क्या Exit poll नतीजे एक तरह का 'फर्जीवाड़ा'? मेंटल हेल्थ पर डालते हैं गंभीर असर, समझें क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक एक्सपर्ट

मीना प्रजापति | Updated:Oct 08, 2024, 05:16 PM IST

हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद आज अंतिम परिणाम आ रहे हैं. हालांकि, चुनाव आयोग के जो आंकड़े सामने आ रहे हैं और उससे पहले एग्जिट पोल के जो नतीजे आए, उनमें जमीन आसमान का अंतर है. इसका लोगों की मेंटल हेल्थ पर नेगेटिव असर हो सकता है. आइए समझें कैसे?

Exit Polls vs Actual Results: हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों पर बीते दिनों विभिन्न एजेसिंयों के जो एग्जिट पोल आए साफ नजर आ रहा था कि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की सरकार बनने वाली है. हालांकि, आज यानी 8 अक्टूबर को सुबह 8 बजे से वोटों की गिनती चल रही है. मतगणना अपने आखिरी दौर में पहुंच चुकी है. खबर लिखे जाने तक हरियाणा में बीजेपी को 50 सीटें तो कांग्रेस 35 पर सिमटती दिख रही है. तो वहीं, जम्मू-कश्मीर में बीजेपी को 29 और कांग्रेस और एनसी गठबंधन को 49 सीटें मिलती दिख रही हैं.

चुनाव आयोग के अब तक आए परिणामों से पता चलता है कि हरियाणा में बीजेपी और जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस-एनसी गठबंधन आगे चल रहे हैं. ऐसे में लोगों के मन में सवाल है कि एग्जिट पोल के नतीजें कांग्रेस की जीत बता रहे थे और वोटों की गिनती के बाद असली परिणाम कुछ और ही हैं. ऐसे में क्या एग्जिट पोल की भविष्यणवाणियों पर सवाल उठने लगे हैं? 

इस पर भोपाल में वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक और स्तंभकार डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में एक्जिट पोल के विपरीत नतीजें देखने के बाद आज एग्जिट पोल हरियाणा में भी फेल साबित हुए. एग्जिट पोल चुनाव परिणामों की पूर्वानुमानित तस्वीर प्रस्तुत करते हैं, जो अक्सर चुनाव के बाद की कौतूहल को शांत करने के लिए किए जाते हैं. हालांकि, एग्जिट पोल सही साबित हों या गलत, उनका समाज पर मानसिक प्रभाव गहरा होता है. एग्जिट पोल के परिणाम चाहे सही निकलें या गलत, यह समाज की मानसिक स्थिति, विश्वास, और पोलराइजेशन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं. 

गलत एग्जिट पोल मानसिक तनाव का कारण
एग्जिट पोल जब बिल्कुल ही गलत साबित होते हैं, तो लोग अनिश्चितता और मानसिक तनाव का अनुभव करते हैं. एग्जिट पोल जनता को एक परिणाम विशेष की होप देते हैं और जब वास्तविक परिणाम इससे विपरीत होते हैं, तो निराशा और भ्रम उत्पन्न होता है. लोग अपनी अपेक्षाओं के साथ जुड़ जाते हैं, और जब ये अपेक्षाएं पूरी नहीं होतीं, तो मानसिक असुरक्षा का अनुभव हो सकता है. खासकर राजनीति में गहरा इंटरेस्ट रखने वाले लोग इस प्रकार के मनोवैज्ञानिक दबाव से अधिक प्रभावित होते हैं.

एग्जिट पोल फर्जीवाड़ा - वरिष्ठ पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्र कहते हैं कि एग्जिट पोल एक तरह का फर्जीवाड़ा और धंधा है. जिस संख्या में लोग वोट डालने जाते हैं उस संख्या में लोगों का सही मत सामने नहीं आ पाता है. लोगों से जब पूछा जाता है कि वे किसे वोट देना चाहते हैं वे सही जवाब नहीं देते. ऐसे में एग्जिट पोल के अनुमान पूरी तरह से सही साबित नहीं हो पाते हैं. राजनीति में रुचि रखने वालों के लिए एग्जिट पोल बड़ी उम्मीदें लेकर आता है लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि एग्जिट पोल करने वाली संस्थाएं इसे सिर्फ एक नौकरी या धंधे की तरह देखती हैं. वहीं, राजनीति प्रेमियों के लिए नतीजे उलट आना एक सदमे के समान हो जाता है. 

