JP Jayanti: जय प्रकाश नारायण को क्यों कहा जााता है 'लोकनायक', जानिए उनसे जुड़े रोचक किस्से

| Updated: Oct 11, 2024, 02:42 PM IST

JP Jayanti: 'सम्पूर्ण क्रांति' का आह्वान करने वाले जय प्रकाश नारायण ने भारतीय राजनीति और समाज में ऐसा परिवर्तनकारी आंदोलन खड़ा किया, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. जेपी ने समाजवाद की गूंज को पूरे देश में फैलाया और भारतीय राजनीतिक आंदोलनों में उनकी भूमिका हमेशा अहम रही है.

JP Jayanti: भारत के इतिहास में कई ऐसे व्यक्तित्व हुए हैं जिनका योगदान सदियों तक याद रखा जाएगा, और उनमें से एक प्रमुख नाम है जयप्रकाश नारायण, जिन्हें देशभर में 'लोकनायक' के रूप में जाना जाता है. 5 जून 1974 को बिहार की राजधानी पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान से इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ 'सम्पूर्ण क्रांति' का आह्वान करने वाले जेपी ने भारतीय राजनीति और समाज में ऐसा परिवर्तनकारी आंदोलन खड़ा किया, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. जेपी ने समाजवाद की गूंज को पूरे देश में फैलाया और भारतीय राजनीतिक आंदोलनों में उनकी भूमिका हमेशा अहम रही है. उनके जीवन की यात्रा समाज सुधार और जन सेवा के महत्वपूर्ण उदाहरणों से भरी है, यही कारण है कि उन्हें  'लोकनायक' कहा जाता है. उनके जीवन से जुड़े कई ऐसे रोचक किस्से हैं, जो उन्हें भारतीय जनता के दिलों में अमिट स्थान दिलाते हैं.

आरंभिक जीवन और शिक्षा
जय प्रकाश नारायण का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था. उनके पिता पेशे से सरकारी अधिकारी थे, लेकिन उनके परिवार का ग्रामीण जीवन से गहरा संबंध था. जय प्रकाश ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बिहार में प्राप्त की. जेपी  पटना के साइंस कालेज में भी अपनी पढ़ाई की. आपको बता दें उनकी राजनीति की शुरुआत भी इसी कॉलेज से हुआ था. इसके बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका का रुख किया, जहां उन्होंने समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई की. इस दौरान उन्होंने मार्क्सवाद, समाजवाद और अन्य राजनीतिक विचारधाराओं के बारे में पढ़ाई की, जो उनके सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित करने वाले साबित हुए.


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पत्नी ने किया ब्रह्मचर्य का पालन
जयप्रकाश नारायण की शादी प्रभावती से हुई थी. पटना कॉलेज में पढ़ाई के दौरान प्रभावती उनकी राजनीतिक सोच से बहुत प्रभावित हुईं. शादी के बाद, प्रभावती ने अपना अधिकांश समय गांधी आश्रम में बिताया. बिमल और सुजाता प्रसाद द्वारा जयप्रकाश नारायण के जीवन पर लिखी गई किताब 'द ड्रीम ऑफ रेवोल्यूशन' में यह भी उल्लेख है कि गांधी आश्रम में रहते हुए प्रभावती ने ब्रह्मचर्य का पालन करना शुरू कर दिया था. बताते चलें कि जब यह बात महात्मा गांधी को पता चली, तो उन्होंने प्रभावती पर बहुत गुस्सा किया था. किताब के अनुसार, गांधी ने जेपी को बाद में दूसरी शादी करने की भी सलाह दे दी थी.

स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
जय प्रकाश नारायण ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया. 1929 में अमेरिका से  भारत लौटने के बाद स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया. ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करने वाले हजारों युवाओं की तरह, उन्होंने भी अंग्रेजी शासन के खिलाफ आवाज बुलंद की. मौलाना अबुल कलाम आजाद की प्रेरणादायी भाषणों का उनके जीवन पर गहरा असर हुआ. गांधीजी के नेतृत्व में वे स्वतंत्रता संग्राम के सबसे अग्रणी नेताओं में से एक बन गए.

समाजवाद का समर्थन
जय प्रकाश नारायण ने हमेशा समाजवाद का समर्थन किया. उनका मानना था कि भारत में सच्ची आजादी तब तक नहीं मिलेगी जब तक प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक और आर्थिक न्याय प्राप्त नहीं होता. वे इस बात पर जोर देते थे कि सत्ता की राजनीति का उद्देश्य जनसेवा होना चाहिए, न कि व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति. उन्होंने समाजवाद के सिद्धांतों को अपनाया और एक निष्पक्ष, समान और न्यायपूर्ण समाज की कल्पना की. 

