Economic Slowdown: कैसे समझें की आर्थिक मंदी आने वाली है, कैसे मिलते हैं संकेत?

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Oct 07, 2022, 12:36 PM IST

आर्थिक मंदी

Economic Slowdown: जब किसी अवधि में किसी देश के आर्थिक आंकड़ें लगातार कमजोर देखने को मिल रहे हों तो उसे आर्थिक मंदी कहते हैं. 

डीएनए हिंदीः बीते कुछ महीनों से एक बात लगातार सुनने को मिल रही है कि पूरी दुनिया मंदी (Economic Slowdown) की चपेट में आने वाली है. इसका प्रमाण भी देखने को मिला है कि इस साल कई दिग्गज कंपनियों ने लेऑफ का सहारा लिया है. यहां तक कि हाल ही में फेसबुक जैसी कंपनी ने भी नॉन परफॉर्मर्स की लिस्ट बनाई है, जिनकी संख्या हजारों में है. सवाल यह है कि क्या दुनिया में कंपनियों की ओर से लेऑफ करना आर्थिक मंदी का संकेत (Economic Slowdown Indicators) हैं? जवाब है नहीं. नौकरियां खत्म करना मंदी का एक बायप्रोडक्ट है. सीधा-सीधा मंदी का कारण नहीं है. अगर आप इसमें थोड़ा और गहराई से उतरेंगे तो आपको समझ में आएगा कि आखिर आर्थिक मंदी क्या है? आर्थिक मंदी के आने के क्या कारण होते हैं? कब माना जाता है कि कोई देश या दुनियाभर की इकोनॉमीज आर्थिक मंदी में प्रवेश कर चुकी हैं? 

आखिर आर्थिक मंदी होती क्या है? 
आर्थिक मंदी का मतलब साफ है कि किसी भी देश में या ग्लोबल लेवल पर आर्थिक गतिविधियों के आंकड़ों में बड़ी गिरावट आना. आर्थिक गतिविधियों में गिरावट का मतलब है कि प्रोडक्शन में लंबे समय तक प्रोडक्शन में कमी आना. जब किसी देश की इकोनॉमी नेगेटिव की ओर बढ़ने लगती है तो जानकार उसे आर्थिक मंदी कहते हैं. नेगेटिव ग्रोथ का अर्थ है कि किसी देश की जीडीपी कम होना, रिटेल सेल में कमी आना, नई जॉब पैदा ना होना, किसी एक टेन्योर में इनकम और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कमी आना आर्थिक मंदी के संकेतकों में हैं. यह टेन्योर कितना लंबा होगा इसके बारे में किसी को जानकारी नहीं है. जानकारों की मानें तो दुनिया के प्रत्येक इकोनॉमी की एक इकोनॉमिक साइकिल होती है. जैसे चार मौसम में  शीत, ग्रीष्म, वर्षा और शरद ऋतु आते हैं वैसे ही हरेक इकोनॉमी बिजनेस साइकिल में मंदी का आना भी तय है. बस दोनों में एक फर्क है, मौसम के परिवर्तन का एक समय होता है, लेकिन मंदी के आने का कोई समय नहीं है. साथ ही यह भी तय नहीं है कि यह कब खत्म होगी. 

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मंदी के किस तरह के होते हैं पैरामीटर 
यूएस में आर्थिक मंदी के मापने का एक आसान नियम बनाया हुआ है, अगर लगातार दो तिमाहियों में जीडीपी ग्रोथ रेट नेगेटिव रहती है तो उसे मंदी माना जाएगा. द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक दो लगातार क्वार्टर में जीडीपी के आंकड़ें जीरो से नीचे रहते हैं तो उसे टेक्नीकल तौर पर मंदी में रखा जाता है. इस साल भी अमेरिका की जीडीपी के आंकड़ें जीरो से नीचे रहे हैं. तकनीकी तौर पर कहा जा सकता है कि अमेरिकी इकोनॉमी मंदी में एंट्री ले चुकी है, लेकिन यह अनाधिकारिक है क्योंकि अमेरिकी सरकार और केंद्रीय बैंक फेड की ओर से ऐसा कोई बयान नहीं आया है. अमेरिकी सरकार इस बात से इनकार करती रही है कि देश मंदी में है. बाइडन सरकार का कहना है कि देश में नौकरियों की कोई कमी नहीं है. नई नौकरियों में लगातार इजाफा हो रहा है. साथ ही आधिकारिक तौर पर मंदी का फैसला एक गैर सरकारी संगठन नेशनल ब्‍यूरो ऑफ इकनॉमिक रिसर्च करता है, जिसके 8 सदस्‍य सभी फैक्‍टर्स और आंकड़ों को देखने के बाद इसकी घोषणा करते हैं.

