत का दबदबा
भारत के लिए सेमीकंडक्टर मिशन में सबसे पॉजिटिव बात इसके डिजाइन वाले पहलू को लेकर है. दुनिया के चिप डिजाइन का 20 फीसदी काम भारतीय ही कर रहे हैं. BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, 50,000 से ज्यादा भारतीय इस काम से जुड़े हैं. इसी कारण इंटेल, एएमडी, क्वालकॉम जैसी सेमीकंडक्टर कंपनियों के R&D सेंटर भारत में ही हैं, लेकिन चिप बनाने वाले फैब्रिकेशन प्लांट या फैब यूनिट (एक-आध कंपनी को छोड़कर) किसी कंपनी ने भारत में नहीं बनाई है.
कहां है असली परेशानी
डिजाइन फंक्शन में भारत पहले से ही मजबूत है, लेकिन चिप के निर्माण में डिजाइन के अलावा प्रोडक्ट डवलपमेंट, एटीपी (फैब्रिकेशन, असेंबली, टेस्ट, पैकेजिंग) और सपोर्ट भी होती है. मैन्यूफैक्चरिंग से जुड़े इन पहलुओं पर भारत अभी शून्य पर ही खड़ा है. दूसरे शब्दों में कहें तो इंटेल, टीएसएमसी और माइक्रोन जैसी दिग्गज चिप कंपनियां अपने चिप की डिजाइनिंग और सेमीकंडक्टर प्रोडक्ट की पैकेजिंग व टेस्टिंग तो भारतीय इंजीनियरों से यहां कराती हैं, लेकिन इसके बाद चिप अमेरिका, ताइवान, चीन और कुछ यूरोपीय देशों में बनती है. यही भारत के सेमीकंडक्टर बिजनेस की सबसे कमजोर कड़ी है. सबसे बड़ी दिक्कत मैन्यूफैक्चरिंग के इन सब हिस्सों के लिए प्रशिक्षित कामगारों की कमी की है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को यदि निवेश मिला तो वैल्यू चेन में करीब 2.5 लाख प्रशिक्षित लोगों की जरूरत होगी, जिनकी उपलब्धता फिलहाल नहीं दिख रही है. हालांकि भारत सरकार ने 'चिप्स टू स्टार्टअप' स्कीम के तहत 85,000 इंजीनियर को ट्रेनिंग देने की शुरुआत की है.
भारतीय इकोनॉमी को भी हो रहा इससे नुकसान
सेमीकंडक्टर चिप को लेकर आयात पर निर्भरता होना भारत की इकोनॉमी को भी नुकसान दे रहा है. स्थानीय चिप की कमी के कारण ही भारत में मोबाइल-लैपटॉप जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स का उत्पादन बेहद महंगा है. इसी कारण इनका आयात होता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स का आयात पेट्रोल और गोल्ड के बाद तीसरे नंबर पर है, जिसके चलते विदेशी मुद्रा भंडार पर एक बड़ा बोझ इलेक्ट्रॉनिक्स आयात का भी है. इस आयात में करीब 1.20 लाख करोड़ रुपये की हिस्सेदारी अकेले सेमीकंडक्टर चिप की ही है. यदि भारत में ही इसका उत्पादन होगा तो इतनी बड़ी विदेशी मुद्रा बाहर जाने से रुक जाएगी.
भारत का इंसेंटिंव ऑफर कितना लुभा पा रहा कंपनियों को?
मोदी सरकार ने देश में चिप उत्पादन करने के लिए आने वाली ग्लोबल कंपनियों के लिए 10 अरब डॉलर की सब्सिडी का इंसेंटिव घोषित किया है. क्या यह ऑफर कंपनियों को लुभा पाएगा? यह सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है, क्योंकि अमेरिका ने 52 अरब डॉलर, चीन ने 2025 तक 150 अरब डॉलर और यूरोपीय संघ ने 20 से 35 अरब डॉलर के इंसेंटिव का लालच मैन्यूफेक्चरिंग कंपनियों को दे रखा है. इन्सेंटिव के इन आंकड़ों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये कंपनियां कहां पैसा लगाएंगीं.
फिर भी क्यों भारत में आ सकती हैं कंपनियां
इंसेंटिव के मामले में भारत की कमजोर स्थिति के बावजूद कुछ कारण हैं, जिनके चलते कंपनियां भारत आ सकती हैं. चीन के बाद भारत में ही सबसे सस्ता श्रम है, जो मैन्यूफेक्चरिंग कॉस्ट में सबसे बड़ा पहलू है. जियोपॉलिटिक्स के कारण अमेरिकी कंपनियों पर अपना फोकस चीन से हटाने का दबाव है. भारत और अमेरिका की दोस्ती फिलहाल चरम पर है. इसके चलते आउटसोर्स सपोर्ट पर काम करने वाली अमेरिकी कंपनियां यहां आ सकती हैं. माइक्रॉन का निवेश का ऐलान इसी का नतीजा है. दूसरा कारण है रूस और यूक्रेन, दोनों के साथ भारत की दोस्ती. दरअसल चिप निर्माण में इस्तेमाल होने वाली धातु पैलेडियम का सबसे बड़ा सप्लायर रूस है, जबकि यूक्रेन नियोन गैस के सबसे बड़े सप्लायरों में से एक है. ये दोनों ही सेमीकंडक्टर चिप मैन्यूफेक्चरिंग के 'ऑयल' हैं, जिन तक भारत की पहुंच समान है. हालांकि चीन भी इसी कारण रूस के साथ-साथ यूक्रेन संग भी अपने रिश्ते मजबूत कर रहा है, लेकिन फिलहाल भारत के लिए यह राह आसान लगती है. तीसरा कारण है भारत की तरफ से लॉजिस्टिक्स, स्किल्ड वर्कर और बिजली सप्लाई के लेवल पर दिखाई गई प्रगति. ग्लोबल लेवल पर इन बातों की चर्चा है.
कहां है भारत को सुधार की जरूरत
इंटरनेशनल लेवल पर भारत की रैंकिंग कुछ फैक्टर्स में बेहद खराब है, जो यहां मैन्यफेक्चरिंग कंपनियों को आने से पहले भी रोकती रही हैं. इन फैक्टर्स को सुधारना भारत की प्राथमिकता होनी चाहिए. ये फैक्टर्स निम्न हैं-
- व्यवसाय के लिए मुश्किल देश होने की इमेज
- सॉफ्टवेयर स्किल जैसी क्षमता हार्डवेयर लेवल पर नहीं
- मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर का देश की GDP में स्थिर योगदान
- सीमा शुल्क, टैक्स से जुड़े मुश्किल नियम
- इंफ्रास्ट्रक्चर के लेवल पर कमजोर स्थिति
सरकार का क्या है कहना
स्किल डवलपमेंट एंड एंटरप्रेन्योरशिप मंत्री और इलेक्ट्रॉनिक्स एंड आईटी मंत्री का पद संभाल रहे राजीव चंद्रशेखर को भारत की सेमीकंडक्टर उत्पादन में प्रगति पर कोई शक नहीं है. उन्होंने गुरुवार को इस सेक्टर में पिछड़ेपन के लिए पिछली सरकारों में विजन की कमी को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा, हमारी सरकार ने भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स इकोसिस्टम को दोबारा जिंदा किया है और अब इसे दुनिया के सबसे तेज प्रगति वाले इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफेक्चरिंग देशों में शामिल करने की कोशिश है.
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