संपूर्ण क्रांति
जय प्रकाश नारायण का सबसे महत्वपूर्ण योगदान 1970 के दशक में हुए ‘संपूर्ण क्रांति’ आंदोलन के रूप में जाना जाता है. दरअसल, 1970 के दौर में भारत में भ्रस्टाचार, महंगाई,बेरोजगारी बिकुल चरम पर थी. उसी दौरान जेपी ने   1974 में बिहार से इस आंदोलन की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, शिक्षा प्रणाली में बदलाव और शासन की गलत नीतियों का विरोध करना था. यह आंदोलन धीरे-धीरे बिहार से निकलकर पूरे भारत में फैल गया. जय प्रकाश नारायण ने 5 जून 1975 को एक ऐतिहासिक जनसभा में ‘संपूर्ण क्रांति’ का नारा दिया, जिसने पूरे देश में उथल-पुथल मचा दी.

संपूर्ण क्रांति की विचारधारा
जय प्रकाश नारायण का मानना था कि भारत की राजनीति में नैतिकता का पतन हो रहा है और इसे सुधारने के लिए व्यापक स्तर पर क्रांति की आवश्यकता है. उनका कहना था, भ्रष्टाचार का अंत करना, बेरोजगारी को समाप्त करना और शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाना, ये सब वर्तमान व्यवस्था से संभव नहीं है. इन समस्याओं के समाधान के लिए सम्पूर्ण व्यवस्था को बदलना होगा, और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए एक क्रांति यानी सम्पूर्ण क्रांति आवश्यक है. यह क्रांति सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक सुधारों का प्रतीक थी, जिसका उद्देश्य भ्रष्ट व्यवस्था को खत्म कर एक नए समाज का निर्माण करना था.

आपातकाल में संघर्ष
जय प्रकाश नारायण का नाम आपातकाल के खिलाफ उनके संघर्ष के लिए भी प्रसिद्ध है. जब 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की, तो उन्होंने इसका कड़ा विरोध किया. वे सत्ता के दमनकारी निर्णयों के खिलाफ खड़े हुए और देशभर में लोकतंत्र की रक्षा के लिए आंदोलन शुरू किया. उनके साहस और संघर्ष ने लाखों लोगों को प्रेरित किया और लोकतंत्र के प्रति जनता की आस्था को पुनः स्थापित किया. इसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा, लेकिन वे अपने सिद्धांतों और संघर्ष से पीछे नहीं हटे.

'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'
1975 में आपातकाल के दौरान जय प्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग की और उनके शासन को अलोकतांत्रिक बताया. इसी दौरान, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पंक्ति 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है' ने जनता के दिलों में क्रांति की आग भर दी. आपातकाल के बाद, 1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी को भारी बहुमत मिला और भारत में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ. यह जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति का ही परिणाम था, जिसने देश की राजनीति को एक नई दिशा दी.

सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित
साल 1999 में, भारत सरकार ने उनके असाधारण योगदान को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया.

समाजवाद के प्रति प्रतिबद्धता
जय प्रकाश नारायण की राजनीतिक सोच का मुख्य आधार समाजवाद था. वे हमेशा गरीबों, मजदूरों और किसानों के हक की लड़ाई लड़े. उनका समाजवाद केवल सत्ता के अधिकारों तक सीमित नहीं था, बल्कि जनसेवा और समाज में व्यापक सुधारों पर आधारित था. उन्होंने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि राजनीति का उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना नहीं होना चाहिए, बल्कि समाज में समता और न्याय की स्थापना करना चाहिए. यही कारण है कि वे भारतीय समाज के गरीब और वंचित तबकों के लिए हमेशा एक आदर्श माने जाते हैं.

उनका ‘लोकनायक’ का दर्जा इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने हमेशा जनता के हित के लिए काम किया और सत्ता के लालच से दूर रहकर समाज सेवा की. जय प्रकाश नारायण का योगदान भारतीय समाज और राजनीति में अमूल्य है और वे सदैव प्रेरणा के स्रोत रहेंगे. उनके विचार और संघर्ष आज भी भारतीय राजनीति में प्रासंगिक हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक दिशा दिखाने का कार्य करते रहेंगे. जय प्रकाश नारायण की जयंती पर हम उनके जीवन और विचारों को स्मरण करते हुए यह महसूस कर सकते हैं कि उन्होंने भारत की राजनीति और समाज को एक नई दिशा दी. उनका जीवन समाजवाद, न्याय और समानता के सिद्धांतों पर आधारित था, जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस समय थे. उनके संघर्ष, त्याग और अदम्य साहस को भारतीय इतिहास में सदैव याद रखा जाएगा.

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