What is Septicemia: भोजपुरी की मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा ने कई दिन तक वेंटिलेटर पर मौत से जूझने के बाद आखिरी सांस ले ली है. उनक निधन दिल्ली एम्स में इलाज के दौरान मंगलवार (5 नवंबर) देर रात हुआ है. यह संयोग ही है कि छठ गीतों के लिए चर्चा में रहने वालीं शारदा सिन्हा (Sharda Sinha Passes Away) का निधन इस त्योहार के 'नहाय खाय' के दिन हुआ है. बता दें कि शारदा सिन्हा करीब 6 साल से एक तरह के बोन कैंसर मल्टीपल मायलोमा (Multiple Myeloma) से जूझ रही थीं, लेकिन उनका निधन इस बीमारी के कारण नहीं हुआ है. दरअसल Delhi AIIMS ने शारदा सिन्हा के निधन की पुष्टि करते हुए बताया कि उनकी मौत सेप्टीसीमिया (Septicemia) के कारण आए रिफैक्टरी शॉक के चलते हुई है. यह पढ़कर आपके दिमाग में सवाल चल रहा होगा कि आखिर मल्टीपल माइलोमा और सेप्टीसीमिया, कौन सी बीमारियां हैं, जिन्होंने हमसे इस मशहूर लोक गायिका को छीन लिया है. चलिए हम आपको इन बीमारियों के बारे में बताते हैं.
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पहले जान लीजिए क्या होता है मल्टीपल मायलोमा
मल्टीपल मायलोमा के तरीह का दुर्लभ रक्त कैंसर (Blood Cancer) है, जो हड्डियों के अंदर अस्थि मज्जा (Bone Marrow) में प्लाज्मा कोशिकाओं में पैदा होता है. इसे प्लाज्मा सेल कैंसर भी कहते हैं. सामान्य तौर पर प्लाज्मा कोशिकाएं वे व्हाइट ब्लड सेल्स (White Blood Cells) होती हैं, जो शरीर के इम्यून सिस्टम का केंद्र हैं. ये प्लाज्मा कोशिकाएं हीं शरीर को संक्रमण से बचाने के लिए एंटीबॉडी बनाती हैं और आपको बीमारियों से बचाती हैं. मल्टीपल मायलोमा में ये प्लाज्मा कोशिकाएं असामान्य कोशिकाओं में बदल जाती हैं और सामान्य व्हाइट ब्लड सेल्स को खत्म करने लगती हैं.ल ये प्लाज्मा कोशिकाएं एम प्रोटीन नाम के असामान्य एंटीबॉडी का उत्पादन करती हैं, जो सामान्य व्हाइट ब्लड सेल्स का दुश्मन होता है. इससे आपके रक्त में इंफेक्शन को बढ़ाने के साथ ही हड्डी और टिश्यूज को भी नुकसान पहुंचाने लगती हैं. मौजूदा समय में मल्टीपल मायलोमा को कोई कारगर इलाज नहीं है, लेकिन उपचार के जरिये इसे काबू में रखा जा सकता है.
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अब जान लीजिए क्या होता है सेप्टीसीमिया
सेप्टीसीमिया को सेप्सिस भी कहते हैं. पहली नजर में यह सेप्टिक से मिलता-जुलता नाम लगता है. इसके नुकसान भी सेप्टिक जैसे ही हैं. सेप्टीसीमिया उस कंडीशन को कहते हैं, जब आपका शरीर किसी संक्रमण के खिलाफ ओवर रिएक्ट करने लगता है. यह किसी बैक्टीरिया, वायरस, या फंगस के कारण हो सकता है. इसके चलते ब्लड में जहर फैलता जाता है और सही इलाज नहीं मिलने पर टिश्यू मरते जाते हैं, जिससे ऑर्गन फेल्योर की कंडीशन आकर मरीज की मौत हो जाती है.
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कैसे होता सेप्टीसीमिया
सेप्टीसीमिया उस समय होता है, जब आपका शरीर किसी कारण से संक्रमण का शिकार हो जाता है. यह संक्रमण जब आपके शरीर के ब्लड सर्कुलेशन में एंट्री करता है तो उसके बैक्टीरिया पूरे शरीर में फैल जाते हैं. इससे मरीज की मानसिक स्थिति बदलने लगती है और उसकी धड़कनें बढ़ती जाती हैं. इस दौरान डायबिटिज का शिकार नहीं होने पर भी मरीज के शरीर में ग्लूकोज की मात्रा अचानक बेहद हाई हो जाती है. सेप्टीसीमिया के कारण शरीर को शॉक जैसा अनुभव होने लगता है, जो आखिर में ऑर्गन फेल्योर में बदल जाता है और एक साथ कई अंग काम करना बंद कर देते हैं. ऐसी स्थिति में मरीज की मौत हो जाती है.
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क्या होते हैं सेप्टीसीमिया के शुरुआती लक्षण
- मरीज का दिल एक मिनट में 90 से ज्यादा बार धड़कने लगता है.
- मरीज का दिमाग भ्रम जैसी स्थिति में आ जाता है या कोमा में चला जाता है.
- मरीज एक मिनट में 20 से ज्यादा बार तेजी से सांस लेने लगता है.
- मरीज का दिल तेजी से धड़कता है, लेकिन सांस लेने में बहुत परेशानी होने लगती है.
- मरीज को प्यास ज्यादा लगने लगती है, लेकिन यूरिन बेहद कम आने लगता है.
- मरीज के पेट में दर्द शुरू हो जाता है, जो धीरे-धीरे असहनीय हो जाता है.
किन लोगों को ज्यादा हो सकती है ये बीमारी
सेप्टीसीमिया या सेप्सिस का शिकार होने के ज्यादा चांस बुजुर्गों, बच्चों, इम्यूनिटी कमजोर करने वाली दवाई का सेवन कर रहे लोगों, डायबिटिज रोगियों या हाल ही में किसी तरह की सर्जरी से गुजरने वाले मरीजों में होता है. इससे बचाव के लिए जरूरी है कि यदि आपका इम्यून सिस्टम कमजोर है तो नियमित चेकअप कराएं. यदि आपकी सर्जरी हुई है तो आसपास सफाई रखें और सर्जरी के जख्म की साफ-सफाई करते रहें. यदि आपको किसी तरह की चोट लगी है तो डॉक्टर की सलाह से जरूरत पड़ने पर सही समय रहते वैक्सीनेशन अवश्य कराएं.
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