Joshimath sinking: कैसे बसा था जोशीमठ, क्या है वीरान होने की वजह, क्या बच पाएगा शहर, समझिए

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Jan 11, 2023, 09:28 AM IST

जोशीमठ में तबाह हुआ एक मंदिर. (तस्वीर-PTI)

उत्तराखंड का पवित्र जोशीमठ शहर धंस रहा है. घर टूट रहे हैं, जमीनें दरक रही हैं. इस शहर के बसने की कहानी भी शानदार है.

डीएनए हिंदी: जोशीमठ (Joshimath) में हो रहे भू-धंसाव को रोक पाना बेहद मुश्किल है.इस त्रासदी को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने मंगलवार को इस पवित्र नगरी के होटलों और घरों को गिराना शुरू कर दिया है. जोशीमठ में जमीन धंसने का आंकलन करने वाले एक विशेषज्ञ पैनल ने क्षतिग्रस्त इमारतों के विध्वंस की सिफारिश की थी. जोशीमठ में जमीन धंसने से अब तक 678 घरों में दरारें आ चुकी हैं. इतना ही नहीं कई जगहों पर सड़कें भी धंस चुकी हैं. जमीन के नीचे से लगातार पानी निकल रहा है. जोशीमठ से आ रही तस्वीरें और वीडियो शहर की भयावह स्थिति और सरकार की अक्षमता को दर्शाती हैं. जोशीमठ की तबाही की कहानी सब जानते हैं, पर इसके बसने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है.

जब देश में जैन और बुद्ध दर्शन तेजी से लोकप्रिय हो रहे थे, दुनिया में इस्लाम का विस्तार हो रहा था, तब जोशीमठ में सनातन धर्म के एकीकरण की भूमिका तैयार हो रही थी. आठवीं से नौंवीं शताब्दी के बीच आदि शंकराचार्य की तपस्थलि रही यह भूमि आज दरक रही है. 

इस शहर की स्थापना में आदि शंकराचार्य की अहम भूमिका रही है. आदि शंकराचार्य ने चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना की थी. पूरब में उड़ीसा के पुरी में वर्धन मठ, पश्चिम में द्वारिका का शारदा मठ, दक्षिण में मैसूर का श्रृंगेरी मठ और उत्तर में ज्योतिर्मठ यानी जोशीमठ. यहीं से जोशीमठ के बनने की कहानी शुरू होती है. यह शहर इससे भी पुराना है लेकिन इसकी पुनर्स्थापना शंकराचार्य ने ही की थी.

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आदि शंकराचार्य की तपस्थलि डूब रही है

जोशीमठ आदि शंकराचार्य की तपस्थलि रही है. जोशीमठ में समय बिताने के बाद उन्होंने बद्रीनाथ में नारायण मंदिर के पुननिर्माण के लिए काम किया. केदारनाथ में उनका निधन हुआ. ऐसा कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य को ज्ञान जोशीमठ में ही एक पेड़ के नीचे मिला था. इसे ज्योतिर्धाम भी कहा जाता है. अब लोग इस पेड़ को कल्पवृक्ष कहते हैं.

आदि शंकराचार्य से जुड़ी कई स्मृतियां इस शहर में हैं. एक ध्वस्त गुफा भी इस शहर में है, जहां आदि शंकराचार्य ने तप किया था, यहां भगवान नरसिंह का मंदिर भी है. ऐसी मान्यता है कि यहीं भक्त प्रह्लाद ने तप किया था, तब नारायण खंभा फाड़कर प्रकट हुए थे.

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महाभारत कालीन नगरी है जोशीमठ

जोशीमठ पूरी तरह से एक धार्मिक नगरी है. सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए यह नगरी दुनियाभर में विख्यात है. भगवान शिव, विष्णु, ब्रह्मा, गणेश, सूर्य  और प्रह्लाद के नाम पर कई कुंड इस शहर में बने हुए हैं. इन सभी धार्मिक मान्यताओं पर भू-धंसाव का साया है. ऐसा लग रहा है कि यह शहर वीरान हो जाएगा.

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जोशीमठ की ऐतिहासिक कहानी भी दिलचस्प है. यह कत्यूरी शासकों की राजधानी भी रही है. जब कत्यूरी साम्राज्य की सत्ता थी, तब वासुदेना गिरिराज चक्र चूड़ामणि ने इसे राजधानी के तौर पर चुना था. ऐसी मान्यता है कि यह शहर महाभारत काल से आबाद था. तब इस नगरी का नाम कार्तिकेयपुर नगर था. इसका जिक्र पाणिनि के अष्टाध्यायी में भी मिलता है. 

कैसे पर्यटन का केंद्र बन गया जोशीमठ?

20वीं शताब्दी में तेजी से विकसित हो रहे संसाधनों की वजह से यह शहर टूरिस्ट हब बनता गया. एक के बाद एक पर्यटन के क्षेत्र में जबरदस्त बदलाव हुए. पूरे शहर पर नए कंस्ट्रक्शन हुए, होटल से लेकर चौड़ी सड़कों तक का निर्माण हुआ. यह शहर पर्यटन का केंद्र हो गया. यहां से फूलों की घाटी का सफर लोग तय करते हैं, यहीं से हेमकुंड भी जाते हैं. उत्तराखंड में कई धार्मिक स्थलों की राह जोशीमठ से होकर गुजरती है. यह चारोधाम की यात्रा का एक अहम ठहराव भी है. 

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सुरक्षा की नजर से कितना अहम है जोशीमठ?

जोशीमठ और तिब्बत की दूरी बेहद कम है. आजादी के बाद सरकार ने सेना और सुरक्षाबलों के लिए इस शहर को अहम ठिकाना बनाया है. गढ़वाल राइफल्स और स्काउट्स की भी यहां तैनाती है. इन्हें भारत का हिमवीर कहा जाता है. इसका हेडक्वार्टर जोशीमठ में है. 50,000 की आबादी वाला यह शहर अब विस्थापन के मुहाने पर खड़ा है. 

बेहद कमजोर है जोशीमठ की नींव, इसलिए हो रहा है वीरान

जोशीमठ की नींव कमजोर है. यह शहर भूस्खलन के बाद बने मलबे पर बसा है. जमीन के नीचे ठोस चट्टानों की जगह रेत, मिट्टी और कंकड़-पत्थर हैं. यह शहर अंधाधुंध निर्माण को सहने योग्य नहीं है. इसके बर्बाद होने की वजह भी अनियमित बारिश, भूस्खलन और अंधाधुंध कंस्ट्रक्शन है. करीब 4 दशक पहले, 1976 में कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में बनी एक समिति ने चेतावनी दी ती कि अगर जोशीमठ में ऐसे ही अंधाधुंध निर्माण हुआ तो यह शहर तबाह हो जाएगा. यह आशंका सच साबित हुई है. 

कैसे बचेगा यह शहर?

वैज्ञानिकों का कहना है कि यह शहर हर साल 2.5 इंच धंसता जा रहा है. इतने व्यापक स्तर पर हो रहे भूस्खलन और भू-धंसाव को रोकना अब बेहद मुश्किल है. अभी तक जो उपाय सामने आए हैं, उनमें बड़े निर्माणों के ध्वस्तीकरण और नए निर्माणों को रोकने की बात कही जा रही है. सदियों पुराने इस शहर के अस्तित्व पर संकट है, जिसे रोकने में सरकारें बुरी तरह से फेल हो रही हैं. किसी को कोई स्थाई उपाय, दूर तक नजर नहीं आ रहा है.

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