डीएनए हिंदी: Pandit Jawaharlal Nehru Tribal Wife Died- झारखंड में 4 दिन पहले 17 नवंबर को धनबाद जिले में बुधनी मंझियाइन का निधन हो गया. संथाल जनजातीय समुदाय की आदिवासी महिला बुधनी 80 साल की थीं. उनके निधन की चर्चा इस कारण हो रही है, क्योंकि लोग उन्हें देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की 'आदिवासी पत्नी' के तौर पर जानते थे. शायद ये सुनकर आपको अचरज हो रहा होगा. आप भी सोच रहे होंगे कि क्या सच में प्रधानमंत्री नेहरू ने एक आदिवासी लड़की से शादी की थी या बात कुछ और ही है. दरअसल, बुधनी मंझियाइन का जीवन पंडित नेहरू के आम लोगों से घुलने-मिलने के मिजाज और संथाल जनजाति की परंपराओं के बीच फंसकर रह जाने की कहानी है.
16 साल की उम्र में बन गई थी पंडित नेहरू की 'पत्नी'
धनबाद जिले की बुधनी के लिए 1959 में 5 दिसंबर का दिन जीवन भर के लिए अभिशाप बन गया, जब उनके इलाके में बने पंचेत बांध का उद्घाटन करने के लिए पंडित नेहरू पहुंचे थे. प्रधानमंत्री का स्वागत करने के लिए बुलाई गईं स्थानीय आदिवासी युवतियों में 16 साल की बुधनी भी शामिल थी. पंडित नेहरू ने स्वागत में दिया गया फूलों का हार अपने गले से निकालकर बुधनी के गले में पहना दिया. देश के प्रधानमंत्री ने यह हार महज सम्मान के लिए पहनाया, लेकिन बुधनी के लिए यह जीवन भर का 'फंदा' साबित हुआ. संथाल समुदाय ने उन्हें प्रधानमंत्री की 'पत्नी' घोषित कर दिया.
क्यों कहा गया उन्हें पीएम की पत्नी?
दरअसल संथाल जनजाति में गंधर्व विवाह को मान्यता दी जाती है, जिसमें कोई पुरुष किसी महिला को फूलों की माला पहना दे तो उसे शादी माना जाता है. पीएम नेहरू ने भी अपने गले का हार निकालकर बुधनी को पहनाया था. इस कारण संथाल समुदाय के बुजुर्गों ने कहा कि अब वे पंडित नेहरू की पत्नी बन गई हैं.
जाति से बाहर शादी करने पर कर दिया बहिष्कार
बुजुर्गों के बुधनी की पंडित नेहरू से शादी हो जाने की घोषणा करने पर उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया, क्योंकि संथाल जनजाति में समुदाय से बाहर विवाह करने की इजाजत नहीं है. यदि कोई संथाल जनजाति से बाहर विवाह करता है तो उसे समुदाय से बाहर कर दिया जाता है. बुधनी की भी उनके गांव में एंट्री बंद कर दी गई. जीवन भर उन्होंने गांव के बाहर ही एक टूटे-फूटे मकान में अपनी बेटी रत्ना के साथ जिंदगी बिताई.
बांध बुधनी के लिए तरक्की नहीं 'बरबादी' लाया
पंचेत बांध का निर्माण इलाके की तरक्की के लिए किया गया था, लेकिन बुधनी के लिए यह बांध उनकी जिंदगी बरबाद करने वाला साबित हुआ. साल 1952 में बांध का निर्माण शुरू होते ही खेती की जमीन डूब क्षेत्र में चली गई और परिवार मजदूर बन गया. बुधनी को पंडित नेहरू ने इसी कारण हार पहनाया था, क्योंकि वे इस बांध के प्रोजेक्ट में पहली अनुबंधित मजदूर थीं.
बंगाल जाकर करनी पड़ी थी शादी
बुधनी का जब पंडित नेहरू के हार पहनाने के कारण बहिष्कार कर दिया गया तो उनकी जिंदगी परेशानियों से घिर गई. साल 1962 में वे बांध का अनुबंध खत्म होने पर बंगाल के पुरुलिया चली गईं. वहीं पर उन्होंने एक साथी मजदूर सुधीर दत्ता से शादी की, जिससे उनकी एक बेटी हुई.
पीएम राजीव गांधी ने दिलाई 'नानी' को नौकरी
बुधनी की परेशानी का कारण यदि पंडित नेहरू बने थे तो उनकी परेशानी बहुत हद तक खत्म होने का कारण भी एक प्रधानमंत्री ही बने. ये प्रधानमंत्री थे नेहरू के नाती राजीव गांधी. प्रधानमंत्री बनने के बाद साल 1985 में राजीव गांधी आसनसोल पहुंचे थे. इसी दौरान बुधनी ने किसी तरह उनसे मुलाकात की. उन्हें अपनी सारी परेशानी बताई. राजीव गांधी की सिफारिश पर उन्हें DVC में नौकरी मिली और उनकी मुश्किलों का अंत हुआ. साल 2005 में वे इस नौकरी से रिटायर हुई थीं.
बहिष्कार करने वाला समुदाय चाहता है अब स्मारक बनवाना
बुधनी मंझियाइन की जिंदा रहते हुए संथाल समुदाय के लोगों ने उनका बहिष्कार किए रखा, लेकिन अब उनके निधन के बाद लोग उनका स्मारक बनाने की मांग कर रहे हैं. लोगों की मांग है कि पंडित नेहरू की पत्नी होने के नाते बुधनी की मूर्ति देश के पहले प्रधानमंत्री की मूर्ति के बराबर में लगाई जाए. साथ ही बुधनी की 60 साल की बेटी को भी पेंशन मिलनी चाहिए.
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