New York में आयोजित United Nations की वार्षिक बैठक सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोर रही है. भले ही इस बैठक में 140 वैश्विक नेताओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई हो. मगर यहां मौजूद शायद ही कोई ऐसा शख्स हो, जो बैठक और वहां हो रही बातों को लेकर उत्साहित नजर आ रहा हो. ध्यान रहे संयुक्त राष्ट्र की पिछली बैठक के बाद से, मध्य पूर्व में युद्ध छिड़ गया है जिसके व्यापक होने का खतरा है. वहीं सूडान में संघर्ष गहरा गया है. जिक्र अगर यूक्रेन का हो तो वहां भी स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है. माना यही जा रहा है कि रूस और यूक्रेन के बीच जो संघर्ष चल रहा है मौजूदा वक़्त में उसका ख़त्म होना लगभग नामुमकिन है.
जो बाइडेन जिन्हें फ्री वर्ल्ड के मुख्य चेहरे के रूप में देखा गया है. खुद अमेरीकी राष्ट्रपति चुनावों में अपनी कुर्सी बचाने के लिए लगातार संघर्ष करते हुए नजर आ रहे हैं. जैसे-जैसे बाइडेन का राष्ट्रपति पद अपने अंतिम समय में प्रवेश कर रहा है, दुनिया में अमेरिका की भूमिका एक बार फिर सवालों के घेरे में है.
इस बात की संभावना जताई जा रही है कि बाइडेन की जगह एक ऐसा व्यक्ति अमेरिका की सत्ता संभाल सकता है जिसकी बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था और शांति स्थापित करने में शायद ही कोई रूचि हो. (एक बड़ा वर्ग है जो मानता है कि डोनाल्ड ट्रम्प पुनः अमेरिका के राष्ट्रपति बन सकते हैं. ) डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने से शायद ही नाटो, यूक्रेन और संयुक्त राष्ट्र को अमेरीका से कुछ खास हासिल हो पाए.
माना यही जा रहा है कि शांति के पुरोधा तमाम वैश्विक नेता हर साल की तरह इस बार भी संयुक्त राष्ट्र के पवित्र हॉल में दिखावा ही करेंगे. उनकी जो बातें होंगी वो या तो खोखली होंगी या फिर उन्हें झूठ की चाशनी में डालकर कुछ इस तरह दुनिया के सामने परोसा जाएगा, जिसे देखकर यही लगेगा कि, वाक़ई ये लोग दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए प्रयासशील हैं.
लेकिन यहां हमें एक बात और समझनी होगी. संयुक्त राष्ट्र महासभा विश्व नेताओं के लिए मिलने, मतभेदों को दूर करने और दुनिया की चुनौतियों को हल करने के लिए आम सहमति बनाने का एक मौका भी है. ऐसा इसलिए क्योंकि सहयोगी, प्रतिद्वंद्वी और कट्टर दुश्मन कुछ दिनों के लिए एक ही स्थान पर होंगे. उनका जमावड़ा भले ही मैनहट्टन में गतिरोध की स्थिति को जन्म दे लेकिन संभावना ये भी है कि शायद इस बैठक का कोई सार्थक परिणाम निकले जो विश्व के तमाम मुल्कों को प्रगति के मार्ग की तरफ अग्रसर करे.
ध्यान रहे ये बैठक ही वो मौका होगा जब दुनिया ईरान के राष्ट्रपति को इजरायल के प्रधानमंत्री के साथ एक ही गलियारे में गुजरते हुए देखेगी. यूक्रेन के नेता वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की विश्व मंच पर व्लादिमीर पुतिन के दाहिने हाथ, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ मौजूद होंगे. हो सकता है कि इस बैठक के जरिये ही दोनों मुल्कों के बीच सुलह की कोई सम्भावना बने?
लेकिन साल 2024 का परिदृश्य निराशाजनक है!
ध्यान रहे कि जिस तरह पश्चिमी प्रतिबंध रूस-यूक्रेन गतिरोध को रोकने में विफल रहे, उसी तरह संयुक्त राष्ट्र द्वारा बुलाई गई कूटनीति यूक्रेन में रूसी आक्रामकता को उलटने में पूरी तरह विफल रही है. कुछ सदस्य देश खुले तौर पर मास्को द्वारा संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सिद्धांतों के उल्लंघन का समर्थन कर रहे हैं. अन्य देश इस युद्ध को देखकर या तो आंखें मूंदे बैठे हैं या फिर वो इस युद्ध से लाभ कमाने में व्यस्त हैं.
इसी तरह सूडान के साथ भी, विभिन्न देश बजाए इस विनाशकारी संघर्ष को समाप्त करने के अपना अपना पक्ष चुनने में व्यस्त हैं. जैसे हालात हैं उसका सीधा असर सूडान में देखने को मिल रहा है और वहां हर बीतते दिन के साथ स्थिति बद से बदतर हो रही है.
वहीं बात गाजा और मिडिल ईस्ट की हो तो वहां की स्थिति भी किसी से छुपी नहीं है. माना यही जा रहा है कि गाजा में युद्ध और मध्य पूर्व में संघर्ष किसी भी क्षण एक नए चरण में प्रवेश कर सकता है. बात अगर इसके कारण की हो तो जिस तरह अभी बीते दिनों हमने लेबनान में इजरायल की तरफ से हमले देखे, स्वतः इस बात की तस्दीख हो जाती है कि हिजबुल्लाह और ईरान चुप नहीं बैठेंगे और इनकी तरफ से जवाबी कार्रवाई जल्द ही शुरू होगी.
गौरतलब है कि जैसे-जैसे वैश्विक नेता न्यूयॉर्क में इकट्ठा होंगे मध्य पूर्वी संघर्ष के भड़कने का वास्तविक खतरा उतना ही ज्यादा बढ़ता जाएगा. बहरहाल भले ही यूएन की मीटिंग में तमाम वैश्विक नेता बड़ी बड़ी बातें करें मगर संयुक्त राष्ट्र को एक ऐसी दुनिया में अपनी प्रासंगिकता साबित करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी जो खतरनाक रूप से उलझ रही है.
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