डीएनए हिंदी : यूक्रेन (Ukraine) में रूस के हमले की आशंकाओं के बीच NATO की सेनाएं भी तैयार हैं. NATO ने सोमवार को कहा कि यूक्रेन की सीमा पर रूस के सैनिकों की घेराबंदी देखते हुए हम अपनी सेना को तैयार रख रहे हैं, साथ ही साथ पूर्वी यूरोप में जहाज़ और फाइटर जेट की संख्या में इज़ाफ़ा कर रहे हैं. NATO के Western military alliance के सेक्रेटरी जनरल जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने एक बयान ज़ारी कर कहा कि "NATO वे सारे क़दम उठाएगा जो भी मित्र देशों की रक्षा के लिए आवश्यक हैं. "
इतनी सारी ख़बरों और NATO के इतने ज़िक्र के बाद आपके मन में ज़रूर ख़याल आया होगा कि आख़िर यह है क्या? डीएनए हिंदी लेकर आया है आपकी सारी उत्कंंठाओं के जवाब. जानिए क्या है NATO और कैसे करता है यह काम?
क्या है NATO
इसका फुल फॉर्म है North Atlantic Treaty Organization. 1949 में इसका गठन अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी देशों ने मिलकर किया था. इस वक़्त NATO में कुल 30 देश हैं.
असल में सोवियत यूनियन के ख़िलाफ़ हुआ था NATO का गठन
NATO का गठन अमेरिका, कनाडा, 27 यूरोपीय देश और एक यूरेशियाई देश ने मिलकर सोवियत संघ के खिलाफ मज़बूत मोर्चा तैयार करने की नीयत से किया था. बाल्कन देश Bosnia and Herzegovina, यूरेशियाई देश जॉर्जिया और यूक्रेन (Ukraine) को NATO के सम्भावी सदस्यों के तौर पर देखा जा रहा है. इसके साथ ही बीस और देश भी NATO के Partnership for Peace प्रोग्राम में शामिल होते हैं. इसका मुख्यालय बेल्ज़ियम के ब्रसेल्स शहर में है.
क्यों ज़रूरत पड़ी थी NATO की
दूसरे विश्वयुद्ध के विध्वंस के बाद यूरोपीय देश अपनी अर्थव्यवस्था सुधारने में लगे हुए थे. यह ज़रूरी था कि वे अपनी सुरक्षा व्यवस्था भी दुरुस्त करें. इसके लिए बेहद ज़रूरी था कि युद्ध से बेहाल इन देशों को अच्छी मदद मिले. इसी दरमियान उन्हें अपने आप को सोवियत संघ से भी सुरक्षित करना था, जिसकी शक्ति उत्तरोत्तर बढ़ रही थी. अमेरिका की नज़र में सोवियत यूनियन के बढ़ते कम्युनिस्ट प्रभाव को रोकने का एक ही तरीका था और वह था यूरोपीय देशों का मज़बूत होना. ग्रीस और टर्की में चल रहे सिविल वॉर के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति (US President) हैरी एस ट्रूमैन ने कहा कि अमेरिका दोनों देशों को आर्थिक और सामरिक मदद मुहैया करवाएगा. साथ ही जिस भी अन्य देश को मदद की ज़रूरत होगी, वह उपलब्ध रहेगा. उस वक़्त अमेरिका का ध्यान इटली की ओर भी था जहां चुनाव होने वाले थे और कम्युनिस्ट पार्टी जहां अपने उठान पर थी. उसी वक़्त पूर्वी जर्मनी पर सोवियत कब्ज़ा भी था. सोवियत यूनियन के नेता स्टालिन ने पश्चिमी बर्लिन के सामने दीवार खड़ी कर दी थी. बर्लिन संकट ने अमेरिका को बाध्य किया कि वह पश्चिमी यूरोप की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दे. NATO की ज़रूरत इसी आधार पर पड़ी थी.