डीएनए हिंदीः सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में जजों की नियुक्ति के लिए हाईकोर्ट के 5 जजों के नामों की सिफारिश की गई है. कॉलेजियम (Collegium) ने केंद्र सरकार को जो नाम भेजे हैं उनमें राजस्थान, मणिपुर, इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक-एक जज और पटना हाईकोर्ट के दो जज शामिल हैं. जस्टिस पंकज मित्तल राजस्थान हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस हैं, जस्टिस संजय करोल पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस हैं, जस्टिस पीवी संजय कुमार मणिपुर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस हैं, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह, पटना हाई कोर्ट के जज हैं और जस्टिस मनोज मिश्रा इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज हैं.
कब हुआ सुप्रीम कोर्ट का गठन?
26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के दो दिन बाद 28 जनवरी 1950 को सुप्रीम कोर्ट बनाया गया. इससे पहले इसे फेडरल कोर्ट ऑफ इंडिया कहा जाता था जो 1 अक्टूबर 1937 को अस्तित्व में आया था. संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित कानून भारत की सीमा के भीतर सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी होगा.
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क्या कहता है संविधान?
संविधान में अनुच्छेद 124 (2) में सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के बारे में प्रावधान है. इसके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के परामर्श पर की जाती है. कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जज होते हैं. यही कॉलेजियम सुप्रीम कोर्ट के साथ राज्यों के हाईकोर्ट के न्यायधीशों की नियुक्ति की भी सिफारिश करता है. कोलेजियम की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति द्वारा इनकी नियुक्ति की जाती है. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों से परामर्श लेकर सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं. इसकी चर्चा अनुच्छेद 124 (2) में की गई है. सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश यानी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का परामर्श इस नियुक्ति में अहम माना जाता है. 217 (1) इसमें हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति के बारे में चर्चा की गई है.
क्या है जज बनने की योग्यता?
हाई कोर्ट में जज के बनने के लिए लॉ की बैचलर डिग्री होनी चाहिए. इसके साथ 10 साल तक वकालत का अनुभव होना जरूरी है. सेवानिवृति होने के बाद जज दोबारा प्रैक्टिस भी शुरू कर सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट का जज बनने के लिए शर्त
- भारत का नागरिक हो या
- कम से कम किसी हाई कोर्ट में पांच साल तक जज रहा चुका हो या
- कम से कम 10 साल तक हाई कोर्ट में वकालत का अनुभव हो या
- राष्ट्रपति के विचार में जाने माने कानूनविद हो
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कैसे होती है जजों की नियुक्ति?
भारत में सीजेआई यानी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति को लेकर स्पष्ट नहीं कहा गया है किसे बनाया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठता के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के जजों को सीजेआई के तौर पर नियुक्त किया जाता है. मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिड्योर (एमओपी) के आधार पर सीजीआई (CJI) की नियुक्ति की जाती है. सामान्य तौर पर कानून मंत्री सेवानिवृत होने वाले सीजीआई से सुझाव मांगते हैं. सुझाव वाले नाम को कानून मंत्री प्रधानमंत्री के पास भेजते हैं. प्रधानमंत्री उस नाम को आगे राष्ट्रपति के पास भेजते हैं. इस तरह भारत के सर्वोच्च न्यायाधीश यानी सीजीआई की नियुक्ति होती है.
क्यों बनाया गया कोलेजियम सिस्टम?
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति और तबादलों को लेकर कॉलेजियम सिस्टम कोर्ट के कुछ फैसलों के बाद बनाया गया. दरअसल इसके पीछे कोर्ट के तीन फैसले मुख्य कारण हैं. इन फैसलों को 'थ्री जजेज केसेस' (three judges cases) के नाम से जाना जाता है.
फर्स्ट जज केस, 1981 - सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि ठोस तर्क या कारण के आधार पर राष्ट्रपति, चीफ जस्टिस की सिफारिश दरकिनार कर सकते हैं. इस फैसले ने न्यायपालिका में नियुक्तियों को लेकर कार्यपालिका को शक्तिशाली बना दिया. ये स्थिति 12 साल तक रही.
सेकेंड जजेज केस, 1993 - सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने बहुमत से ये व्यवस्था दी कि भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के प्रावधान का अर्थ उनकी मंजूरी लेना है. फैसले में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश और दो वरिष्ठ न्यायाधीशों का एक कॉलेजियम ये नियुक्तियां करेगा.
थर्ड जजेज केस, 1998 - यहां कॉलेजियम में कुछ बदलाव किए गए और सुप्रीम कोर्ट के जज की नियुक्ति वाले कॉलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के अलावा सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ न्यायाधीश सदस्य होंगे.
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कैसे काम करती है कॉलेजियम?
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का नेतृत्त्व CJI द्वारा किया जाता है और इसमें न्यायालय के चार अन्य सीनियर जज शामिल होते हैं. कॉलेजियम की सिफारिश (दूसरी) मानना सरकार के लिए जरूरी होता है. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में न्यायधीशों के तबादलों का फैसला भी कॉलेजियम ही करता है. इसके अलावा उच्च न्यायालय के कौन से जज पदोन्नत होकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम ही करता है. सरकार एक बार किसी एक या अधिक नामों को पुनर्विचार के लिए कॉलेजियम के पास वापस भेज सकती है. लेकिन अगर कॉलेजियम दोबारा नाम भेजती है तो इस सिफारिश को मानना ही पड़ेगा.
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