मुख्यमंत्री या उपराज्यपाल, दिल्ली सेवा कानून बनने के बाद कौन होगा बॉस?

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Aug 09, 2023, 06:10 AM IST

CM Arvind Kejriwal Vs LG vk saxena (File Photo)

Delhi Services Bill: दिल्ली सेवा बिल संसद के दोनों सदनों में पास हो चुका है. अब इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा. उनकी मोहर लगने के बाद यह बिल कानून बन जाएगा.

डीएनए हिंदी: दिल्ली सेवा विधेयक सोमवार राज्यसभा में पारित होने के बाद एक अधिनियम बन गया. गृहमंत्री अमित शाह ने इस राज्यसभा में पेश किया था. इस बिल के पक्ष में 131 और विरोध में 102 पड़े थे. इससे पहले यह लोकसभा में पारित हो चुका है. इस बिल का नाम 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023' है. दोनों सदनों में पास होने के बाद अब इसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास भेजा जाएगा. राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाने बाद यह कानून बन जाएगा. अब सवाल ये है कि इस बिल के कानून बनने के बाद दिल्ली का बॉस कौन होगा? दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल या राज्यपाल के हाथों में ज्यादा पावर होगी. आइये समझते हैं.

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली सेवा कानून बनने के बाद राजधानी में ट्रांसफर-पोस्टिंग समेत कई मामले उपराज्यपाल के पास चले जाएंगे. यानी सर्विसेस पर दिल्ली विधानसभा का कोई नियंत्रण नहीं होगा. इस बिल में एक प्रावधान 'नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी (एनसीसीएसए)'के गठन से जुड़ा है. ये अथॉरिटी अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग और नियंत्रण से जुड़े फैसले लेगी.

इन मामलों में उपराज्यपाल होंगे बॉस
इस अथॉरिटी के चेयरमैन मुख्यमंत्री होंगे. उनके अलावा दिल्ली की मुख्य सचिव और दिल्ली प्रधान सचिव भी शामिल होंगे. यह अथॉरिटी जमीन, पुलिस और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी सभी मामलों से जुड़े अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग की सिफारिश उपराज्यपाल से करेगी. इतना ही नहीं अगर किसी अफसर के खिलाफ अनुशासकत्मक कार्रवाई करनी है तो उसकी सिफारिश भी LG के पास भेजी जाएगी. अथॉरिटी या मुख्यमंत्री सीधी कार्रवाई नहीं कर सकते. अथॉरिटी की सिफारिश पर आखिरी फैसला उपराज्यपाल ही लेंगे.

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LG का ही होगा आखिरी फैसला
यह कानून उपराज्यपाल को एनसीसीएसए की तरफ से की गई सिफारिशों समेत प्रमुख मामलों पर अपने ‘एकमात्र विवेक’ का प्रयोग करने की ताकत देता है. एलजी को दिल्ली विधानसभा को बुलाने, स्थगित करने और भंग करने का भी अधिकार रहेगा NCCSA की सिफारिशें बहुमत पर आधारित होंगी. एलजी के पास सिफारिशें मानने, पुनर्विचार करने और मंजूरी देने की पूरी ताकत होगी. मतभेद होने पर अंतिम निर्णय एलजी का ही मान्य होगा.

इस बिल को मुताबिक, अगर किसी अथॉरिटी का गठन संसदीय कानून के जरिए होता है तो उसके अध्यक्ष और सदस्यों को राष्ट्रपति नियुक्त करेंगे. वहीं दिल्ली विधानसभा से होता है तो उसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की सिफारिश नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी यानी एनसीसीएसए करेगी, जिसके आधार पर एलजी ये नियुक्तियां करेंगे. 

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CM के लिए क्या टेंशन?
जानकारों की मानें तो इस बिल के कानून बन जाने के बाद दिल्ली में उपराज्यपाल ‘सुप्रीम’ होंगे. अधिकारी या नौकरशाह सब सीएम की जगह उपराज्यपाल को तवज्जों देंगे. सीएम भले अथॉरिटी के अध्यक्ष होंगे, इसके दो अन्य सदस्य मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव (गृह) की नियुक्ति तो केंद्र सरकार ही करेगी. ऐसे में डर इस बात का है कि किसी मामले में अगर अथॉरिटी की सहमति बन भी जाए तो आखिरी फैसला तो उपराज्यपाल ही लेंगे. 

जाहिर है इस कानून के बनने के बाद केजरीवाल सरकार के अधिकार कम होंगे. केजरीवाल सरकार का कहना है कि इस कानून के जरिए केंद्र उनके हर काम में अडंगा लगाएगी. वह AAP सरकार को दिल्ली में काम करने से रोकना चाहती है.

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