Sanjauli Masjid Dispute: शिमला से मंडी तक मस्जिद विवाद, अवैध निर्माण, छेड़छाड़ या बदलती डेमोग्राफी, जानें क्या है इसकी असली जड़?
Sanjauli Masjid Dispute: हिमाचल प्रदेश में अवैध मस्जिदों के खिलाफ हंगामा मचा हुआ है. पहले राजधानी शिमला के संजौली में मस्जिद के अवैध निर्माण के खिलाफ हजारों लोग सड़कों पर उतर आए. अब मंडी में भी हंगामा हो गया है. आइए जानते हैं इस विवाद की असली जड़ क्या है?
Sanjauli Masjid Dispute: हिमाचल प्रदेश में मस्जिदों के खिलाफ हंगामा मचा हुआ है. राजधानी शिमला के संजौली के बाद अब मंडी में मस्जिद के अवैध निर्माण को लेकर बवाल खड़ा हो गया है. शिमला में तो सड़कों पर हजारों लोग मस्जिद के खिलाफ उतर आए, जिससे पुलिस को लाठीचार्ज तक करना पड़ा. हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पहले इसे भाजपा की साजिश बता रही थी, लेकिन इस मुद्दे के साथ पूरे राज्य में जुड़ते जनसमर्थन के बाद सरकार में शामिल मंत्रियों के ही सुर बदलने लगे हैं. पू्र्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे व मंत्री विक्रमादित्य सिंह और एक अन्य मंत्री अनिरुद्ध सिंह तो खुलकर इस मुद्दे पर सरकार को नसीहत दे रहे हैं. सुक्खू सरकार के बाद AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी ने भी हिमाचल में मस्जिद विवाद भड़काने को भाजपा की साजिश बताया है. संजौली की मस्जिद का विवाद तो 14 साल से शिमला नगर निगम में लंबित भी है. ऐसे में उसे लेकर अब जनभावनाएं भड़कने से कांग्रेस और ओवैसी के दावे सही भी लग रहे हैं. इसके उलट भाजपा इसे लगातार उबल रही जनभावनाओं का चरम बताकर राज्य सरकार पर इसकी अनदेखी का आरोप लगा रही है. इसे राज्य में बढ़ती मुस्लिम आबादी और स्थानीय हिमाचली लड़कियों से छेड़छाड़ से जोड़ने की भी कोशिश की जा रही है. ऐसे में आखिर इस पूरे विवाद की असली जड़ में क्या है, चलिए जानने की कोशिश करते हैं?
पहले जान लेते हैं कि संजौली मस्जिद पर क्या आपत्ति है?
शिमला के संजौली में एक मस्जिद (Sanjauli Mosque) को लेकर हिंदू समुदाय को आपत्ति है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, यहां 1994-95 में 200 स्क्वॉयर फीट की छोटी सी इमारत थी. उत्तर प्रदेश से काम के मकसद से आए सलीम नाम के टेलर ने अचानक खुद को मौलवी बताते हुए उस एकमंजिला इमारत को मस्जिद घोषित कर दिया और धीरे-धीरे अपने साथियों को भी बुला लिया. इसके बाद यहां बिना इजाजत के मस्जिद का दायरा बढ़ाना शुरू कर दिया गया. मस्जिद में तीन मंजिलें बनने के बाद साल 2010 में आपत्ति जताई गई और तब से यह विवाद शिमला नगर निगम की अदालत में लंबित है.
मस्जिद निर्माण के खिलाफ ये हैं आरोप
- अवैध रूप से मस्जिद का दायरा बढ़ाया जा रहा है. साल 2010 में 250 स्क्वॉयर फीट की एक मंजिला इमारत अब 6300 स्क्वॉयर फीट तक फैल गई है.
- बिना अनुमति के अवैध रूप से मस्जिद की मंजिलें बढ़ाई जा रही हैं. 2019 में कोर्ट में केस लंबित होने पर भी अवैध तरीके से 4 मंजिल बढ़ाकर इसे 5 मंजिला कर दिया गया.
- मस्जिद में बाहरी राज्यों की मुस्लिम जमातों का आना बढ़ रहा है. बाहरी मुस्लिमों को बुलाना स्थानीय डेमोग्राफी बदलने की साजिश है.
- आरोप है कि बाहर से आने वाले मुस्लिम स्थानीय हिमाचली बहू-बेटियों से छेड़खानी कर रहे हैं और कई अपराधों में भी शामिल पाए गए हैं.
सरकारी नजरिये से यह है मस्जिद विवाद
2010 में मस्जिद में अवैध निर्माण को लेकर शिकायत हुई थी. इसके बाद 2013 में इसे लेकर नगर निगम की कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई. मस्जिद प्रबंधन को बार-बार अवैध निर्माण के नोटिस जारी किए गए. मस्जिद की जमीन का मालिक हिमाचल प्रदेश सरकार को बताया जाता है, लेकिन मस्जिद कमेटी इसे वक्फ बोर्ड की जमीन बताकर इसका मालिकाना हक अपने पास बताती है. नगर निगम कोर्ट ने कई बार नोटिस भेजकर मस्जिद कमेटी से दस्तावेज मांगे हैं, जो अब तक पेश नहीं किए गए हैं. साल 2010 से अब तक मस्जिद केस में 44 पेशियां हो चुकी हैं, लेकिन मामला लंबित ही है.
