डीएनए हिंदी: कोविड महामारी (Covid Pandemic) के बाद दुनिया में अलग तरह के बदलाव नजर आ रहे हैं. पोस्ट कोविड एरा हमारे सामने चुनौतियों की परत खोल रहा है, जिसकी हर परत हमारे सामने मुश्किलों की नई किश्त लेकर आ रहा है. वर्ल्ड बैंक (World Bank) की रिपोर्ट पर गौर करें तो पाएंगे कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में ऐसी गिरावट 1970 के बाद सामने आई है.
कुछ समय पहले तक अपने आप को दुनिया का सुपर पावर कहने वाला अमेरिका भी मंदी (Economic Recession 2022) की जद में आ चुका है. चीन की बढ़ती अर्थव्यवस्था पर ऐसा ग्रहण लगा है जो हटने का नाम ही नहीं ले रहा है. दूसरी तरफ यूरोपीय देशों में भी अनिश्चितता का माहौल खत्म नहीं हो रहा है.
कोराना वायरस आने से पहले दुनिया भर के देशों की आर्थिक स्थिति ठीक थी. भारत की बात करें तो कुछ मोर्चे पर असफल रहते हुए भी निजी क्षेत्रों में भारत अच्छा कर रहा था. बेरोजगारी के आंकड़े अपने चरम पर थे. कोरोना आने के बाद असंगठित क्षेत्र बुरी तरह चरमरा गया. असंगठित क्षेत्र करीब 90 फीसदी आबादी को रोजगार देता है लेकिन लॉकडाउन में असंगठित क्षेत्र पर बुरी तरह मार पड़ी और रातों रात हजारों लोगों का काम छिन गया.
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कोविड काल और मंदी का मकड़जाल
अप्रवासी मजदूरों के पलायन से निजी क्षेत्र प्रभावित हुआ और उसका असर उसके उत्पादन पर पड़ा तो स्वास्थ्य वजहों से सर्विस सेक्टर पर बुरी मार पड़ी. लॉकडाउन की वजह से गांव और शहर की दूरी बढ़ी तो खाने-पीने की चीजें पहुंच से बाहर हुई. सप्लाई चेन टूट गई जिसका खामियाजा ग्राहकों को उठाना पड़ा. सामान देखते ही देखते महंगे होते गए.
मौजूदा दौर में वैश्विक मंदी कितनी खतरनाक
वर्ल्ड बैंक के मुताबिक 2023 में वैश्विक मंदी का खतरा लगातार बढ़ गया है. दुनियाभर के केंद्रीय बैंक तेजी से ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहे हैं जबकि आने वाले मंदी की एक प्रमुख वजह ये भी है कि आर्थिक पैकेज के नाम बेतहाशा खर्च किया गया. आर्थिक मोर्चे पर अव्वल रहने वाला चीन भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है.
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कोविड प्रतिबंधों की वजह से सप्लाई चेन टूट गई, जबकि रही सही कसर यूक्रेन-रूस विवाद ने पूरा कर दिया. गैस से लेकर पेट्रोल डीजल के दामों में बेतहाशा इजाफा हुआ. शायद यही वजह है फेडरल बैंक ऑफ अमेरिका ने मंदी से निपटने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर दी तो उसी नक्शे कदम पर बैंक ऑफ इंग्लैंड और जापान सेंट्रल बैंक चल पड़ा. दूसरी तरफ चीन ने केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में कटौती की घोषणा की
'नौकरियों के काल बना कोविड'
एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविड के पहले साल में करीब 25 करोड़ नौकरियां गईं जबकि PWC ग्लोबल के अनुसार 50 फीसदी कंपनिया छंटनी की तैयारी कर रही है. अमेरिका में जून-जुलाई तक करीब 35 हजार नौकरियां खत्म हुई और भारत में नए स्टार्टअप में पिछले 6 महीने में करीब दस हजार से अधिक लोगों की नौकरियां चली गई. ऐसी आशंका जताई जा रही है कि साल खत्म होते-होते ये आंकड़ा लाख के करीब पहुंच जाएगा.
वैश्विक मंदी को लेकर अर्थशास्त्री तमाम तरह के दावे कर रहे हैं, देश के दिग्गज इस पर माथापच्ची भी कर रहे हैं कि ऐसे हालात में भारत जैसे प्रगतिशील मुल्क का क्या होगा. जब इस तरह के कयासों पर खोजबीन शुरू की तो पता चला कि कोरोना काल और उसके बाद नौकरी करने वाले संगठित और असंगठित दोनों पर बहुत बुरा असर पड़ा, लाखों लोगों की नौकरियां प्रभावित हुई.
वैश्विक मंदी का भारत पर क्या होगा असर?
भारत का आर्थिक ढांचा यूरोप और अमेरिका जैसा नहीं है तो भारत पर मंदी का असर वैसा नहीं होगा लेकिन टेक्सटाइल, जेम्स,जूलरी और फार्मा सेक्टर में नौकरियां कम होगी और चूंकि ये मंदी वैश्विक होगी तो टूरिज्म और होटल इंडस्ट्री भी प्रभावित होगी.
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2023 का साल आने में बस कुछ महीने बाकी रह गए हैं. अर्थव्यवस्था की रिकवरी के लिए भारत प्रयासरत है. वैश्विक मंदी भारत को भी डरा रही है. ऐसे में वित्त वर्ष की ग्रोथ भी घट सकती है. उस पर परेशानी की बात ये होगी कि इंफ्लेशन को हद में रखने के लिए ब्याज दरें बढ़ाने का असर पूरी साइकल पर पड़ेगा ऐसे में रिकवरी का प्रोसेस फिर से हाशिए पर होगा. लघु और मझोले उद्योग घटेंगे लेकिन जिस तरह से वैश्विक मंदी का असर यूरोप, अमेरिका और चीन पर पड़ेगा उसके मुकाबले भारत पर प्रभाव कम होगा.
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