अगर किसी पार्टी में हो जाए बगावत तो चुनाव चिह्न को लेकर कैसे होता है फैसला?

कुलदीप सिंह | Updated:Jul 06, 2022, 11:52 AM IST

Maharashtra: महाराष्ट्र में शिंदे और उद्धव गुट के बीच तकरार लगातार बढ़ती जा रही है. पार्टी के सिंबल को लेकर जंग तेज होती जा रही है. 

डीएनए हिंदीः उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के हाथ से सत्ता छीनने के बाद एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री बन चुके हैं. शिवसेना के दो तिहाई से अधिक विधायकों को एक झटके में उद्धव ठाकरे से अलग करने के कदम से सभी हैरान हैं. सरकार बनाने के बाद अब दोनों गुटों में पार्टी सिंबल को लेकर जंग शुरू हो गई है. 55 में से 40 विधायकों का साथ मिलने से शिंदे गुट के हौंसले बुलंद हैं. दूसरी तरफ उद्धव गुट भी अब पहले से अधिक चौकन्ना हो गया है. सरकार जाने के बाद पार्टी सिंबल की जंग में वह फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं. आखिर किसी पार्टी में बगावत के बाद यह कैसे तय होता है कि पार्टी की सिंबल किसे दिया जाए?

चुनाव आयोग की होती है अहम भूमिका
किसी भी पार्टी को मान्यता चुनाव आयोग देता है. चुनाव आयोग के पास ही पार्टी की सभी जानकारी होती है. किसी भी पार्टी को जब चुनाव आयोग से मान्यता मिलती है तो उसे इससे पहले पार्टी के सभी पदाधिकारियों की सूची और पार्टी का संविधान चुनाव आयोग देना होता है. इसमें अगर किसी तरह का बदलाव होता है तो उसकी जानकारी भी चुनाव आयोग को समय-समय पर देनी होती है. पार्टी में अगर सभी बगावत होती है तो सबसे पहले चुनाव आयोग पार्टी का संविधान देखता है. बगावत के बाद हुआ किसी भी तरह का बदलाव क्या पार्टी के संविधान के तहत किया है या नहीं. 

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सुप्रीम कोर्ट में भी दी जा सकती है चुनौती
पार्टी के सिंबल पर दावे को लेकर कोई भी गुट सुप्रीम कोर्ट भी जा सकता है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में चुनाव आयोग से मामले की जानकारी लेता है और उसकी राय जानता है. अगर मामला सीधा चुनाव आयोग में लगा है और कोई गुट चुनाव आयोग के फैसले से खुश नहीं है तो वह कोर्ट का रुख कर सकता है. 

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कार्यकारिणी की अहम भूमिका
किसी भी पार्टी में बगावत होने पर कोई गुट सिर्फ सांसद और विधायकों की संख्या के आधार पर ही पार्टी सिंबल पर अपना दावा नहीं ठोंक सकता है. यह भी जानना जरूरी है कि पार्टी की राष्ट्रीय या मुख्य कार्यकारिणी के पदाधिकारी किस गुट की तरफ हैं. अगर किसी पार्टी के सभी विधायक या सांसद एक गुट के पक्ष में चले जाएं तब भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की राय अहम होती है. किसी राजनीतिक पार्टी के विवाद की स्थिति में चुनाव आयोग सबसे पहले यह देखता है कि पार्टी के संगठन और उसके विधायी आधार पर विधायक-सांसद सदस्य किस गुट के साथ कितने हैं. राजनीतिक दल की शीर्ष समितियां और निर्णय लेने वाली इकाई की भूमिका काफी अहम होती है.  

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