मध्यकालीन भारत में मुगलों (Mughals) की हुकूमत थी. दिल्ली (Delhi) की सत्ता पर बादशाह औरंगजेब (Aurangzeb) काबिज थे. भारत में औरंगजेब लगातार धार्मिक कट्टरपंथ को बढ़ावा दे रहा था. उसी समय उसकी इन बर्बरतापूर्ण नीतियों का एक खास इलाके से विरोध भी हो रहा था. ये विरोध कर रहे थे मराठा नायक छत्रपति शिवाजी (Shivaji). बात 17वीं सदी की है. छत्रपति शिवाजी मुगलिया सल्तनत को लगातार चुनौती दे रहे थे. इसी बीच एक दिलचस्प वाकया हुआ. दरअसल बीजापुर में एक बड़ी महफिल सजी थी. ये महफिल वहां के बादशाह ने सजाई थी. बीजापुर के बादशाह का मुगलों के साथ गठबंधन था.
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शिवाजी ने महफिल में आने से किया इन्कार
इस खास महफिल में शिवाजी को इसलिए बुलाया गया था, क्योंकि उन्होंने आदिलशाही राजवंश के सेनापति मुल्ला अली पर फतेह हासिल कर उनके इलाके को अपने कब्जे में ले लिया था. खासकर रायगढ़ और तोरणा के किलों को भी अपने कब्जे में ले लिया था. लगातार शक्तिशाली हो रहे शिवाजी को देखकर मुगल खौफजदा हो रहे थे. इस महफिल में आदिलशाही सुल्तान ने अपने बड़े अधिकारियों को भी बुलाया गया था. साथ ही वहां दोवागर की रानी बड़ी साहिबा भी उपस्थित थीं. रानी साहिबा खुद बीजापुर के राज-काज देखती थीं. दरअसल, अफजल खान बीजापुर सल्तनत के आदिल शाही वंश का एक क्रूर कमांडर था. बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह का सबसे वफादार सेनापति था. दक्षिण में मुगलिया सल्तनत को बढ़ाने के लिए वो लगातार कार्यरत था. उसे कई जंगों में कामयाबी भी हासिल हुई थी. इसी महफिल में अफजल खान ने शिवाजी को लेकर सवाल उठाने लगा. कहने लगा कि कौन है शिवाजी? मैं इसे सबक सिखाता हूं. वो यहीं तक नहीं रुका और कहने लगा कि मैं उसे यहां घसीटकर लाऊंगा. यदि ज्यादा कुछ हुआ तो उसकी लाश भी लाऊंगा. अफजल को अपनी ताकत पर बेहद नाज था. इसे लगता था कि उसे कोई भी नहीं हरा सकता है. उसे पूरा विश्वास था कि वो शिवाजी की हत्या करेगा. उस महफिल के बाद वो अपने सैनिकों के साथ शिवाजी की तालाश में निकल पड़ा.
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पहले हुई खत-ओ-किताबत
अफजल खान ने शिवाजी को पकड़ने के लिए उनके मुख्य किलों पर आक्रमण कर दिया. इनमें पंढ़रपुर और तुलजापुर के इलाके भी शामिल थे. स्थानीय लोगों को खूब हिंसा और अत्याचार का सामना करना पड़ा. उसे ये लगा इस तरह शिवाजी खुद ही समर्पण कर देंगे. शिवाजी अफजल की नीतियों से खूब वाकिफ थे. वो उसकी जाल में नहीं फंसे. आखिरकार अफजल खान ने एक नई रणनीति अपनाने की सोची. उसने शिवाजी को मैत्री समझौते के लिए संदेश भाजा. इस संदेश में अफजल ने खूब चिकनी-चुपड़ी बातों का इस्तेमाल किया था. इसमें कहा गया था कि 'आप आएं और मुझसे मिलें. आप हमारे लिए बच्चे के समान हो. हमारे साथ दोस्ती कर लो और हमारे किले को लौटा दो, मैं प्रयास करूंगा कि आदिलशाह के दरबार में आपको सरदार के तौर पर नौकरी कर लीजिए.' शिवाजी ने भी बड़ी चालाकी के साथ एक संदेश भेज कर अफजल खान के संदेश का जवाब दिया. उन्होंने लिखा कि 'खान साहब, मैं आपके इलाकों पर कब्जा करके शर्मसार हूं. आप प्रतापगढ़ किले पर आएं और हमारी मुलाकात हो.' शिवाजी की बातों को पढ़कर अफजल खान की छाती चौड़ी हो गई. उसे लगा कि शिवाजी अफजल खान से खौफ खाते हैं. मन ही मन अफजल खान ने योजना बनाई कि वो मुलाकात के दौरान शिवाजी की हत्या कर देगा और उनके इलाके पर कब्जा कर लेगा.
जब शिवाजी ने अफजल का किया काम तमाम
अफजल खान शारीरिक तौर पर काफी मजबूत था. उसकी लंबाई इतनी थी कि शिवाजी इसके कंधे तक ही आते थे. दोनों की जब मुलाकात हुई तो अफजल खान ने धोखे से शिवाजी के गरदन को अपने बाजुओं में फंसाने की कोशिश की, ताकि वो शिवाजी का गला दबा सके. आगे उसने अपना खंजर से शिवाजी की पसलियों पर हमला किया. लेकिन शिवाजी के सुरक्षा वस्त्र की वजह से ये हो न सका. अब अपजल के इस दगाबाजी का जवाब देने का वक्त शिवाजी को था. उन्होंने तुंरत अपने वस्त्र में छिपाए बघनखे से अफजल के पेट पर हमला किया. बघनखा सीधे अफजल के पेट में धंस गया. अगले ही पल शिवाजी ने अपनी तलवार से उसके हाथ को उसके धड़ से अलग कर दिया. शिवाजी की तलवार का नाम 'जगदंबा' था. अफजल खान वहीं धराशाई हो गया. उसके बाद उसके सुरक्षा में मौजूद सैनिक वहां पहंचे, लेकिन तब तक अफजल का खात्मा हो चुका था. साथ ही उसके सुरक्षा में तैनात सैनिक भी मारे गए. जंगल में छिपे अफजल खान के बाकी के सैनिक या तो मारे गए या वहां से दफा हो गए. इस तरह शिवाजी ने एक और फतेह हासिल कर ली थी.
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