डीएनए हिंदी: फिल्म 'आदिपुरुष' को लेकर विवाद (Adipurush Controversy) लगातार बढ़ता जा रहा है. फिल्म में धार्मिक भावनाओं को भड़काने का आरोप लग रहा है. फिल्म में सैफ अली खान ने रावण का किरदार निभाया है. इसी को लेकर बवाल मचा है. फिल्म का टीजर रिलीज होने के बाद से ही यह विवादों में आ गई है. रावण के लुक को लेकर इसकी आलोचना की जा रही है. हिंदू संगठनों ने फिल्म को बैन करने की मांग की है. खुद मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने भी फिल्म के डायरेक्टर ओम राउत को चिट्ठी लिखी है. ऐसे में सवाल उठ कहा है कि फिल्म पर बैन कैसे लगाया जाता है. क्या सेंसर बोर्ड किसी फिल्म को बैन कर सकता है? पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं.
सेंसर बोर्ड क्या है?
सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) एक वैधानिक संस्था है. जून 1983 तक इसे सेंट्रल फिल्म सेंसर बोर्ड के नाम से जाना जाता था. यही वजह है कि अभी भी इसे आम भाषा में सेंसर बोर्ड ही कहते हैं. यह संस्था सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत काम करती है. इसका काम फिल्मों को उनके कंटेंट के हिसाब के सर्टिफिकेट देना है. सेंसर बोर्ड सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 और सिनेमैटोग्राफ रूल 1983 के तहत काम करता है. हमारे देश में जितनी भी फिल्में बनती हैं, उन्हें रिलीज होने से पहले सेंसर बोर्ड की प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है. सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार करती है. इसके सदस्य किसी भी सरकारी ओहदे पर नहीं होते. सेंसर बोर्ड का हेडक्वार्टर मुंबई में है और इसके 9 क्षेत्रीय कार्यालय हैं, जोकि मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बैंगलूर, तिरुवनंतपुरम, हैदराबाद, नई दिल्ली, कटक और गुवहाटी में मौजूद है.
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फिल्म को कितने समय में मिल जाता है सर्टिफिकेट?
किसी भी फिल्म को रिलीज से पहले सेंसर बोर्ड के सामने एप्लीकेशन देनी होती है. इसके समय फिल्म के सीन से लेकर उसमें दिखाए जाने वाले कंटेंट और भाषा को लेकर विचार करते हैं. सेंसर बोर्ड किसी भी फिल्म के सर्टिफिकेशन में ज्यादा से ज्यादा 68 दिनों का वक्त ले सकता है. सबसे पहले फिल्म के आवेदन की जांच की जाती है, जिसमें लगभग एक हफ्ते का वक्त लगता है. उसके बाद फिल्म को जांच समिति के पास भेजा जाता है, जांच समिति 15 दिनों के अंदर इसे सेंसर बोर्ड अध्यक्ष के पास भेज देती है. अध्यक्ष फिल्म की जांच में अधिकतम 10 दिनों का वक्त ले सकता है. फिर सेंसर बोर्ड फिल्म के आवेदक को जरूरी कट्स के बारे में जानकारी देने और सर्टिफिकेट जारी करने में 36 दिनों का समय और ले सकता है.
सेंसर बोर्ड कितनी कैटेगरी में देता है सर्टिफिकेट
सेंसर बोर्ड चार कैटेगरी में सर्टिफिकेट जारी करता है.
1 - (U) यानि यूनिवर्सल, ये कैटगरी सभी वर्ग के दर्शकों के लिए है.
2 - (U/A) इसके तहत 12 साल से कम उम्र के बच्चे माता पिती या किसी बड़े की देख रेख में ही फिल्म देख सकते हैं.
3 - (A) सिर्फ व्यस्कों के लिए है.
4 - (S) ये कैटगरी किसी खास वर्ग के लोगों के लिए ही है, जैसे डॉक्टर, इंजीनियर या किसान वगैरह.
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क्या किसी फिल्म को बैन कर सकता है सेंसर बोर्ड
यहां यह जानना बेहद जरूरी है कि सेंसर बोर्ड किसी फिल्म को बैन नहीं कर सकता है. वह किसी फिल्म को सर्टिफिकेट देने से मना कर सकता है. बिना सर्टिफिकेट के कोई फिल्म रिलीज नहीं हो सकती है. सरकार अपने स्तर से किसी भी फिल्म को बैन कर सकती है. केंद्र और राज्य सरकारें अपने स्तर से इस पर फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं. अगर किसी फिल्म को सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट मिल भी चुका है तो भी सरकार उस पर बैन लगा सकती है. सरकार के मुताबिक, 2014 से 6 फिल्मों को सेंसर बोर्ड ने सर्टिफिकेट देने से मना किया है. 2014-15 में एक, 2016-17 में 2, 2018-19 में 2 और 2019-20 में एक फिल्म को सर्टिफिकेट नहीं दिया गया था.
किन फिल्मों पर लग चुका है बैन
एक आरटीआई के जवाब में सरकार ने बताया था कि 1 जनवरी 2000 से 31 मार्च 2016 तक 793 फिल्मों पर बैन लगाया गया था. इन फिल्मों को सर्टिफिकेट नहीं दिया गया. 1996 में आई 'कामासूत्रा' को सेक्सुअल कंटेंट दिखाने के कारण बैन कर दिया गया था. फूलन देवी पर बनी 'बैंडिट क्वीन' को भी बैन कर दिया गया था. ये फिल्म 1994 में आई थी. 1996 में आई 'फायर' फिल्म को भी सर्टिफिकेट नहीं दिया गया था. ये भारतीय सिनेमा की पहली फिल्म थी, जिसमें होमोसेक्सुअल रिलेशनशिप दिखाई गई थी.
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