Tehri Lok Sabha Seat: 'महारानी' को 'बेरोजगार' की चुनौती, क्या टिहरी लोकसभा सीट पर टूट पाएगा भगवा किला?

Written By कुलदीप पंवार | Updated: Apr 11, 2024, 08:14 PM IST

Tehri Lok Sabha Seat: टिहरी सीट पर 9 बार चुनाव हुए हैं, जिनमें से 8 बार भाजपा ने जीत हासिल की है. यहां हमेशा भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला रहा है, लेकिन इस बार मामला अलग है.

Tehri Lok Sabha Seat: लोकसभा चुनाव का मंच सजा हुआ है. पूरे देश में जमकर प्रचार चल रहा है. हर तरफ हॉट सीट्स पर जीतने वाले-हारने वाले उम्मीदवारों की बात हो रही है. ऐसे में चीन की सीमा से सटी एक ऐसी सीट भी चर्चा में है, जहां भाजपा का 'भगवा किला' तोड़ना असंभव माना जाता है. यह सीट है टिहरी लोकसभा क्षेत्र, जहां पिछले 9 में से 8 बार लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Elections 2024) में भाजपा ने जीत हासिल की है. लेकिन इस बार हवा का रुख अलग माना जा रहा है. यहां राजपरिवार की सत्ता को एक 'बेरोजगार' ने चुनौती दी हुई है. चुनौती भी ऐसी कि इस सीट पर दूसरे नंबर पर रहने के बावजूद 30-40% वोट हासिल करने वाली कांग्रेस की चर्चा ही नहीं हो रही है. यह चुनौती है निर्दलीय उम्मीदवार बॉबी पंवार (Bobby Panwar) की, जिसने टिहरी सीट पर लगातार तीन बार जीत चुकीं मौजूदा सांसद माला राज्यलक्ष्मी शाह के सामने अपना दमखम दिखाया हुआ है. अब देखना ये है कि क्या बॉबी पंवार इस सीट पर राज परिवार का वर्चस्व तोड़ पाएंगे?

टिहरी की महारानी हैं माला राज्य लक्ष्मी शाह

टिहरी सीट पर फिलहाल माला राज्य लक्ष्मी शाह भाजपा के टिकट पर सांसद हैं, जो आजादी से पहले की टिहरी रियासत की महारानी हैं. माला को साल 2012 में हुए उपचुनाव में उनके ससुर महाराजा मानवेंद्र शाह की विरासत इस सीट पर मिली थी, जो यहां से 8 बार चुनाव जीते थे. 2012 में जीतने के बाद महारानी ने साल 2014 और 2019 में भी यहां जीत हासिल की है. वे उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद यहां से सांसद बनने वाली पहली महिला हैं.

बेरोजगारों के आंदोलन से निकले हैं बॉबी

टिहरी की महारानी को चुनौती दे रहे निर्दलीय उम्मीदवार बॉबी पंवार देहरादून जिले के मशहूर टूरिस्ट स्पॉट चकराता के निवासी हैं. बॉबी बार-बार पेपर लीक होने के कारण रद्द होने वालीं उत्तराखंड की सरकारी भर्ती परीक्षाओं के कारण उपजे बेरोजगार युवकों के आंदोलन से चर्चित हुए थे. बॉबी ने देहरादून में लंबे समय तक बेरोजगार युवकों की भीड़ जुटाकर प्रदर्शन किया था, जिसके बाद राज्य सरकार ने हिंसक लाठीचार्ज कराकर बेरोजगार युवकों को जेल भेज दिया था. इस घटना के कारण पूरे राज्य में बड़े पैमाने पर युवा बॉबी के पक्ष में खड़े हो गए थे. इसी समर्थन के आधार पर बॉबी ने टिहरी लोकसभा सीट पर राजशाही के वर्चस्व को चुनौती देने की ठानी है. 

