DNA Explainer: क्या है पेगासस जासूसी केस, जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गठित की कमेटी?

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Dec 02, 2021, 06:41 PM IST

दुनियाभर में सुर्खियों में रहा है पेगासस केस (सांकेतिक तस्वीर: DNA)

सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी विवाद (Pegasus Spy Dispute) की जांच के लिए एक पैनल के गठन को मंजूरी दे दी है.

डीएनए हिंदी: पेगासस जासूसी केस (Pegasus Spyware Case) साल के सबसे चर्चित मामलों में से एक है. इस केस की गूंज सड़क से लेकर संसद तक सुनाई दी. 27 अक्टूबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि निजता के उल्लंघन के केस की जांच होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए 3 सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया है जो जासूसी केस की जांच करेगी. 

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कहा है कि पेगासस विवाद की जांच और सच्चाई का पता लगाने के लिए समिति का गठन किया गया है. इस मामले में निजता के अधिकार के उल्लंघन की जांच की जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीयों की निगरानी में विदेशी एजेंसी की संलिप्तता की गंभीर चिंता का विषय है.

याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि सुप्रीम कोर्ट पूरे प्रकरण की जांच कराए. कमेटी की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज आरवी रवींद्रन कर रहे हैं वहीं आलोक जोशी और संदीप ओबेरॉय भी जांच समिति के सदस्य हैं. पेगासस केस को लेकर विपक्ष के निशाने पर केंद्र है. मॉनसून सत्र के दौरान भी कथित तौर पर इस जासूसी केस पर हंगामा किया गया था. 5 राज्यों में आने वाले दिनों में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में राजनीतिक पार्टियां इस केस को चुनावी मुद्दा भी बनाने की कोशिश कर रही हैं.

सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक तीन सदस्यीय समिति के गठन से मामले की गहन जांच होगी. अदालत 8 सप्ताह में इस समिति द्वारा सामने रखे गए आंकड़ों की समीक्षा करेगी. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हमने सरकार को नोटिस जारी किया है. हमने सरकार को उसके द्वारा की गई सभी कार्रवाई का ब्योरा देने का पर्याप्त अवसर दिया लेकिन बार-बार मौके देने के बावजूद उन्होंने सीमित हलफनामा दिया है जिससे चीजें स्पष्ट नहीं हो रही है. दरअसल नेशनल सिक्योरिटी का हवाला देते हुए केंद्र सरकार ने हलफनामा या टिप्पणी देने से इनकार कर दिया था. वहीं पेगासस केस पर विपक्षी पार्टियां भी केंद्र सरकार को घेर रही हैं. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि पेगासस है क्या और क्यों इसे विपक्ष मुद्दा बना रहा है?

क्या है पेगासस सॉफ्टवेयर?

NSO ग्रुप नाम के एक इजरायली टेक फर्म द्वारा विकसित, पेगासस एक अत्याधुनिक सर्विलांस सॉफ्टवेयर है. एनएसओ समूह स्पेशल साइबर हथियार बनाने में अपनी विशेषज्ञता के लिए प्रसिद्ध है. पेगासस पहली बार तब चर्चा में आया जब 2016 में एक अरब मानवाधिकार कार्यकर्ता के आईफोन को हैक करने के लिए इस सॉफ्टवेयर का कथित तौर पर इस्तेमाल किया गया था. आईफोन निर्माता ऐप्पल ने कथित घटना के कुछ दिनों बाद iOS अपडेट जारी किया था जिसने सिक्योरिटी सिस्टम को मजबूत कर दिया था. दावा किया जा रहा था कि पेगासस के जरिए लगातार हैकिंग की कोशिश की जा रही थी. 

साल 2017 में भी एक स्टडी सामने आई थी जिसमें दावा किया जा रहा था कि यह सॉफ्टवेयर एंड्रॉयड यूजर्स का भी फोन हैक कर सकता है. पेगासस का फेसबुक के साथ भी विवाद रहा है. 2019 में सर्विलांस सॉफ्टवेयर बनाने के लिए फेसबुक ने NSO ग्रुप के खिलाफ केस किया था.

Pegasus को फोन हैकिंग के लिए सबसे मजबूत सॉफ्टवेयर माना जाता है. NSO ग्रुप की ओर से बार-बार दावा किया जाता है कि पेगासस सॉफ्टवेयर के दुरुपयोग के मामले में संस्था की जिम्मेदारी नहीं है. समूह का यह भी दावा है कि सॉफ्टवेयर सिर्फ 'सरकारों' को ही बेचा जाता है,  किसी व्यक्ति या संस्था को नहीं. इसी वजह से भारत में विपक्षी पार्टियां सरकार पर सवाल खड़े कर रही हैं. इसे विपक्षी पार्टियां चुनावी मुद्दा भी बनाने की कोशिशों में जुटी हैं.

क्या है पेगासस जासूसी केस?

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत में कई दिग्गज जनप्रतिनिधि, बिजनेसमैन, पत्रकार, वकील और मंत्री सॉफ्टवेयर की निगरानी में थे. जिनकी कथित तौर पर जासूसी की गई है उनमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, दो तत्कालीन केंद्रीय मंत्री, एक पूर्व चुनाव आयुक्त और 40 से अधिक पत्रकार शामिल थे. इनमें से किसी भी नाम की पुष्टि अभी तक किसी आधिकारिक सूत्र ने नहीं की है. विपक्ष इन्हीं मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार पर हमलावर है, वहीं केंद्र सरकार ने पूरे प्रकरण को एक सिरे से खारिज कर दिया है.

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