डीएनए हिंदी: Bageshwar Dham News- बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री (Dhirendra Shashtri) के खिलाफ नागपुर में पुलिस से शिकायत की गई है. यह शिकायत 8 और 10 जनवरी को दो बार अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति ने की है, जिसका आरोप है कि धीरेंद्र शास्त्री ने नागपुर में कथा के दौरान 'दिव्य दरबार' और 'प्रेत दरबार' की आड़ में 'जादू-टोना' किया है. इसके बाद धीरेंद्र शास्त्री ने नागपुर में कथा बीच में ही बंद कर दी थी, जिसे लेकर उन पर कानूनी कार्रवाई के डर से भागने के आरोप लग रहे हैं. हालांकि शास्त्री ने आरोप लगाने वालों को रायपुर आने की चुनौती दी है और कहा है कि किराया भी वह देंगे, लेकिन इससे वह अंधश्रद्धा विरोधी कानून फिर चर्चा में आ गया है, जिसे बनाने में करीब डेढ़ दशक तक संघर्ष हुआ था और इसे बनाने वाले की हत्या तक कर दी गई थी.
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पहले जान लें समिति ने किन कानूनों के तहत दी है शिकायत
नागपुर अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति ने पुलिस से धीरेंद्र शास्त्री (Dhirendra Krishna Shastri Bageshwar Dham) के खिलाफ दो कानूनों के तह शिकायत की है. इसमें पहला कानून जादुई दवा से इलाज के विज्ञापनों और दावों पर प्रतिबंध लगाता है. भारतीय संसद से पारित इस कानून को औषधि और चमत्कारिक उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 यानी Drugs and Magic Remedies (Objectionable Advertisements) Act, 1954 कहा जाता है.
दूसरा कानून महाराष्ट्र राज्य विधानसभा ने पारित किया था, जिसे महाराष्ट्र मानव बलिदान व अन्य अमानवीय, बुराई और अघोरी प्रथा व काला जादू रोकथाम एवं उन्मूलन अधिनियम, 2013 (Maharashtra Prevention and Eradication of Human Sacrifice and other Inhuman, Evil and Aghori Practices and Black Magic Act, 2013) कहते हैं. इस कानून को अंधश्रद्धा विरोधी कानून भी कहा जाता है और माना जा रहा है कि इस बेहद कठोर कानून के तहत शिकायत के कारण ही बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर (Bageshwar Dham Sarkar) ने नागपुर में कथा बंद की थी.
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10 साल बाद ड्राफ्ट से अंधश्रद्धा विरोधी कानून तक पहुंची थी लड़ाई
अंधश्रद्धा विरोधी कानून को बनाने के लिए लंबे समय तक संघर्ष चला था. इस कानून की मांग महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक नरेंद्र दाभोलकर ने की थी, जो मशहूर सोशल एक्टिविस्ट भी थे. करीब 5 साल संघर्ष के बाद उन्होंने साल 2003 में इस कानून का ड्राफ्ट राज्य सरकार के सामने पेश किया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे की सरकार ने जुलाई, 2003 में ड्राफ्ट को मंजूरी देकर केंद्र सरकार के पास भेजा, लेकिन इसके बाद यह लटक गया. साल 2005 में सोशल एक्टिविस्ट श्याम मानव (जिन्होंने अब धीरेंद्र शास्त्री के खिलाफ शिकायत की है) ने इस ड्राफ्ट में सुधार किए और तब शीतकालीन सत्र में यह विधानसभा में पेश किया गया. इसके बावजूद यह कानून नहीं बन पाया. इसके समर्थन और विरोध में लगातार प्रदर्शन होते रहे. लंबे संघर्ष के बाद साल 2013 में यह ड्राफ्ट विधानसभा में पारित होकर कानून बना था.
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क्या है इस कानून में
इस कानून के तहत जादू-टोना, मानव बलि, जादू के जरिये बीमारी ठीक करने और ऐसे ही बाकी कामों पर रोक लगाई गई है. इसमें उन सभी प्रथाओं को अपराध घोषित किया गया है, जिनमें लोगों के अंधविश्वास का गलत फायदा उठाए जाने की संभावना है. इस कानून में 12 क्लॉज में अंधविश्वास से जुड़े हर तरह के अपराध को परिभाषित किया गया है.
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कितनी सजा का है प्रावधान
इस कानून के तहत अंधविश्वास फैलाने को संज्ञेय अपराध मानते हुए गैरजमानती व दंडनीय बनाया गया है. इसके तहत विभिन्न अपराध में न्यूनतम 6 महीने और अधिकतम 7 साल तक जेल की सजा का प्रावधान है. इसके अलावा आरोपी पर 5 हजार से लेकर 50 हजार रुपये तक का जुर्माना भी लग सकता है.
कानून बनाने वाले की हो गई थी हत्या
इस कानून को तैयार करने के लिए नरेंद्र दाभोलकर कई संगठनों के निशाने पर आ गए थे. उनकी लगातार खिलाफत हो रही थी. 20 अगस्त 2013 को उनकी सुबह टहलते समय गोली मारकर हत्या कर दी गई. दाभोलकर की हत्या के बाद उग्र प्रदर्शनों को देखकर महाराष्ट्र सरकार ने चार दिन बाद ही ड्राफ्ट को अध्यादेश के जरिये कानून बना दिया. बाद में दिसंबर, 2013 में विधानसभा के शीतकालीन सत्र में यह ड्राफ्ट कानून के तौर पर पारित कर दिया गया.
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