कांग्रेस ने उतारा है दो बार के विधायक

कांग्रेस ने टिहरी लोकसभा सीट पर परंपरागत उम्मीदवार माने जाने वाले प्रीतम सिंह का टिकट इस बार काट दिया है. प्रीतम सिंह की जगह मसूरी से दो बार विधायक बन चुके वरिष्ठ नेता जोत सिंह गुंसोला को मौका दिया गया है. चर्चा है कि इसके चलते प्रीतम सिंह के समर्थकों में नाराजगी है और वे पर्दे के पीछे से कांग्रेसी उम्मीवार के बजाय बॉबी पंवार का समर्थन कर रहे हैं.

क्या है इस सीट पर वोट का गणित

टिहरी लोकसभा सीट पर 14,93,543 मतदाता हैं, जिनमें 7,87,639 पुरुष वोटर और 7,05,853 महिला वोटर हैं. इस सीट पर अमूमन 55 से 65% वोटर अपने मताधिकार का उपयोग करते हैं. इस सीट के दायरे में टिहरी, उत्तरकाशी और देहरादून जिलों की 14 विधानसभा सीट आती हैं. यह सीट इसलिए भी बेहद अहम है, क्योंकि इसके दायरे में ही चार धाम में से दो प्रमुख धाम गंगोत्री और यमुनोत्री आते हैं. साथ ही मसूरी, चकराता, धनोल्टी, हर्षिल और टिहरी बांध जैसे चर्चित टूरिस्ट स्पॉट्स भी इसी सीट के इलाके में आते हैं. इस सीट पर सबसे बड़ा मुद्दा राजपरिवार से बनने वाले सांसदों का स्थानीय मुद्दों की अनदेखी करना है. आम लोगों को शिकायत है कि उनकी सांसद आसानी से उपलब्ध नहीं होती, जिससे उनकी समस्याओं का निवारण नहीं होता है. यहां के स्थानीय मुद्दों में टिहरी बांध से हुआ विस्थापन, भूस्खलन की बढ़ती घटनाएं, जंगलों की बढ़ती आग और ऑलवेदर रोड बनने के बावजूद अंदरूनी इलाकों में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य व स्थानीय रोजगार शामिल है.

क्या रहा था साल 2014 और 2019 के चुनावों में

टिहरी सीट पर साल 2014 में माला राज्य लक्ष्मी शाह ने इस सीट पर कांग्रेस के साकेत बहुगुणा को मात दी थी, जो पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बेटे थे. भाजपा को 57.30 और कांग्रेस को 32.75 फीसदी वोट मिले थे. साल 2019 में भी माला राज्य लक्ष्मी शाह ने कांग्रेस के प्रीतम सिंह को इस सीट पर 3,00,586 वोट के बड़े अंतर से शिकस्त दी थी. भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़कर 64.3% हो गया था, लेकिन कांग्रेस को भी 30.11% वोट मिले थे. 

पार्टी कोई रहे हो, जीता राजपरिवार ही

टिहरी सीट पर राजपरिवार का वर्चस्व हमेशा से ही रहा है. साल 1951-52 में पहले चुनाव में महारानी कमलेंदुमति निर्दलीय जीती थीं, तो  1957, 1962 और 1967 में महाराजा मानवेंद्र शाह ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की. साल 1977 और 1980 में लगातार दो बार BLD के त्रेपन सिंह नेगी यहां से जीते. उनके बाद 1984 और 1989 में लगातार दो बार कांग्रेस के ही टिकट पर ब्रह्मदत्त ने जीत हासिल की. 1991 में एक बार फिर महाराजा मानवेंद्र शाह ने जीत हासिल की, लेकिन उन्होंने यह जीत कांग्रेस के बजाय भाजपा के टिकट पर हासिल की. मानवेंद्र शाह इसके बाद साल 2009 तक लगातार 4 बार और चुनाव जीते. साल 2009 में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने मानवेंद्र शाह की जीत का क्रम तोड़ा और कांग्रेस को जीत दिलाई, लेकिन 2012 में उनके मुख्यमंत्री बनने पर हुए उपचुनाव में फिर से यह सीट भाजपा के खाते में आ गई और तब से यहां भगवा झंडा ही लहरा रहा है. 

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