डीएनए हिंदी: भारत का पारंपरिक झुकाव फिलिस्तीन की तरफ रहा है लेकिन पिछले एक दशक की राजनीति में बड़ा बदलाव दिख रहा है. भारत और इजरायल के संबंधों में लगातार घनिष्ठता बढ़ रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इजरायल का दौरा भी कर चुके हैं. हालांकि, इजरायल और हमास के बीच जारी संघर्ष में भी भारत ने फिलिस्तीन के नागरिकों के लिए मानवीय सहायता भेजी है. संयुक्त राष्ट्र महासभा में शुक्रवार को एक प्रस्ताव पेश किया गया जिसमें तत्काल इजरायल और हमास के बीच मानवीय युद्धविराम का आह्वान किया गया था. भारत के गाजा में युद्धविराम के मूल प्रस्ताव पर तटस्थ रहने पर देश में बहस छिड़ गई है. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे समेत कई विपक्षी नेता इसकी आलोचना कर रहे हैं. भारत के इस फैसले के कूटनीतिक मायन समझें.
संयुक्त राष्ट्र में जो प्रस्ताव रखा गया था उसमें 'हमास' और 'बंधक' शब्द का जिक्र नहीं था. भारत ने इस प्रस्ताव पर वोट नहीं दिया और दुनिया के कुल 120 देशों ने प्रस्ताव के समर्थन में तो 14 देशों ने इसके खिलाफ मतदान किया है. हालांकि, इस मतदान के ठीक पहले कनाडा ने युद्ध विराम के प्रस्ताव में संशोधन पेश किया था जिसमें 'हमास' का नाम था और भारत ने उसका खुलकर समर्थन किया था. भारत के गाजा में युद्धविराम के मूल प्रस्ताव पर तटस्थ रहने पर देश में बहस छिड़ गई और कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा कि वह मोदी सरकार के फैसले से शर्मिंदा हैं. समझें इस प्रस्ताव पर विशेषज्ञों की क्या राय है.
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इजरायल का मौन समर्थन माना जा सकता है भारत का कदम
भारत और इजरायल के बीच संबंध पहले से प्रगाढ़ हुए हैं और हमास के हमले वाले दिन ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर एक पोस्ट किया था जिसमें इजरायली नागरिकों के लिए संवेदना और आतंकवाद की निंदा की गई थी. भारत ने वोटिंग में दूरी बनाकर एक तरीके से अपनी तटस्थता दिखाई है लेकिन इसे सीधे तौर पर इजरायल के साथ खड़ा होना भी माना जा सकता है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भारत के स्टैंड पर सवाल उठाते हुए कहा है कि भारत का ऐतिहासिक रुख फिलिस्तीन के पक्ष में रहा है.
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भारत ने आतंकवाद के खिलाफ लिया है स्टैंड
संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में हमास का नाम नहीं था और भारत ने इसे जोड़ने वाले कनाडा के प्रस्ताव का समर्थन किया था. पश्चिमी एशिया मामलों के विशेषज्ञ कबीर तनेजा का इस पर कहना है कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की नीति बेहद सख्त रही है. उन्होंने कहा, 'भारत ने 2015 में भी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया था. इस प्रस्ताव में आरोप लगाया गया था कि इजरायल और हमास ने 2014 में युद्ध के दौरान युद्ध अपराध किया था. इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो भारत का वोट नहीं देना अपने स्टैंड से अलग जाना नहीं बल्कि पुराने मूल्य पर कायम रहना है. यहां इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि प्रस्ताव में हमास का नाम नहीं था जो भारत के लिए आतंकवाद के खिलाफ कूटनीतिक तौर पर चुनौती है.'
वोटिंग से अनुपस्थिति होता है कूटनीतिक रास्ता
संयुक्त राष्ट्र में किसी भी प्रस्ताव पर जब वोटिंग होती है तो यह सदस्य राष्ट्रों के कूटनीतिक स्टैंड के लिहाज से महत्वपूर्ण मानी जाती है. पक्ष और विपक्ष के अलावा जो देश अनुपस्थित रहना चुनते हैं उसे आम तौर पर दोनों ही पक्षों के साथ नाजुक संबंदों, ऐतिहासिक तथ्यों आदि से जोड़कर देखा जाता है. जिन देशों ने पक्ष में वोटिंग किया है उसमें बांग्लादेश, मालदीव, पाकिस्तान, रूस और दक्षिण अफ्रीका सहित 40 से अधिक देश हैं. भारत के अलावा, वोटिंग से दूरी बनाने वाले देशों में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, जापान, यूक्रेन और यूके शामिल रहे. प्रस्ताव के पक्ष में 120 वोट, विपक्ष में 14 वोट और अनुपस्थितों की संख्या 45 रही.
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