Honey trap: जासूसी के लिए हथियार कैसे बन जाता है 'सेक्स', क्यों राज खोलने पर मजबूर हो जाते हैं लोग?
हनीट्रैप के देश में बढ़ते मामले चिंताजनक है. सुरक्षाबलों और गोपनीय विभागों में तैनात लोग भी हनीट्रैप के शिकार हो रहे हैं.
सेना और संवेदनशील विभागों में इन दिनों हनी ट्रैप की घटनाएं बढ़ी हैं. लोग पहले सेक्स चैट में फंस रहे हैं फिर हनीट्रैप का शिकार हो रहे हैं.
डीएनए हिंदी: हनीट्रैप की दस्तक अब केंद्र सरकार के गोपनीय विभागों तक हो गई है. विदेश मंत्रालय से जुड़े एक ड्राइवर के हनी ट्रैप में फंसने के बाद देशभर में चर्चा हो रही है कि अगर इतने संवेदनशील विभागों की सूचनाएं दांव पर हैं तो बाकी जगहों की स्थिति क्या होगी. पुलिस ने हनीट्रैप और जासूसी के जाल में फंसे ड्राइवर को तो गिरफ्तार कर लिया है लेकिन कई सवाल भी उठ रहे हैं.
आरोपी ड्राइवर गोपनीय जानकारियां किसी दूसरे शख्स को अनजाने में भेज रहा था. वह अनजाने में ही पाकिस्तान की महिला को दिल दे बैठा था, जिसका मकसद उससे प्यार नहीं बल्कि खुफिया जानकारियों में सेंध लगाना था. प्यार के अंजाम में उसे जेल मिली और उसने अपने महबूब का चेहरा तक नहीं देखा. दरअसल चेहरा तब देखता जब वह कोई आम लड़की होती. ड्राइवर हनी ट्रैप में फंस चुका था. अब ताउम्र उसे जेल में रहना पड़ सकता है.
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पुलिस की नजर इस कांड पर जाती ही कहां. भला हो जांच एजेंसियों का जिन्होंने सारी पोल खोलकर रख दी. उन्होंने पुलिस को आगाह किया एक शख्स है जो यहां से खुफिया जानकारियां पाकिस्तान में बैठे किसी शख्स को भेज रहा है. पाकिस्तान, संवेदनशील जानकारियों को हासिल करने के लिए धड़ल्ले से हनी ट्रैप का इस्तेमाल कर रहा है. सेक्स और हनीट्रैप को वह ऐसा टूल मानता है, जो अगर निशाने पर लगा तो ISI का काम बन जाता है.
कैसे हनीट्रैप में फंसते हैं लोग?
हनीट्रैप के राज को समझना है तो सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि कैसे हनीट्रैप का गंदा खेल शुरू होता है. दुश्मन देश के एजेंट पहले संबंधित विभाग की पूरी रेकी करते हैं. सोशल मीडिया पर सबकी धड़ल्ले से मौजूदगी, वर्क प्लेस को मेंशन करने की आदत और बड़े विभाग में तैनात होने का टशन हर कोई पचा नहीं पाता है. सुरक्षाबलों और संवेदनशील विभागों में तैनात कर्मचारी भी इस मोहजाल से बाहर नहीं निकल पाते हैं.
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ISI जैसे जासूसी संगठन इस ताक में रहते हैं कि वहां काम करने वाले किसी सबसे निचले पद पर तैनात किसी शख्स के साथ कैसे संपर्क किया जाए. उन्हें फंसाने की शुरुआत ठीक वैसे ही होती है, जैसे इन दिनों सेक्सटॉर्शन से जुड़े दूसरे मामलों की. मसलन-
मैसेज- हाय, मैं रिया. मैं आपसे दोस्ती करना चाहती हूं.
जवाब- हेलो.
मैसेज- आप क्या करते हैं?
जवाब- ...काम करता हूं. ये पोजीशिन है, ये देखता हूं. (ऐसे ही कुछ बुनियादी सवाल-जवाब)
...और फिर यहीं से शुरू होता है हनीट्रैप का गंदा गेम. लोग बहकते हैं. सेक्स चैट शुरू करते हैं, तस्वीरें भेजते हैं. जब सामने वाले को भरोसा हो जाता है कि अब बात बन गई है तो यह मामला जासूसी तक बढ़ जाता है. दु्श्मन देश इसके लिए सेक्सटॉर्शन और Sexpionage जैसे टूल का इस्तेमाल करते हैं. सामने वाले को लगता है कि वह लड़की उसी के देश की है. सामान्य जिज्ञासा की वजह से सबकुछ जानना चाहती है लेकिन ट्रैप में फंसा शख्स इस बात से अनजान होता है कि उसका इस्तेमाल हो रहा है. वीडियो चैटिंग, फोन कॉल्स से शुरू हुई दोस्ती, इस मोड़ तक पहुंचती है कि वह अपनी खुफिया जानकारियां तक लीक कर बैठता है.
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जाहिर तौर पर अगर कोई बेहद समझदार नहीं है तो ऐसे मैसेज का जवाब देने लग जाता है. इन सोशल मीडिया प्रोफाइल पर तस्वीर ऐसी लगी होती है, जिसे देखकर हू-ब-हू ऐसा लगे कि किसी आम लड़की की तस्वीर है. जासूस यह बेहतर जानता है कि किस प्रोफाइल के शख्स के साथ कैसे बात करनी है. क्या अपना परिचय देना है. क्योंकि उन्हें इसकी बेहतर ट्रेनिंग मिली होती है.
