डीएनए हिंदी: भगवान बुद्ध सेतु (Buddha Setu) हैं जिन्होंने कई देशों को भारत (India-Thailand Relations) से जोड़ दिया है. ये देश ऐसे हैं जिनके मूल में भारतीय दर्शन (Indian Philosophy) है, व्यवहार में बुद्ध हैं और संस्कृति भी काफी हद तक भारत जैसी है. वहां भी लोग, अपने देश की तरह झुकते हैं, नमन करते हैं और सामने वाले व्यक्ति-संस्था को अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं. थाईलैंड भी उन्हीं देशों में शुमार है. सेतु का काम कुछ हिंदू देवी-देवता भी करते हैं. जैसे हमारे यहां हाथी को भगवान गणेश से जोड़कर देखते हैं, थाईलैंड की भी परंपरा कुछ ऐसी है.
थाईलैंड और भारत के बीच सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध एक बार फिर चर्चा में हैं. भारत-थाईलैंड संयुक्त आयोग की नौंवी बैठक हो रही है. विदेश मंत्री एस जयशंकर गुरुवार को बैंकॉक के देवस्थान दर्शनों के लिए पहुंचे. देवस्थान हिंदू परंपराओं का केंद्र है.
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विदेश मंत्री ने ट्वीट किया, 'बैंकॉक के देवस्थान में गुरुवार सुबह प्रार्थना की. फ्रा महाराजागुरु विधि का आशीर्वाद लिया. यह हमारी साझी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को रेखांकित करता है.'
देवस्थान या 'थाई रॉयल कोर्ट' का 'रॉयल ब्राह्मण ऑफिस' बैंकॉक के फ्रा नाखोन जिले में वाट सुथत के पास स्थित है. यह मंदिर थाईलैंड में हिंदू धर्म का आधिकारिक केंद्र है. महाराजागुरु विधि थाई ब्राह्मण समुदाय के प्रमुख हैं.
सांस्कृतिक तौर पर एक-दूसरे से जुड़े हैं भारत-थाईलैंड
भारत और थाईलैंड एक-दूसरे से सांस्कृतिक तौर पर जुड़े हुए हैं. परंपराएं दोनों देशों को बांधती हैं. दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भारत का संबंध सांस्कृतिक भी है और वाणिज्यिक भी. संस्कृत और पालि ग्रंथों में थाईलैंड को कथकोश, सुवर्णभूमि, सुवर्णभूमि, स्वर्ण द्वीप जैसे अलग-अलग नामों से संबोधित किया गया है.
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यह क्षेत्र ऐसा था जहां भारतीय व्यापारियों ने सदियों पहले दस्तक दे दी थी. यहां भारत के व्यापारिक संबंध पुराने हैं. यहां से भारत लकड़ी, मसाले और गहनों का व्यापार करता था. थाईलैंड की संस्कृति में भारत की झलक साफ दिखती है. कई यूरोपीय और भारतीय विद्वान ने इस क्षेत्र को दूरस्थ भारत और वृहद भारत भी कहा है. कुछ विद्वानों ने इसे भारतीय राज्य के तौर भी संदर्भित किया है. भारतीय संस्कृति से इसकी निकटता जग जाहिर है.
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फ्रांसीसी विद्वान जॉर्ज कोएड्स ने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में भारत के विस्तार पर गहन खोज किया है. उन्होंने इस क्षेत्र को फरदर इंडिया (Farther India) का टर्म गढ़ा था. इन देशों में भारतीय सभ्यता रची-बसी थी. भौगोलिक तौर पर यह क्षेत्र, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस, थाईलैंड, म्यांमार और मलय राज्यों से बना है. संस्कृत, बौद्ध और जैन ग्रंथों यह सबूत देते हैं यह क्षेत्र भारतीय भूमि से अनजान कभी नहीं रहा. 2,000 साल से भी पुराने संबंध दोनों देशों के बीच रहे हैं. समुद्री यात्राओं ने इन देशों के बीच संबंधों को और मजबूत किया.
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भारतीय व्यापारी अपने साथ भारतीय धर्म, संस्कृति, परंपराएं और दर्शन को अपने साथ यहां लेकर आए थे. यही वजह है कि तमाम थाई फिल्मों में भी भारतीय संस्कृति के गहरे प्रभाव की झलक साफ दिखती है. इन क्षेत्रों में ब्राह्मण पुजारी भी साथ आए. बौद्ध दर्शन ने यहां विस्तार लिया. जैनियों ने भी जड़ें जमाई. कुछ ऐसे भी धार्मिक पुजारी और व्यापारी थे जिन्होंने यहां रोटी-बेटी का संबंध भी बनाया. इन्हें थाईलैंड के राजाओं से संरक्षण भी मिला.
अगर गौर से देखें तो ऐसा लगेगा कि भारत का कोई उपनिवेश थाईलैंड हो. जैसे पुर्तगालियों और फ्रेंच सभ्यता का गहरा प्रभाव गोवा में दिखता है वैसे ही थाईलैंड पर भारत का प्रभाव है. थाईलैंड पर भारतीय सभ्यता का गहरा असर है.
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थाई, मलय और जावा समेत तमाम कई ऐसे इलाके हैं जहां की स्थानीय भाषाओं पर भाषाओं में संस्कृत, पाली और द्रविड़ मूल के शब्द ज्यादा हैं. थाई भाषा पर भी दक्षिण भारत के पल्लव वर्णमाला का असर है. इसी लिपि में यह भाषा लिखी गई है.
थाईलैंड से भारत के कैसे रहे हैं धार्मिक संबंध?
पहले थाईलैंड को ऐतिहासिक तौर पर श्यामदेश, स्याम और सियाम नाम से जाना जाता था. यह फनान साम्राज्य के आधीन आता था. छठी शताब्दी में जब फुनान साम्राज्य का पतन हुआ तब यह साम्राज्य द्वारवती के बौद्ध साम्राज्य के आधीन आ गया था.
10वीं शताब्दी में खमेर साम्राज्य ने जीत हासिल की. खमेर पर भारतीय सभ्यता का गहरा असर है. ताकुआ-पा में पाया गया एक तमिल शिलालेख दक्षिण भारत के पल्लव क्षेत्र और दक्षिणी थाईलैंड के बीच व्यापार संबंधों की गवाही देता है.
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रामायण का क्या है थाईलैंड कनेक्शन?
थाईलैंड पर रामायण का भी गहरा असर है. रामायण को थाईलैंड में रामकृति (राम की महिमा) या रामकियन (राम का वृत्तांत) के तौर पर जाना जाता है. थाईलैंड में राम लीला होती है. बौद्ध मंदिरों पर भी रामायण की सांस्कृतिक प्रतिकृतियां नजर आती हैं. थाईलैंड के कई शहरों में राम के जीवन से जुड़ी किंवदंतियां प्रचलित हैं.
मध्य थाईलैंड में अयुत्या नाम की एक जगह है. यह भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या के नाम पर नामित है. 13वीं शताब्दी के बाद से, कई थाई राजाओं ने राम की उपाधि धारण की, जो वर्तमान राजवंश के दौरान वंशानुगत हो गया है. भारत और थाईलैंड के संबंध एक बार फिर गहरे हो रहे हैं. सांस्कृतिक रूप से एकजुट यह देश कई मायनों में एक-दूसरे के बेहद करीबी हैं.
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