Elections 2024: राहुल गांधी से ज्यादा विपक्ष को नीतीश कुमार पर भरोसा, क्या है 2024 चुनाव में जीत का फॉर्मूला?

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Apr 14, 2023, 06:22 AM IST

Indian Politics: कांग्रेस के साथ जो दल नहीं जुड़ना चाहते हैं, उन्हें भी नीतीश साथ लाना चाहते हैं.

Nitish Kumar Rahul Gandhi Meeting: भाजपा के खिलाफ विपक्षी मोर्चा खड़ा करने की कोशिश चल रही है, लेकिन अब तक सारे विरोधी दल बिखरे हुए ही दिखे हैं. अब नीतीश कुमार उन्हें एकजुट करने की कोशिश में जुटे हुए हैं.

डीएनए हिंदी: Indian Politics- लोकसभा चुनाव 2024 में अब एक साल का ही समय बचा है. ऐसे में भाजपा को लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करने से रोकने के लिए विपक्षी दल बेचैन हैं. बार-बार विपक्षी मोर्चे के गठन की बात भी हर नेता कर रहा है, लेकिन कहीं न कहीं हर बार बात विपक्षी नेताओं की निजी महत्वाकांक्षाओं और निजी अहं के टकराव के कारण बिगड़ जाती है. अब इस तीसरे मोर्चे की कवायद बिहार की धरती से शुरू हुई है, जिसे क्रांतिकारी जमीन माना जाता है. बिहार में भाजपा को ठेंगा दिखाकर राजद के साथ गठबंधन करके सरकार चला रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) अब यही कमाल दिल्ली में करके दिखाना चाहते हैं. 

इसके लिए नीतिश ने विपक्षी नेताओं से मिलने का अभियान भी छेड़ा हुआ है, लेकिन वे भी जानते हैं कि कोई भी विपक्षी मोर्चा कांग्रेस की मौजूदगी के बिना सफल नहीं होने वाला है. इसी कारण उन्होंने राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ मुलाकात की है, जिसमें राजद से तेजस्वी यादव भी शामिल हुए हैं. सूत्रों के मुताबिक, इस मीटिंग में 'नीतीश फॉर्मूले' पर चर्चा की गई है, जिसे विपक्षी एकता के लिए कारगर माना जा रहा है. हालांकि इस मीटिंग में जो बातें तय हुई हैं, उससे ये भी सवाल उठने लगा है कि देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस से ज्यादा बाकी विपक्षी दल नीतीश कुमार पर भरोसा कर रहे हैं. 

क्या फॉर्मूला लेकर आए हैं नीतीश?

बिहार के मुख्यमंत्री लोकसभा चुनाव- 2024 को भाजपा बनाम संयुक्त विपक्ष बनाना चाहते हैं. उनकी कोशिश है कि विपक्षी दल अपने टकराव छोड़कर एकसाथ आएं और संयुक्त उम्मीदवार उतारकर भाजपा को सत्ता से बाहर रखें. नीतीश की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी (KC Tyagi) ने NDTV से बताचीत में कहा, नरेंद्र मोदी के खिलाफ जीत का केवल एक ही तरीका है. 2024 में एक के खिलाफ एक यानी एक सीट पर भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ पूरे विपक्ष के समर्थन वाला एक कैंडीडेट.

कांग्रेस के साथ बैठक में बना है ये फॉर्मूला

NDTV ने सूत्रों के हवाले से कहा कि नीतीश फॉर्मू्ले पर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) की नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) से बुधवार को हुई मुलाकात में चर्चा हुई. इसमें विपक्षी दलों को एकसाथ लाने के लिए एक फॉर्मूला तैयार किया गया. इस फॉर्मूले के तहत कांग्रेस को अपने साथ पहले से जुड़े उद्धव ठाकरे वाले शिवसेना गुट (Shiv Sena Uddhav Thackeray), शरद पवार की Nationalist Congress Party और हेमंत सोरेन (Hemant Soren) की झारखंड मुक्ति मोर्चा (Jharkhand Mukti Morcha) जैसे दलों को साथ जोड़ने की जिम्मेदारी मिली है. नीतीश उन दलों को मनाएंगे, जो कांग्रेस और भाजपा, दोनों से ही दूर रहते हैं. इन दलों में अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party), ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) की तृणमूल कांग्रेस (Trinmool Congress) और के. चंद्रशेखर राव (K Chandrashekar Rao) की भारत राष्ट्र समिति (Bharat Rashtra Samithi) आदि शामिल हैं.

आप ने दिखा दी है फॉर्मूले को हरी झंडी

नीतीश ने बुधवार को कांग्रेस से बैठक के बाद ही अरविंद केजरीवाल से मुलाकात भी कर ली है. NDTV ने आप से जुड़े सूत्रों के हवाले से बताया कि इस मुलाकात में केजरीवाल ने नीतीश के फॉर्मूले को हरी झंडी दिखाते हुए पूरी तरह साथ बताया है. हालांकि इस पर बहुत ज्यादा आश्चर्य नहीं जताया जा रहा है, क्योंकि मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन जैसे सिपहसालारों पर केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई के बाद केजरीवाल किसी भी तरह मोदी सरकार को हटाना चाहते हैं.

तेजस्वी को भी मिली है खास जिम्मेदारी

नीतीश ने इस फॉर्मू्ले के तहत तेजस्वी यादव को भी खास जिम्मेदारी दी है. तेजस्वी को देश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश के 'हैवीवेट' दल समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को मनाने की जिम्मेदारी दी गई है, क्योंकि सपा के साथ आए बिना यूपी में भाजपा को चुनौती देना संभव नहीं होगा और ऐसा नहीं होने पर सीटों के एक बड़े हिस्से से वंचित होना पड़ेगा. तेजस्वी और अखिलेश यादव आपस में पारिवारिक दोस्त होने के साथ ही रिश्तेदार भी हैं. इसी कारण तेजस्वी को यह जिम्मेदारी दी गई है.

क्या सफल हो पाएगा ये फॉर्मूला?

केसी त्यागी ने खुद माना कि यह नया फॉर्मूला नहीं है, लेकिन इसी रणनीति से 1977 और 1989 में विपक्षी दलों ने उस समय बेहद ताकतवर कांग्रेस को दो बार सत्ता से हटाया था. हालांकि दोनों ही बार विपक्ष में फूट हो गई और दोबारा हुए चुनाव में कांग्रेस ने दो साल बाद ही सत्ता में वापसी कर ली. 

इस फॉर्मूले में सबसे खास सवाल ये भी है कि नीतीश कुमार विपक्ष के कितने दलों को 'वन सीट, वन कैंडिडेट' का फॉर्मू्ला फॉलो करने के लिए मना पाएंगे? फिलहाल तो विपक्ष एकजुट होता हुआ नहीं लग रहा है, जिसका अंदाजा कुछ दिन पहले दिग्गज विपक्षी नेता व NCP सुप्रीमो शरद पवार (Sharad Pawar) के अडानी-हिडनबर्ग विवाद में संयुक्त संसदीय जांच समिति (JPC) बनाए जाने की मांग का विरोध करने से लग सकता है.

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