केंद्र सरकार ने सोमवार शाम को नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर अधिसूचना जारी कर दी. जिसके जरिए गैर मुस्लिम प्रवासी समुदाय के लोग नागरिकता पाने के लिए आवेदन कर सकेंगे. लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) नियमों की अधिसूचना जारी होना केंद्र सरकार का बड़ा फैसला है. CAA पारित होने और लागू होने तक में सरकार के सामने कई तरह की चुनौतियां भी आईं, जिसके बाद भी सरकार पीछे नहीं हटी. आइए जानते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार ने किन तरह की चुनौतियों निपटते हुए CAA को देशभर में लागू किया.
सीएए के लागू होने के बाद भारत देश की नागरिकता गैर मुस्लिम शरणार्थियों को लेना आसान हो जाएगा. यह कानून बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत आए हिंदू, जैन, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसियों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करता है. भारतीय नागरिकता उन अप्रवासी को दी जाएगी जो पिछले एक वर्ष और पिछले 14 वर्षों में से कम से कम पांच वर्षों में भारत में रहा हो. पहले प्रवासियों के लिए कम से कम 11 वर्ष देश में रहने के बाद ही नागरिकता मिल सकती थी.
कब पारित हुआ था CAA?
नागरिकता संशोधन बिल पहली बार 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था. यहां से तो ये पास हो गया था लेकिन राज्यसभा में यह आगे नहीं बढ़ पाया था. इसमें 1955 के कानून में कुछ बदलाव किया जाना था. जिसमें भारत के तीन मुस्लिम पड़ोसी देश बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने जैसे बदलाव किये जाने थे. 12 अगस्त 2016 को इसे संयुक्त संसदीय कमेटी के पास भेजा गया. जिसके बाद 2019 लोकसभा चुनाव आ गया. चुनाव में जीत मिलने के बाद मोदी सरकार ने संसद में सीएए को दिसंबर 2019 में पारित किया, जिसके बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई लेकिन इसके खिलाफ देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये थे. यह कानून अब तक लागू नहीं हो सका था क्योंकि इसके कार्यान्वयन के लिए नियमों को अब तक अधिसूचित किया जाना बाकी था.
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देशभर में हुआ था हंगामा
CAA कानून पास होने के बाद ही मुस्लिम समाज के लोगों और संगठनों ने जबरदस्त हंगामा किया था. इस बीच देश में कई जगह हो रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान कई अप्रिय घटनाएं भी हुईं. देश के कई हिस्सों में विरोध-प्रदर्शन किया गया था. मुसलमानों का मानना है कि इसमें मुस्लिमों के साथ भेदभाव किया गया है. इस कानून में इन तीन देशों से आए मुसलमानों को नागरिकता देने से बाहर रखा गया है. विपक्षी नेताओं ने भी कई तरह सवाल उठाने लगे थे. विपक्षी नेताओं का कहना था कि मोदी सरकार मुस्लिमों के खिलाफ है इसलिए प्रवासी मुस्लिमों को इसमें जगह नहीं दी जा रही है. नागरिकता संशोधन कानून का सबसे ज्यादा विरोध पूर्वोत्तर राज्यों, असम, मेघालय, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में हो रहा है क्योंकि ये राज्य बांग्लादेश की सीमा के बेहद पास हैं. इन राज्यों में इसका विरोध इस बात को लेकर हो रहा है कि यहां कथित तौर पर पड़ोसी राज्य बांग्लादेश से मुसलमान और हिंदू दोनों ही बड़ी संख्या में अवैध तरीके से आकर बस जा रहे हैं.
गृह मंत्री ने दिए थे ऐसे जवाब
मुस्लिम समाज और विपक्षी नेताओं द्वारा उठाए जा रहे सवालों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कई बार कहा था कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर मुस्लिम समुदाय को भड़काया जा रहा है. उन्होंने कहा था,'हमारे देश में अल्पसंख्यकों और विशेष रूप से हमारे मुस्लिम समुदाय को भड़काया जा रहा है. सीएए किसी की नागरिकता नहीं छीन सकता क्योंकि इस अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान है ही नहीं.' गृह मंत्री ने यह भी कहा था कि सीएए बांग्लादेश और पाकिस्तान में सताए गए शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने का एक अधिनियम है. सीएए कांग्रेस सरकार का एक वादा था. जब देश का विभाजन हुआ और उन देशों में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हुआ तो कांग्रेस ने शरणार्थियों को आश्वासन दिया था कि भारत में उनका स्वागत है और उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी. अब वे पीछे हट रहे हैं. पिछले साल 27 दिसंबर को अपने बंगाल दौरे पर मंत्री अमित शाह ने साफ कह दिया था कि सीएए लागू होने से कोई नहीं रोक सकता. इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 10 फरवरी को नई दिल्ली में कहा था कि सीएए को लागू करने के नियम आगामी लोकसभा चुनाव से पहले जारी किए जायेंगे और लाभार्थियों को भारतीय राष्ट्रीयता प्रदान करने की प्रक्रिया जल्द ही शुरू होगी. जानकारी के लिए आपको यह भी बता दें कि दो वर्षों में नौ राज्यों के 30 से अधिक जिला अधिकारियों और गृह सचिवों को नागरिकता अधिनियम-1955 के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देने की शक्तियां दी गई हैं.
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सरकार के सामने आईं ये चुनौतियां
नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई थी. इसकी संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए गए. याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर की गई याचिका में कहना था कि ये कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से सिर्फ हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को ही भारत की नागरिकता देता है, इसमें म्यांमार में सताए रोहिंग्या, चीन के तिब्बती बौद्ध और श्रीलंका के तमिलों को जगह नहीं दी गई. इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 250 से ज्यादा याचिकाएं दाखिल की गई थीं. इस बीच कोरोना के कारण देश में लॉकडाउन और प्रतिबंध लागू कर दिए गए. ऐसे में CAA पर चुप्पी हो गई और अब चार साल बीत जाने के बाद सरकार ने इसे लागू किया है.
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