गांधीवादी प्रदर्शन से हो रहा था विरोध, फिर मामला क्यों भड़क गया
हिंदू पक्ष का कहना है कि मस्जिद के खिलाफ लगातार गांधीवादी तरीके से भजन-कीर्तन के जरिये विरोध कर रहे थे. विरोध के दौरान दूसरे पक्ष ने आकर हमला किया, जिसमें यशपाल नाम के एक व्यक्ति के सिर में चोट लग गई. इसके बाद ही स्थानीय लोगों का गुस्सा भड़क गया है और हजारों लोग सड़कों पर उतर आए हैं.
प्रशासन के लाठीचार्ज से और भड़क गया है मुद्दा
संजौली मस्जिद विवाद में प्रदर्शन की घोषणा कई दिन पहले से कर दी गई थी. सुक्खू सरकार ने लोगों को समझाबुझाकर मनाने की कोशिश नहीं की. इसके चलते हिमाचल में हजारों लोग अलग-अलग इलाकों से जुट गए हैं. इन लोगों को संजौली विवाद में चुप रहने पर अपने इलाकों में भी ऐसी ही हरकत होने का डर है. भारी भीड़ देखकर पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की. बैरिकेड लगाए, ड्रोन सर्विलांस किया और जब सब फेल रहा तो वाटर कैनन और लाठीचार्ज का सहारा लिया गया. इससे मामला और ज्यादा भड़क गया है. इसके बाद कांग्रेस सरकार में मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने विधानसभा के अंदर अपनी ही सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने सरकार से पूरी मस्जिद को अवैध बताकर उसे गिराने की मांग की है. अनिरुद्ध सिंह के खिलाफ AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने 'मोहब्बत की दुकान में नफरत ही नफरत' वाला ट्वीट किया तो दूसरे मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने उन्हें आड़े हाथ लिया है. विक्रमादित्य सिंह ने कहा है कि हमें हिंदू होने पर गर्व है और यदि मस्जिद अवैध है तो उसे जरूर गिराया जाएगा.
मुस्लिम पक्ष के तेवर भी पड़ गए हैं नर्म
हिमाचल हिंदू बाहुल्य राज्य है. ऐसे में मुस्लिम पक्ष के तेवर भी हिंदू समुदाय को भड़का देखकर नर्म पड़ गए हैं. मंडी में खुद ही मस्जिद के जिस हिस्से पर आपत्ति थी, उसे गुरुवार (12 सितंबर) को मुस्लिम समुदाय ने तोड़ दिया है. संजौली विवाद में भी मुस्लिम पक्ष ने प्रशासन को ज्ञापन दिया है, जिसमें कोर्ट से मस्जिद का जितना हिस्सा अवैध घोषित किया जाएगा, उसे खुद तोड़ने की सहमति दी गई है.
क्या तेजी से बन रही हैं हिमाचल में मस्जिदें?
विवाद भले ही शुरू हुआ था मस्जिद के अवैध निर्माण से, लेकिन विरोध ने इस मामले को हिमाचल में आबादी के बदलते पैटर्न तक पहुंचा दिया है. आरोप है कि शिमला ही नहीं बल्कि हिमाचल प्रदेश के कई जिलों में मस्जिदों की संख्या बढ़ी है. हिमाचल प्रदेश के हिंदू जागरण मंच ने मस्जिदों को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना काल के दौरान हिमाचल में तेजी से मस्जिदों की संख्या बढ़ी है.
- कोरोना काल में ही 127 नई मस्जिदें बनाई गई थीं और कुछ का निर्माण अब तक चल रहा है.
- पहले हिमाचल में 393 मस्जिदें थीं, जिनकी संख्या अब बढ़कर 520 हो गई है.
- मदरसों की संख्या भी प्रदेश में बढ़कर 35 हो गई है, जिनमें से ज्यादातर लॉकडाउन के दौरान बने हैं.
- हिमाचल प्रदेश में मुस्लिम आबादी तकरीबन डेढ़ लाख है.
- राज्य में इस समय मस्जिदें 520 से ज्यादा बताई गई हैं.
- औसतन हर 300 मुसलमानों के लिए एक मस्जिद मौजूद है.
कहां है सबसे ज्यादा मस्जिद
- हिमाचल प्रदेश में सबसे ज्यादा 130 मस्जिद सिरमौर जिले में हैं.
- चंबा जिले में 87 और कांगड़ा में 40 मस्जिदें हैं.
- बिलासपुर में 34 मस्जिद हैं और राजधानी शिमला में 30 मस्जिद हैं.
बाहरी मुस्लिमों के आने से क्या सच में बदल गई है हिमाचल की डेमोग्राफी?
यह भी आरोप लगा है कि हिमाचल प्रदेश में लगातार बाहरी मुस्लिम आकर बस रहे हैं, जिससे यहां की डेमोग्राफी बदल रही है. यदि पिछली दो जनगणनाओं की बात करें तो साल 2001 में हिमाचल की आबादी में मुस्लिम सिर्फ 1.96 प्रतिशत थे. इसके बाद साल 2011 की जनगणना में ये आंकड़ा बढ़कर 2.18 प्रतिशत हो गया है. इससे हिमाचल प्रदेश की डेमोग्राफी में हल्का बदलाव दिखता है. हालांकि यह बदलाव इतना बड़ा नहीं है, जितना शोर मच रहा है, लेकिन हिंदू जागरण मंच की रिपोर्ट को आधार मानें तो सिरमौर, चंबा, कांगड़ा, बिलासपुर और शिमला जैसे जिलों में मुस्लिम आबादी ज्यादा तेजी से बढ़ी है. ऐसे में अब अगली प्रस्तावित जनगणना के आंकड़ों का इंतजार किया जा रहा है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार ने धार्मिक आधार पर भी आबादी की गिनती कराने की घोषणा कर रखी है.
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