आज भारत के खेतों से नीम, महुआ, पीपल, जामुन जैसे बड़े- बड़े बृक्षों का गायब होना साधारण बात नहीं है. कभी इन पेड़ों में हजारों पक्षियों के घर हुआ करते थे. घंटों नीम, पीपल की पूजा होती थी. महुआ के फलों चुनकर लोग पकवान बनाते थे. सावन में झूला डालने के लिए ऊंची डाली हुआ करती थी. अब ये सब गायब होता जा रहा है, और इसका कारण है बड़े स्तर पर पेड़ों की कटाई. हालांकि यह जानते हुए भी कि ये पेड़ पर्यावरण के साथ-साथ खेतों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण हैं, फिर भी इनकी निगरानी पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा.
ये हम सभी जानते है कि देश का लगभग 56 प्रतिशत भू-भाग कृषि हेतु उपयोगी है. वहीं महज 20 प्रतिशत जंगल है. देश में जंगल और कृषि भूमि के बीच अंतर स्पष्ट है. कृषि भूमि वाले हिस्से में वृक्षारोपण को भी प्राथमिकता दी गई है. जो कि जंगल की भूमि से नाता नहीं रखता है. इसी को केंद्र में रखते हुए कोपेनहेगन विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में एक नया अध्ययन किया गया है, जिसके नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुए हैं. अपने इस अध्ययन में शोधकर्तों ने भारतीय खेतों में मौजूद 60 करोड़ पेड़ों का मानचित्र तैयार किया है.
क्यों गायब हो रहे हैं पेड़?
इस रिसर्च में सामने आया है कि इन पेड़ों के गायब होने की वजह इंसानों की लालच और खेती किसानी बदलते तौर तरीके है. कई बार किसानों द्वारा पेड़ इसलिए काट दिए जाते है कि उनको लगता है कि ये पेड़ उनकी फसल को नुकसान पहुंचा रहे हैं. नीम के पेड़ की गहरी छाया फसल को पनपने से रोक रही है. महुआ जैसे बड़े-बड़े पेड़ खेत में जगह को अगोटे हुए है. इसलिए कई बार जगह बनाने के लिए या खाली करने के लिए महुआ, कटहल, जामुन, नीम, जैसे पेड़ों को काट दिया जाता है.
किन राज्यों में हुआ है नुकसान
इस अध्ययन से पता चला कि भारत में राजस्थान और दक्षिण-मध्य क्षेत्र में छत्तीसगढ़ में इन बड़े पेड़ो की मौजूदगी प्रतिहेक्टेयर 22 है. अध्ययन के अनुसार 2010/11 में मैप किए गए करीब 11 फीसदी बड़े छतनार पेड़ 2018 तक गायब हो चुके थे. रिसर्च के मुताबिक ज्यादातर क्षेत्रों में खेतों से गायब हो रहे परिपक्व पेड़ों की संख्या आमतौर पर पांच से दस फीसदी के बीच रही. हालांकि मध्य भारत में, विशेष तौर पर तेलंगाना और महाराष्ट्र में, बड़े पैमाने पर इन विशाल पेड़ों को नुकसान पहुंचा है.
इस दौरान कई हॉटस्पॉट ऐसे भी दर्ज किए गए जहां खेतों में मौजूद आधे (50 फीसदी) पेड़ गायब हो चुके हैं. वहां प्रति वर्ग किलोमीटर औसतन 22 पेड़ गायब होने की जानकारी मिली है. गायब हुए पेड़ जैसे नीम, महुआ, जामुन, कटहल, खेजड़ी (शमी), बबूल, शीशम, करोई, नारियल आदि मिट्टी की उर्वरता को बढ़ावा देने के साथ-साथ छाया प्रदान करके पर्यावरण की मदद करते हैं.
ख़बर की और जानकारी के लिए डाउनलोड करें DNA App, अपनी राय और अपने इलाके की खबर देने के लिए जुड़ें हमारे गूगल, फेसबुक, x, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सऐप कम्युनिटी से.