सेक्स वर्कर्स को भी बनाया जाता है 'टूल'
सेना और संवेदनशील विभागों की बहुत सी जानकारियां बाहर नहीं आ पाती हैं. खुफिया एजेंसियां किसी इन्फॉर्मेशन को बाहर निकालने के लिए सेक्स वर्कर्स का भी इस्तेमाल धड़ल्ले से करती हैं. पहले प्यार के जाल में 'टारगेट' को फंसाया जाता है फिर उसे ब्लैकमेल किया जाता है, या प्यार से ही संवेदनशील जानकारियों को बाहर निकालने की कोशिश की जाती है. इस ट्रैप में कई बार बड़े अधिकारी भी फंस जाते हैं. फिल्मों की तरह, हकीकत में भी ऐसी घटनाएं सामने आई हैं भले ही उन पर चर्चा न हुई हो. रोमांस, सेक्स, रिलेशनशिप जासूसी के गेम में सबकुछ एजेंसियों के लिए टूल की तरह इस्तेमाल होता है.
भारत में बढ़े हैं हनीट्रैप के मामले
भारत में सोशल मीडिया के जरिए जवानों को फंसाने की साजिश लगातार हो रही है. सुरक्षाबलों के कई जवान इस ट्रैप में फंस चुके हैं. उन्हें लगता है कि चैट वे किसी लड़की से कर रहे हैं लेकिन असली एंगल जासूसी का होता है. सुरक्षा एजेंसियां इस बार में आगाह कर चुकी हैं. पाकिस्तान जवानों को फंसाने के लिए हनीट्रैप की साजिश लगातार रच रहा है.
हनीट्रैप से कैसे बचें?
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विशाल अरुण मिश्रा कहते हैं कि साइबर अवेयरनेस बेहद जरूरी है. इसके बारे में गोपनीय विभागों में स्पेशल ट्रेनिंग देनी चाहिए. लोगों को यह पता होना चाहिए कि स्पूफ कॉलिंग क्या है, डार्क वेब क्या है, कॉन्फिडेंशियल सर्वर क्या होते हैं. अगर लोग साइबर संसार को जानेंगे तो ऐसी घटनाओं से बचे रहेंगे.
साइबर एक्सपर्ट एडवोकेट हर्षिता निगम का मानना है कि गोपनीय विभाग, सेना और दूसरे संवेदनशील विभागों में काम करने वाले लोगों की पब्लिक लाइफ पर नजर रखने की जरूरत होती है. सबकी एक प्राइवेसी होती है लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर इस पर नजर रखी जा सकती है. अगर ऐसा किया जाए तो गोपनीय जानकारियों के लीक होने की आशंका कम होगी.
साइबर क्राइम से जुड़े मामलों पर नजर रखने वाले अधिवक्ता अनुराग कहते हैं कि हर संवेदनशील डिपार्टमेंट, सुरक्षाबलों के रेजीमेंट में लोगों को साइबर क्राइम की दुनिया से अवेयर होने की ट्रेनिंग दी जाए. यह समझाया जाए कि साइबर ठगों किन-किन माध्यमों का इस्तेमाल कर सकते हैं. किसी भी अनजान प्रोफाइल से बातचीत न करें. जिन्हें व्यक्तिगत तौर पर जानें केवल उन्हें ही अपने प्रोफाइल पर ऐड करें. अनजान लोगों को कभी नंबर न दें. गोपनीय विभागों में काम कर रहे हैं तो भूलकर भी अपनी प्रोफाइल को पब्लिक न करें. यह भी न लिखें कि आप कहां तैनात हैं, क्या करते हैं. इससे ठगों को आपके बारे में जानने का मौका मिलता है.
एक अन्य अधिवक्ता उज्जवल भरद्वाज कहते हैं कि संवेदनशील विभागों में तैनात लोगों की सोशल मीडिया प्रोफाइल की स्कैनिंग हर दिन होनी चाहिए. जो लोग इसका शिकार बनते हैं उन्हें जरा भी भनक नहीं होती है कि उनके साथ क्या हो रहा है. अगर प्रोफाइल पर एजेंसी की नजर रहेगी तो गोपनीय जानकारियों में सेंध कम लगेगी.
गोपनीय जानकारियों का क्या करते हैं देश?
आमतौर पर जिन देशों के बीच तनाव की स्थिति होती है, उनके बीच जासूसी की घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं. भारत और पाकिस्तान के बीच स्थिति ऐसी है. पाकिस्तान भारत की गोपनीय जानकारियां हासिल करना चाहता है. जैसे भारत की विदेश नीति क्या है, किन अहम मुद्दों पर फैसला लेने वाला है, संवेदनशील सीमाओं पर क्या अगला कम उठाया जा सकता है, कहां-कहां आर्मी बेस है, कहां हथियार रखे हैं, किस बेस पर सिक्योरिटी का क्या स्ट्रक्चर है. ये सूचनाएं दुश्मन देशों को अपनी रणनीति मजबूत करने में काम आती हैं. इसके अलावा भी कई ऐसे फैक्टर्स होते हैं जिनके लिए प्रतिद्वंद्वी देश जासूसी का जाल बिछाते हैं.
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