Jammu Kashmir Assembly Election: जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, जिसको लेकर पूरे राज्य में गहमागहमी देखने को मिल रही है.जम्मू कश्मीर में जहां एक तरफ बीजेपी, तो दूसरी ओर कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन के साथ चुनावी मैदान में उतर चुके हैं. कश्मीर में 90 सीटों पर मतदान होने वाले हैं, जिसको लेकर कश्मीर का बकरवाल समुदाय काफी चर्च में है. ये समुदाय पहली बार विधानसभा में वोट डालने वाला है.
जम्मू और कश्मीर के बकरवाल एक खानाबदोश चरवाहा समूह हैं, जिन्हें जम्मू और कश्मीर अनुसूचित जनजाति अधिनियम, 1991 के तहत अनुसूचित जनजाति (ST) के रूप में अधिसूचित किया गया है. जम्मू -कश्मीर क्षेत्र में बकरवालों के के लोग बड़ी संख्या भेड़-बकरी चराने का काम करते हैं.
गुज्जर और बकरवाल दोनों में क्या है सामनता
गुज्जर और बकरवाल को अक्सर एक ही सामाजिक समूह में शामिल कर दिया जाता है क्योंकि दोनों समूहों की जातीयता एक जैसी है और उनकी भाषाई, धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं भी एक जैसी हैं. हालांकि, गुज्जर और बकरवाल अपने चुने हुए व्यवसायों के आधार पर दो अलग-अलग समूह बनाते हैं. बकरवाल एक खानाबदोश समुदाय है जो भेड़ और बकरियाँ पालते हैं,जबकि गुज्जर एक स्थायी समुदाय है जो गाय और भैंस पालते हैं.
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बाहर विवाह करना मुश्किल
बकरवाल सख्ती से अपनी जात/बिरादरी (समुदाय या कुल) के भीतर ही विवाह करते हैं (खताना 1976) इस प्रकार, जात के बाहर विवाह बहुत मुश्किल हैं. जात के बाहर होने वाले विवाह, जिसमें प्रेम विवाह भी शामिल है, के लिए आमतौर पर माता-पिता की सहमति नहीं होती है. तुफैल (2014) के अनुसार, बकरवाल की अधिकांश (97%) शादियां एक ही जाति में होती हैं और 3% से कम प्रेम विवाह होते हैं.
बकरवाल गर्मियों के दौरान जम्मू के मैदानी इलाकों से हिमालय में कश्मीर घाटी के घास के मैदानों में और इसके विपरीत प्रवास करते हैं. बकरवाल की एक बड़ी आबादी अपने पशुओं के साथ इन दो जिलों में प्रवास करती है.
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