डीएनए हिंदी: अमेरिका के दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति जो बाइडेन और उनकी पत्नी डॉ. जिल बाइडेन से मिलने पहुंचे. इस मुलाकात के लिए पीएम मोदी अपनी ओर से अपने दोनों मेजबानों के लिए कुछ तोहफे भी ले गए थे. जो बाइडेन के लिए पीएम मोदी चंदन की लकड़ी का एक डिब्बा ले गए थे. इस डिब्बे में बेहद खास चीजें रखी गई थीं. पीएम मोदी ने अमेरिका की फर्स्ट लेडी जिल बाइडेन को तोहफे में लैब में बना हीरा दिया. यह हीरा 7.5 कैरेट का है.
इससे पहले लैब में बने हीरे तब चर्चा में आए थे जब केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में ऐलान किया था कि लैब में हीरे बनाने के लिए आईआईटी को स्पेशल ग्रांट दिया जाएगा. बता दें कि प्राकृतिक हीरे कार्बन का ही रूप होते हैं. भारत सरकार की कोशिश है कि हीरों के आयात को कम किया जाए और लैब में बनने वाले हीरों को भारत में बनाया जाए. आइए समझते हैं कि लैब में हीरे कैसे बनाए जाते हैं...
कैसे बनते हैं हीरे?
हीरा एक कार्बनिक पदार्थ है. यानी तेल, गैस और तमाम कार्बनिक खनिजों की तरह यह भी खुदाई में मिलता है. सैकड़ों-हजारों सालों तक जमीन में दबे रहने के कारण जिस तरह कोयले के अलग-अलग रूप बनते हैं. ठीक वैसे ही सालों तक जमीन में दबे रहने के कारण यही कार्बन हीरे में बदल जाता है. खुदाई में मिले हीरों को तराशा जाता है तब वे उस रूप में आते हैं जैसे हम और आप उन्हें देखते हैं.
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लैब में कैसे बन रहे हैं हीरे?
जमीन के नीचे मिलने वाले खनिजों के बनने में सारा गेम तापमान और दबाव का है. ज्यादा तापमान, भारी दबाव वाली स्थिति में भौतिक के साथ-साथ कई रासायनिक क्रियाएं होती हैं जिससे जमीन के नीचे मिलने वाले जीवाश्मों में बदलाव होता है. हीरा दुनिया का सबसे ठोस पदार्थ माना जाता है. यानी इसमें कार्बन के अणु बहुत पास-पास होते हैं. ऐसे में हीरा बनने के लिए तापमान और दबाव बहुत ज्यादा होना चाहिए.
लैब में हीरा बनाने के लिए कार्बन सीड पर उसी तरह का तापमान और दबाव पैदा किया जाता है. कार्बन सीड का मतलब एक तरह के रॉ मटीरियल से है. इसी पर ढेर सारा दबाव डाला जाता है और इसको गर्म भी किया जाता है. इसी प्रक्रिया में कुछ ऐसे कण बनते हैं जो समय के साथ हीरे में बदल जाते हैं. इन्हीं की कटिंग और पॉलिशिंग की जाती है तो ये बिल्कुल प्राकृतिक हीरों की तरह तैयार हो जाते हैं.
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विदेश से आने वाले कार्बन सीड पर ड्यूटी घटाकर 0 कर दी गई है ताकि लैब में हीरा बनाकर आयात कम किया जा सकेगा. इन दोनों में फर्क सिर्फ इतना होता है कि लैब वाले हीरे में नाइट्रोजन नहीं होता है और प्राकृतिक हीरे में नाइट्रोजन होता है. देखने से दोनों में अंतर करना मुश्किल होता है.
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