डीएनए हिंदीः सोमवार यानी आज से संसद का मानसून सत्र (Monsoon Session 2022) शुरू हो रहा है. मानसून सत्र में मोदी सरकार 24 बिल लाने जा रही है. इन बिल पर चर्चा के अलावा कई अन्य मुद्दों पर भी संसद में बहस हो सकती है. संसद का मानसून सत्र 18 जुलाई से 12 अगस्त तक चलेगा. क्या आपको पता है कि संसद का सत्र क्यों चलाया जाता है? संसद का सत्र किसकी इजाजत से चलाया जाता है और इसकी कार्यवाही पर सरकार को कितना खर्च करना पड़ता है. अपनी इस रिपोर्ट में इसे विस्तार से समझते हैं.
मानसून सत्र कब होता है और इसे कौन कौन बुलाता है?
आम तौर पर मानसून सत्र जुलाई से लेकर 15 अगस्त के बीच बीच होता है. जब भी संसद का कोई सत्र शुरू किया जाता है तो उससे पहले कैबिनेट कमेटी ऑन पार्लियामेंट्री अफेयर्स इसके लिए एक कैलेंडर तैयार करती है. इस कैलेंडर को मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. सांसदों को सत्र की सूचना एक समन के जरिए राष्ट्रपति की ओ से भेजी जाती है. राष्ट्रपति आर्टिकल 85 के तरह संसद सत्र को फैसला लेता है. राष्ट्रपति की ओर से समय समय पर संसद सदस्यों को मिलने के लिए कहा जाता है. बता दें कि संसद के दो सदनों के बीच में 6 महीने से अधिक का अंतर नहीं हो सकता है. ऐसे में आम तौर पर सालभर में तीन सत्र आयोजित किए जाते हैं. इनमें बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र होते हैं. इसे लेकर कोई नियम तय नहीं है कि साल में कितने सत्र आयोजित किए जाएंगे.
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सत्ता और विपक्ष के लिए तय होती है जगह
लोकसभा में कौन कहां बैठेगा, इसके लिए जगह तय होती है. चुनाव जीतने वाली पार्टियों के हिसाब से सीटों का बंटवारा होता है. यह तय होता है कि प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी के सांसदों को स्पीकर के बाएं तरफ वाली सीटें दी जाती हैं, जबकि अन्य पार्टी के सासंद दाईं तरफ बैठते हैं. वहीं पार्टियां अपने सांसदों को अपने हिसाब से सीटें दे सकती है कि कौन आगे बैठेगा और कौन पीछे. सामान्य तौर पर इसमें पार्टियां नेताओं की वरिष्ठता को ध्यान में रखती हैं.
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सालभर में कितना होता है काम
संसद में सामान्य तौर पर सालभर में तीन सत्र का आयोजन किया जाता है. ऐसे में अगर देखा जाए तो सालभर में 70-80 दिन ही संसद की कार्यवाही होती है. ऐसे में उसका कितना काम होगा यह इस बाद पर निर्भर करता है कि उस सत्र का आयोजन कितनी शांति के साथ किया जा रहा है. सामान्य तौर पर विपक्ष कई मुद्दों को लेकर संसद में सरकार को घेरने की कोशिश करता है. इससे हंगामे के कारण कार्यवाही को स्थगित करना पड़ता है. अभी तक के इतिहास में सिर्फ 1992 में ही संसद का कामकाज 80 दिनों तक हुआ था. इसके बाद यह आंकड़ा लगातार कम होता जा रहा है.
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कार्यवाही पर हर मिनट कितना आता है खर्च
संसद की कार्यवाही सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे तक होती है. इसमें एक बजे से दो बजे तक का समय लंच का होता है. शनिवार और रविवार को कार्यवाही नहीं होती है. इसके अलावा सत्र के दौरान कोई त्योहार या अन्य जयंती हो तो उसका भी अवकाश हो सकता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक संसद की कार्यवाही पर हर मिनट करीब ढाई लाख रुपये खर्च होते हैं. ऐसे में इसे हर घंटे से हिसाब से देखे तो यह रकम 1.5 करोड़ रुपये होती है. यह खर्चा सांसदों को मिलने वाले वेतन, भत्ते, संसद सचिवालय पर आने वाले खर्च, सचिवालय के कर्मचारियों के वेतन और सांसदों की सुविधाओं पर खर्च होता है. ऐसे में जब हंगामे के कारण संसद की कार्यवाही स्थगित होती है तो आम जनता को टैक्स के रूप में लाखों का नुकसान होता है.
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