कब-कब एग्जिट पोल के नतीजे हुए फेल
2024 के लोकसभा चुनावों से पहले, कम से कम 12 एग्जिट पोल ने भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की भारी जीत की भविष्यवाणी की थी. हालांकि, वास्तविक परिणाम काफी अलग थे. एनडीए ने 293 सीटें जीतीं, जो पूर्वानुमानों से काफी कम थी. भाजपा, विशेष रूप से, अपने दम पर साधारण बहुमत हासिल करने में विफल रही, उसने केवल 240 सीटें जीतीं, जो 2019 में उनकी पिछली 303 सीटों से 63 कम थी. इस बीच, कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लॉक ने 235 सीटों का दावा किया, जिससे एग्जिट पोल गलत साबित हुए. सिर्फ लोकसभा 2024 ही नहीं बल्कि 2023 में छत्तीसगढ़ विधानसभा, 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव, 2015 दिल्ली विधानसभा चुनाव और 2004 लोकसभा चुनाव वे समय रहे हैं जब एग्जिट पोल के नतीजे गलत साबित हुए हैं. 

एग्जिट पोल का मानसिक स्वास्थ्य पर असर
डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी आगे कहते हैं कि बार-बार गलत एग्जिट पोल आने से लोगों के बीच मीडिया और विशेषज्ञों पर ट्रस्ट इश्यूज होने लगते हैं. जब लोग चुनाव विश्लेषकों, पत्रकारों और सर्वेक्षण करने वाली संस्थाओं की सटीकता पर संदेह करने लगता है, तो समाज में सूचनाओं पर अविश्वास बढ़ता है. इससे मानसिक असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो सकती है. लोग यह मानने लगते हैं कि उन्हें सही जानकारी नहीं दी जा रही है, जिससे उनके मानसिक संतुलन पर नकारात्मक असर पड़ता है. गलत एग्जिट पोल समाज में राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देते हैं. विभिन्न राजनीतिक समूहों को जब अपने पक्ष में झुकाव दिखता है और फिर परिणाम इसके विपरीत आते हैं, तो यह वैचारिक संघर्ष को बढ़ावा देता है.

समर्थकों में निराशा और हताशा का भाव
ऐसे ध्रुवीकरण से समाज में मानसिक तनाव और अविश्वास बढ़ सकता है. राजनीतिक धारणाओं के प्रति लोग और अधिक कट्टर हो सकते हैं, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. एग्जिट पोल गलत साबित होते हैं तो उनके समर्थकों के लिए बड़ा फ्रस्ट्रेटिंग होता है. अगर किसी पार्टी या नेता की जीत की भविष्यवाणी होती है और परिणाम विपरीत आते हैं, तो उनके समर्थकों में निराशा और हताशा का भाव उत्पन्न हो सकता है. इससे मानसिक अवसाद की स्थिति पैदा हो सकती है, खासकर उन लोगों में जो राजनीति से गहराई से जुड़े होते हैं.


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एग्जिट पोल गलत होने पर राजनीतिक अस्थिरता का भय भी बढ़ जाता है. लोग यह सोचने लगते हैं कि चुनावी प्रक्रिया में कुछ गड़बड़ी हो सकती है, जिससे वे मानसिक रूप से असुरक्षित महसूस करते हैं. इससे समाज में चिंता और मानसिक तनाव का माहौल बन सकता है. कुल मिलाकर एग्जिट पोल के गलत होने से समाज में मानसिक तनाव, ध्रुवीकरण और विश्वास में कमी जैसे प्रभाव दिखाई देते हैं.

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