मंदी के आने के कौन-कौन से कारण हैं?
दुनिया के आर्थिक मंदी के आने के बहुत से कारण हो सकते हैं, जिसमें दुनिया में दो देशों के बीच युद्ध छिड़ जाना, किसी देश की इकोनॉमी पूरी तरह से क्रैश हो जाना, आदि कई फैक्टर हैं, आइए आपको भी बताते हैं. 

अचानक से इकोनॉमी को झटका लगनाः 1970 के दौरान में ओपेक ने किसी तरह की चेतावनी दिना बिना यूएस को क्रूड ऑयल की सप्लाई कम कर दी तो आर्थिक मंदी का बड़ा कारण बनी. वित्त वर्ष 2020-21 में कोरोना वायरस के प्रकोप की वजह से दुनिया भर की इकोनॉमील को ठप कर दिया. 

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किसी देश में ज्यादा से ज्यादा कर्ज होनाः हाल ही में श्रीलंका का उदाहरण पूरी दुनिया ने देखा. श्रीलंका पर कर्ज इतना बढ़ गया कि उसके बाद तेल और बिजली तक के लिए रुपया नहीं बचा. वहीं चीन की हाउसिंग कंपनी एवाग्रांडे पर कर्ज इतना बढ़ गया था कि पूरी कंपनी और उसके शेयर क्रैश हो गए. जिसका असर दुनिया के तमाम शेयर बाजारों में देखने को मिला था. जब कोई देश लोन चुकाने में असमर्थ हो जाता है उसका आर्थिक सिस्टम और बैंकिंग व्यवस्था चरमरा जाती है. जिसका किसी भी देश पर काफी बुरा असर पड़ता है.  

महंगाईः महंगाई भी किसी भी देश के लिए अच्छी स्थिति नहीं है. मौजूदा समय में पूरी दुनिया महंगाई के बोझ से दबी हैं. जिसकी वजह से यूरोपीय देशों से लेकर ब्रिटेन, अमेरिका यहरं तक कि भारत ने भी ब्याज दरों में जबरदस्त इजाफा किया है. साल 2022 की शुरुआत में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण करने से क्रूड ऑयल समेत बहुत सी चीजों के दाम काफी बढ़ गए. जिसकी वजह से महंगाई मल्टी ईयर हाई पर पहुंच गई. 

टेक्नोलॉजी में परिवर्तनः नए इनोवेशन या अविष्कार लांग टर्म में इकोनॉमी को बढ़ाने में मदद करते हैं, लेकिन टेक्नोलॉमी को अपनाने के लिए शॉर्ट टर्म पीरियड की जरुरत पड़ सकती है. 19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति ने पुराने तरीकों को व्यवसायों से बाहर कर दिया, जिसने मंदी को जन्म दिया. मौजूदा समय में रोबोट तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस मंदी का कारण बन सकते हैं.

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हाल में वर्ल्ड बैंक ने क्या कहा? 
वर्ल्ड बैंक की ओर से आई रिपोर्ट के अनुसार भारत की जीडीपी के अनुमान को एक फीसदी कम कर दिया है. वर्ल्ड बैंक ने भारत के जीडीपी के अनुमान को 7.5 फीसदी से घटाकर 6.5 फीसदी का दिया है. आरबीआई ने भी भारत की जीडीपी के अनुमान को 7.2 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी कर दिया था. बीते वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी दर 8.7 फीसदी देखने को मिली थी. वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में मंहगाई है, जिसका असर भारत में साफ देखने को मिल रहा है. जिसकी वजह से अनुमान को कम किया गया है. 

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